नरेन्द्र से नारीन्द्र तक
नरेन्द्र से नारीन्द्र तक
''गाँधी का यह देश नहीं ,बस हत्यारों की मंडी है ,
राजनीति की चौपड़ में ,हर कर्ण यहाँ पाखंडी है .''
चन्द्र सेन जैन की यह अभिव्यक्ति की तो समस्त राष्ट्र के नेताओं के लिए गई है किन्तु क्या किया जाये उस पाखंड का जो गाँधी के गुजरात के मुख्यमंत्री में ही दिखाई दे रहा हो .सोशल वेबसाईट व् माडिया के जरिये वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने अनुरूप वातावरण बनाने में लगे हैं .जिस तरह बढ़ा चढ़ा कर उनके भाषणों की,गुजरात के विकास की तारीफ की जाती है ऐसा कुछ न तो उन्हें दूरदर्शन पर देखते सुनते लगता है [जबकि दूर के ढोल तो सुहावने कहे जाते हैं ]और न ही गुजरात के विकास के सम्बन्ध में अन्य गैर राजनीतिज्ञों के बयान सुनकर लगता है .जब तक लालू प्रसाद यादव रेलवे के मंत्री रहे ऐसे ही महिमा मंडन तब रेलवे की सफलता के होते थे ममता जी के आने पर ही सारी पोल खुली .
महिलाओं को लेकर मोदी जी की जागरूकता काबिले तारीफ है .अच्छा लगता है कि उन्होंने महिलाओं की ताकत को पहचाना किन्तु महिलाएं उनके इर्द-गिर्द खड़े होते वक्त शायद यही भूल गयी कि उन्हें दिख रहा शख्स बिल्कुल वैसे ही है जैसे ''डॉन ''फिल्म में अमिताभ -
''तुमने जो देखा है ,सोचा है समझा है ,जाना है ,मैं वो नहीं .....''
हालाँकि कितने ही यहाँ इस पंक्ति पर आपति करेंगे क्योंकि जनता में उनके इतने प्रशंसक हो न हो किन्तु यहाँ बहुत हैं किन्तु मेरा तो किसी अज्ञात शायर की इन पंक्तियों वाला ही हाल है -
''मैं कभी हक़ बयानी से डरती नहीं ,
आइये और मेरा सर कलम कीजिये .
सिर्फ दुनिया के गम से न होगा भला ,
ए सवा आखिरत का भी गम कीजिये .''
वर्तमान पर नज़र रखते हुए मैं व्यक्ति के भूत को नज़रंदाज़ नहीं करती क्योंकि मेरा खुद का अनुभव है कि परिस्थितियां विपरीत होने पर या व्यक्ति का मतलब होने पर व्यक्ति भले ही परिवर्तित दिखाई दे किन्तु जब परिस्थितियां उसके माफिक हों या उसका मतलब ह्ल हो जाये तो पुरानी शक्ल दिखाई दे जाती है .हर कोई वाल्मीकि नहीं होता ऐसे तो बिरले लोग ही होते हैं और जो कि मोदी जी नहीं हैं .
आज मोदी कहते हैं कि ''निर्णय में महिलाओं की भागीदारी से बदलेगी महिलाओं की तकदीर ''और उनके इर्द-गिर्द बैठी फिक्की की समझदार महिलाएं ताली बजाती हैं और गर्व से भर जाती हैं जरा एक बार किसी पारिवारिक समारोह में यदि वे विवाहित हैं तो पति के बगैर जाकर देख लें ,अपनी स्थिति का पता चल जायेगा और तब सोचें यशोदा बेन के बारे में,
जिनसे शादी कर मोदी उन्हें गाँव में ही छोड़ आये और स्वयं को भगत सिंह की श्रेणी में रखते हुए कहते हैं कि देश सेवा के लिए ऐसा किया जबकि भगत सिंह ने तो शादी से इंकार करते हुए यह कहा था कि मेरी शादी तो हो चुकी है देश भक्ति से ,मोदी ऐसा करते तो आदर्श होते फिर चाहे यशोदा बेन भगत सिंह की होने वाली पत्नी का पथ अपनाती या कुछ और.एक भारतीय नारी की तरह वे उन्हें कुछ नहीं कहती पर उनके मन का दुःख एक नारी होकर क्या वे नहीं समझ सकती ?
गुजरात के माथे पर लगा कुपोषण का कलंक धोने को भी मोदी जी को महिलाओं का ही सहारा मिला और तब बहुत तेज़ से चमका होगा महिलाओं का मुख जब मोदी जी कहते हैं कि ''गुजरात में कुपोषण नहीं है ये तो महिलाओं को पतले रहने की आदत है जिसके कारण वे डाइटिंग करती हैं ''.
