तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''
प्रवीण शुक्ल कहते हैं -
''तुम्हें इस दौर के हालात का मंज़र बताऊँ क्या ,
हुई है आँख मेरी आंसुओं से तर बताऊँ क्या ,
मैं अपने दुश्मनों से खुलके दो-दो हाथ कर लेता ,
उठा है दोस्तों के हाथ में पत्थर बताऊँ क्या .''
१९६७ में जन्मी एक विचारधारा जिसका उद्देश्य जनांदोलन के माध्यम से एक वर्गविहीन समाज की स्थापना करना था आज जिस उद्देश्य पर काम कर रहा है वह उसकी हाल की बहुत सी गतिविधियों से साफ़ हो गया है और वह महान उद्देश्य है ''एक व्यक्ति विहीन समाज की स्थापना .''
वह आन्दोलन जो १९६७ में माकपा से विभाजित हुआ ,उग्रवादी धड़े का विचार था ,जिसमे चारू मजूमदार ,कानू सान्याल और सरोज दत्त थे जिन्होंने माओवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक होने के कारण भारतीय कमुनिस्ट पार्टी [मार्क्सवादी -लेनिनवादी ]बनाई और पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग जिले के अत्यंत पिछड़े गाँव नक्सलबाड़ी में मई १९६७ में शोषक ज़मींदारों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर जिस सशस्त्र आन्दोलन की नीव रखी थी उसे ही नक्सलवाद के नाम से जाना गया और तब से लेकर आज तक किये जाने वाले इस आन्दोलन के नीति परिवर्तन ने इसे वर्ग विहीन समाज की स्थापना से भटकाकर व्यक्तिविहीन समाज की स्थापना की ओर धकेल दिया है .
सरकारी उपेक्षा के शिकार आदिवासी समुदाय को मोहरा बना यह आन्दोलन पिछले काफी समय से उथल-पुथल मचाने में लगा है और ऐसे में जिन राज्यों में यह आन्दोलन चरम पर है वहां की जनता को शोषण से बचाने के लिए आगे आने वाले नेताओं से नक्सलवादियों की रंजिश होना स्वाभाविक है और क्योंकि देश में कॉंग्रेसी नेताओं की जनता के हित में ऐसी परिस्थिति से जूझने की मंशा और हिम्मत कुछ ज्यदा है तो उनसे निबटने के लिए नक्सलवादी कुछ भी कर गुजरने की स्थिति में आ गए हैं और ऐसे में आदिवासियों को भी [जिनके लिए लड़ने का वे दम भरते हैं ]निशाने पर लेने से गुरेज नहीं कर रहे हैं और इसी का परिणाम है २५ मई २०१३ का छत्तीसगढ़ में कौंग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला .
जिसमे कई अन्य कॉंग्रेसी नेताओं के साथ साथ नक्सलियों ने सलवा जुडूम के संस्थापक ''महेन्द्र कर्मा'' को भी मौत के घाट उतार दिया जिनकी बदौलत वहां आम जनता को भी नक्सलियों से निबटने को हथियार सरकारी मदद के रूप में मिल गए थे .एक वर्ग विहीन समाज की स्थापना के उद्देश्य को लेकर चलने वाले नक्सल वादी अपने ही हैं और दुःख भी इसी बात का है कि ये युद्ध दोनों ओर से अपने अपनों के द्वारा लड़ा जा रहा है .भाई से भाई की दुश्मनी की विसंगति जो हमारे समाज में आई है उसका असर यहाँ भी पड़ा है और सत्ता की चाह इन्हें भी उसी कौंग्रेस का दुश्मन बनाने की राह पर ले आई है जिसने सिख आतंकवाद में इंदिरा गाँधी और लिट्टे आतंकवाद में राजीव गाँधी जैसे भारत रत्नों को खोया है .देश हित के लिए हमेशा अपना खून बहाकर दुश्मनों के दांत खट्टे करने की क्षमता रखने वाली कौंग्रेस को आने वाले विधानसभा चुनावों में अपने सफल प्रदर्शन के लिए भयाक्रांत करने की यह कोशिश कितनी सफल रहेगी इसका जवाब तो कौंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी जी ने दे ही दिया है
''तुम्हें इस दौर के हालात का मंज़र बताऊँ क्या ,
हुई है आँख मेरी आंसुओं से तर बताऊँ क्या ,
मैं अपने दुश्मनों से खुलके दो-दो हाथ कर लेता ,
उठा है दोस्तों के हाथ में पत्थर बताऊँ क्या .''
१९६७ में जन्मी एक विचारधारा जिसका उद्देश्य जनांदोलन के माध्यम से एक वर्गविहीन समाज की स्थापना करना था आज जिस उद्देश्य पर काम कर रहा है वह उसकी हाल की बहुत सी गतिविधियों से साफ़ हो गया है और वह महान उद्देश्य है ''एक व्यक्ति विहीन समाज की स्थापना .''