आज प्रधानमंत्री बनने के लिए मोदी जी महिलाओं को लुभाने पर आ गए हैं .आधी आबादी की ताकत वे जानते हैं क्योंकि राजनीतिक ,कूटनीतिक दिमाग वे रखते हैं किन्तु नारी की ताकत को भली भांति नहीं जानते तभी ऐसी अनुचित बाते पूर्व में कह गए और कमल है उन महिलाओं का जो उनके आगे ऐसे में भी झुक गयी जबकि अगर भारतीय नारी की वे ताकत को जाने तो उन्हें सही रूप में माँ को जानना होगा जिसका वे केवल गुणगान करते हैं पूजा नहीं करते क्योंकि अगर वे ऐसा करते तो ये भी जानते जो यहाँ कहा गया है और जो कि एक नारी की चुनौती है उन्हें -
''घर गिराने ही को जो फतह समझ बैठा है ,
उससे कहना मेरा मैयार गिराके देख .
मुझको तारीख का एक खेल समझने वाला ,
मेरे क़दमों के निशा मिटाके देख .''
और रही महिलाओं के लिए बड़े जोर-शोर से गुजरात में ५०% आरक्षण की कोशिश का श्रेय लेकर वहां की महिला राज्यपाल पर कटाक्ष करना तो ये तो उच्चतम न्यायालय भी सही नहीं मानता कि आरक्षण ५०% से ऊपर हो तो राज्यपाल वहां पर आरक्षण की स्थिति को देखकर ही ऐसा कर रही होंगी या हो सकती है कोई राजनीतिक मजबूरी किन्तु मोदी जी की तो कोई मजबूरी नहीं होगी फिर वे क्यों वे अपनी पार्टी में महिलाओं को आरक्षण नहीं दे देते उनपर तो कोई रोक नहीं है .क्यों वे अपनी पार्टी की प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य महिला उम्मीदवार श्रीमती सुषमा स्वराज जी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित नहीं करते जबकि स्वयं महिलाओं की भागीदारी को महत्व दे रहे हैं .और ये तो इनके हाथ में है यहाँ तो किसी की रोक नहीं है .
मोदी जी का बात बात में गुजरात गान तो उनके वहां से हटने पर खुल ही जायेगा अब जब वे यहाँ आने के स्वप्न सजा ही रहे हैं तो यहाँ बताएं कि यहाँ क्या करेंगे क्योंकि केंद्र का विकास मात्र मंदिर निर्माण या गुजरात निर्माण से नहीं होता इसमें समग्र राज्यों को लेक्लर चलना होता है और इसमें सामूहिक प्रयास किये जाते हैं और वे भी सबके विश्वास पर और सभी को जोड़कर .उन्हें अब पुरुषोत्तम दास की ये पंक्तियाँ ध्यान में रखनी ही चाहियें -
''तुम दिवस में ,स्वप्न में ,उन्मुक्त हो नभ में उड़े हो ,
अब धरा पर लौटकर आधार की बातें करो .''
शालिनी कौशिक
[कौशल]
''गाँधी का यह देश नहीं ,बस हत्यारों की मंडी है ,
राजनीति की चौपड़ में ,हर कर्ण यहाँ पाखंडी है .''
चन्द्र सेन जैन की यह अभिव्यक्ति की तो समस्त राष्ट्र के नेताओं के लिए गई है किन्तु क्या किया जाये उस पाखंड का जो गाँधी के गुजरात के मुख्यमंत्री में ही दिखाई दे रहा हो .सोशल वेबसाईट व् माडिया के जरिये वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने अनुरूप वातावरण बनाने में लगे हैं .जिस तरह बढ़ा चढ़ा कर उनके भाषणों की,गुजरात के विकास की तारीफ की जाती है ऐसा कुछ न तो उन्हें दूरदर्शन पर देखते सुनते लगता है [जबकि दूर के ढोल तो सुहावने कहे जाते हैं ]और न ही गुजरात के विकास के सम्बन्ध में अन्य गैर राजनीतिज्ञों के बयान सुनकर लगता है .जब तक लालू प्रसाद यादव रेलवे के मंत्री रहे ऐसे ही महिमा मंडन तब रेलवे की सफलता के होते थे ममता जी के आने पर ही सारी पोल खुली .
महिलाओं को लेकर मोदी जी की जागरूकता काबिले तारीफ है .अच्छा लगता है कि उन्होंने महिलाओं की ताकत को पहचाना किन्तु महिलाएं उनके इर्द-गिर्द खड़े होते वक्त शायद यही भूल गयी कि उन्हें दिख रहा शख्स बिल्कुल वैसे ही है जैसे ''डॉन ''फिल्म में अमिताभ -
''तुमने जो देखा है ,सोचा है समझा है ,जाना है ,मैं वो नहीं .....''
हालाँकि कितने ही यहाँ इस पंक्ति पर आपति करेंगे क्योंकि जनता में उनके इतने प्रशंसक हो न हो किन्तु यहाँ बहुत हैं किन्तु मेरा तो किसी अज्ञात शायर की इन पंक्तियों वाला ही हाल है -
''मैं कभी हक़ बयानी से डरती नहीं ,
आइये और मेरा सर कलम कीजिये .
सिर्फ दुनिया के गम से न होगा भला ,
ए सवा आखिरत का भी गम कीजिये .''
वर्तमान पर नज़र रखते हुए मैं व्यक्ति के भूत को नज़रंदाज़ नहीं करती क्योंकि मेरा खुद का अनुभव है कि परिस्थितियां विपरीत होने पर या व्यक्ति का मतलब होने पर व्यक्ति भले ही परिवर्तित दिखाई दे किन्तु जब परिस्थितियां उसके माफिक हों या उसका मतलब ह्ल हो जाये तो पुरानी शक्ल दिखाई दे जाती है .हर कोई वाल्मीकि नहीं होता ऐसे तो बिरले लोग ही होते हैं और जो कि मोदी जी नहीं हैं .
आज मोदी कहते हैं कि ''निर्णय में महिलाओं की भागीदारी से बदलेगी महिलाओं की तकदीर ''और उनके इर्द-गिर्द बैठी फिक्की की समझदार महिलाएं ताली बजाती हैं और गर्व से भर जाती हैं जरा एक बार किसी पारिवारिक समारोह में यदि वे विवाहित हैं तो पति के बगैर जाकर देख लें ,अपनी स्थिति का पता चल जायेगा और तब सोचें यशोदा बेन के बारे में,
जिनसे शादी कर मोदी उन्हें गाँव में ही छोड़ आये और स्वयं को भगत सिंह की श्रेणी में रखते हुए कहते हैं कि देश सेवा के लिए ऐसा किया जबकि भगत सिंह ने तो शादी से इंकार करते हुए यह कहा था कि मेरी शादी तो हो चुकी है देश भक्ति से ,मोदी ऐसा करते तो आदर्श होते फिर चाहे यशोदा बेन भगत सिंह की होने वाली पत्नी का पथ अपनाती या कुछ और.एक भारतीय नारी की तरह वे उन्हें कुछ नहीं कहती पर उनके मन का दुःख एक नारी होकर क्या वे नहीं समझ सकती ?
गुजरात के माथे पर लगा कुपोषण का कलंक धोने को भी मोदी जी को महिलाओं का ही सहारा मिला और तब बहुत तेज़ से चमका होगा महिलाओं का मुख जब मोदी जी कहते हैं कि ''गुजरात में कुपोषण नहीं है ये तो महिलाओं को पतले रहने की आदत है जिसके कारण वे डाइटिंग करती हैं ''.
आज प्रधानमंत्री बनने के लिए मोदी जी महिलाओं को लुभाने पर आ गए हैं .आधी आबादी की ताकत वे जानते हैं क्योंकि राजनीतिक ,कूटनीतिक दिमाग वे रखते हैं किन्तु नारी की ताकत को भली भांति नहीं जानते तभी ऐसी अनुचित बाते पूर्व में कह गए और कमल है उन महिलाओं का जो उनके आगे ऐसे में भी झुक गयी जबकि अगर भारतीय नारी की वे ताकत को जाने तो उन्हें सही रूप में माँ को जानना होगा जिसका वे केवल गुणगान करते हैं पूजा नहीं करते क्योंकि अगर वे ऐसा करते तो ये भी जानते जो यहाँ कहा गया है और जो कि एक नारी की चुनौती है उन्हें -
''घर गिराने ही को जो फतह समझ बैठा है ,
उससे कहना मेरा मैयार गिराके देख .
मुझको तारीख का एक खेल समझने वाला ,
मेरे क़दमों के निशा मिटाके देख .''
और रही महिलाओं के लिए बड़े जोर-शोर से गुजरात में ५०% आरक्षण की कोशिश का श्रेय लेकर वहां की महिला राज्यपाल पर कटाक्ष करना तो ये तो उच्चतम न्यायालय भी सही नहीं मानता कि आरक्षण ५०% से ऊपर हो तो राज्यपाल वहां पर आरक्षण की स्थिति को देखकर ही ऐसा कर रही होंगी या हो सकती है कोई राजनीतिक मजबूरी किन्तु मोदी जी की तो कोई मजबूरी नहीं होगी फिर वे क्यों वे अपनी पार्टी में महिलाओं को आरक्षण नहीं दे देते उनपर तो कोई रोक नहीं है .क्यों वे अपनी पार्टी की प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य महिला उम्मीदवार श्रीमती सुषमा स्वराज जी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित नहीं करते जबकि स्वयं महिलाओं की भागीदारी को महत्व दे रहे हैं .और ये तो इनके हाथ में है यहाँ तो किसी की रोक नहीं है .
मोदी जी का बात बात में गुजरात गान तो उनके वहां से हटने पर खुल ही जायेगा अब जब वे यहाँ आने के स्वप्न सजा ही रहे हैं तो यहाँ बताएं कि यहाँ क्या करेंगे क्योंकि केंद्र का विकास मात्र मंदिर निर्माण या गुजरात निर्माण से नहीं होता इसमें समग्र राज्यों को लेक्लर चलना होता है और इसमें सामूहिक प्रयास किये जाते हैं और वे भी सबके विश्वास पर और सभी को जोड़कर .उन्हें अब पुरुषोत्तम दास की ये पंक्तियाँ ध्यान में रखनी ही चाहियें -
''तुम दिवस में ,स्वप्न में ,उन्मुक्त हो नभ में उड़े हो ,
अब धरा पर लौटकर आधार की बातें करो .''
शालिनी कौशिक
[कौशल]
टिप्पणियाँ
अब धरा पर लौटकर आधार की बातें करो .''ये पंक्तियाँ मोदी जी पर सटीक बैठती है,,,,
recent post : भूल जाते है लोग,
"जानिये: माइग्रेन के कारण और निवारण"
किसी की भी आलोचना करने का सभी को अधिकार है। कुछ आलोचनाये पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर की जाती हैं और कुछ अन्य कारणों से। कई बार ऐसा भी होता है कि जब किसी एक व्यक्ति के बारे में बहुत सारे प्रशंसक खड़े हो जाते हैं तब पता नहीं क्यों मन में पीड़ा सी महसूस होने लगत्ती है। शायद इर्ष्या मन में जन्म लेने लगती है. और तब हम उसकी अच्छाइयों के बजाय उसके द्वारा की गयी किसी एक गलती पर उँगली उठाने लगते है। और तब मन को बड़ा संतोष महसूस होता है.
अरे जो गुजर गया उसके लिए क्यों रोते हो, आने वाले स्वर्णिम कल की ओर देखो बहुत आत्मसंतोष प्राप्त होगा।
आपको शायद नहीं मालुम कांग्रेस के शासनकाल में इतने दंगे हुए हैं पर हर कोई मोदी के शासन में केवल एक दंगे के लिए जगह - जगह आंसू बहता नजर आता है. कभी कांग्रेस के शासनकाल के दंगो पर आंसू बहा लेते. क्या कोई कांग्रेसी नेता क्पकड़ा गया या उसको सजा हुई
अरे जो गुजर गया उसके लिए क्यों रोते हो, आने वाले स्वर्णिम कल की ओर देखो बहुत आत्मसंतोष प्राप्त होगा।
आपको शायद नहीं मालुम कांग्रेस के शासनकाल में इतने दंगे हुए हैं पर हर कोई मोदी के शासन में केवल एक दंगे के लिए जगह - जगह आंसू बहता नजर आता है. कभी कांग्रेस के शासनकाल के दंगो पर आंसू बहा लेते. क्या कोई कांग्रेसी नेता क्पकड़ा गया या उसको सजा हुई
भारत मर जब तक लोग दूसरों पर विश्वास करेंगे तब तक देश के विकास की संकल्पना भी बेईमानी लगती है,
क्योंकि यहाँ '' पर उपदेश कुशल बहुतेरे '' वाली बात है.
आपकी अंतिम दो पंक्तिया बहुत अच्छी लगी.
''तुम दिवस में ,स्वप्न में ,उन्मुक्त हो नभ में उड़े हो ,
अब धरा पर लौटकर आधार की बातें करो .''
क्योंकि यहाँ '' पर उपदेश कुशल बहुतेरे '' वाली बात है.
आपकी अंतिम दो पंक्तिया बहुत अच्छी लगी.
''तुम दिवस में ,स्वप्न में ,उन्मुक्त हो नभ में उड़े हो ,
अब धरा पर लौटकर आधार की बातें करो .''
ये पंक्तियाँ अक्षरक्ष सत्य हैं ... मेरा खुद का अनुभव है कि परिस्थितियां विपरीत होने पर या व्यक्ति का मतलब होने पर व्यक्ति भले ही परिवर्तित दिखाई दे किन्तु जब परिस्थितियां उसके माफिक हों या उसका मतलब ह्ल हो जाये तो पुरानी शक्ल दिखाई दे जाती है...
मन ऐसा ही होता है पिट पिट कर हार जाए तो दूसरी बात है,वरना मौका पाते ही फिर कलाबाजी खा के खडा हो जाता है ...इसे साधना क्या आसान बात है ...
राजनीति की चौपड़ में,हर कर्ण यहाँ पाखंडी है .''
bahut sundar line hai, lekh bhi prasangik hai. achha laga