वह आन्दोलन जो १९६७ में माकपा से विभाजित हुआ ,उग्रवादी धड़े का विचार था ,जिसमे चारू मजूमदार ,कानू सान्याल और सरोज दत्त थे जिन्होंने माओवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक होने के कारण भारतीय कमुनिस्ट पार्टी [मार्क्सवादी -लेनिनवादी ]बनाई और पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग जिले के अत्यंत पिछड़े गाँव नक्सलबाड़ी में मई १९६७ में शोषक ज़मींदारों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर जिस सशस्त्र आन्दोलन की नीव रखी थी उसे ही नक्सलवाद के नाम से जाना गया और तब से लेकर आज तक किये जाने वाले इस आन्दोलन के नीति परिवर्तन ने इसे वर्ग विहीन समाज की स्थापना से भटकाकर व्यक्तिविहीन समाज की स्थापना की ओर धकेल दिया है .
सरकारी उपेक्षा के शिकार आदिवासी समुदाय को मोहरा बना यह आन्दोलन पिछले काफी समय से उथल-पुथल मचाने में लगा है और ऐसे में जिन राज्यों में यह आन्दोलन चरम पर है वहां की जनता को शोषण से बचाने के लिए आगे आने वाले नेताओं से नक्सलवादियों की रंजिश होना स्वाभाविक है और क्योंकि देश में कॉंग्रेसी नेताओं की जनता के हित में ऐसी परिस्थिति से जूझने की मंशा और हिम्मत कुछ ज्यदा है तो उनसे निबटने के लिए नक्सलवादी कुछ भी कर गुजरने की स्थिति में आ गए हैं और ऐसे में आदिवासियों को भी [जिनके लिए लड़ने का वे दम भरते हैं ]निशाने पर लेने से गुरेज नहीं कर रहे हैं और इसी का परिणाम है २५ मई २०१३ का छत्तीसगढ़ में कौंग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला .
नक्सली हमला: प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व बेटे समेत 27 की हत्या
जिसमे कई अन्य कॉंग्रेसी नेताओं के साथ साथ नक्सलियों ने सलवा जुडूम के संस्थापक ''महेन्द्र कर्मा'' को भी मौत के घाट उतार दिया जिनकी बदौलत वहां आम जनता को भी नक्सलियों से निबटने को हथियार सरकारी मदद के रूप में मिल गए थे .एक वर्ग विहीन समाज की स्थापना के उद्देश्य को लेकर चलने वाले नक्सल वादी अपने ही हैं और दुःख भी इसी बात का है कि ये युद्ध दोनों ओर से अपने अपनों के द्वारा लड़ा जा रहा है .भाई से भाई की दुश्मनी की विसंगति जो हमारे समाज में आई है उसका असर यहाँ भी पड़ा है और सत्ता की चाह इन्हें भी उसी कौंग्रेस का दुश्मन बनाने की राह पर ले आई है जिसने सिख आतंकवाद में इंदिरा गाँधी और लिट्टे आतंकवाद में राजीव गाँधी जैसे भारत रत्नों को खोया है .देश हित के लिए हमेशा अपना खून बहाकर दुश्मनों के दांत खट्टे करने की क्षमता रखने वाली कौंग्रेस को आने वाले विधानसभा चुनावों में अपने सफल प्रदर्शन के लिए भयाक्रांत करने की यह कोशिश कितनी सफल रहेगी इसका जवाब तो कौंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी जी ने दे ही दिया है
Rahul Gandhi calls Chhattisgarh attack, an attack on democracy
हाँ अन्य राज्यों में सरकार की नाकामी के नाम पर क्रोध का उबाल दिखाने वाली भाजपा आज क्यों अपनी कार्यक्षमता का आकलन नहीं करती ?क्यों नहीं बताती कि दो दो घंटे तक पहले से घोषित परिवर्तन रैली यात्रा के मार्ग पर क्यों अति संवेदनशील इलाके में सही सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गयी ?क्यों नहीं देखती अपनी क्षमता कि एक राज्य का नक्सलवाद तो संभलता नहीं फिर देश सँभालने की बात कैसे सोची जा सकती है जबकि देश में ऐसे नक्सलवाद को छोड़कर और भी बहुत से उथल-पुथल मचाने वाले मुद्दे हैं ?कौंग्रेस हमेशा से बलिदान देती आई है ,उस पर ऐसे हमलों से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है हाँ छत्तीसगढ़ में भाजपा की दुबारा ताजपोशी ज़रूर खतरे में पड़ गयी है .
कॉंग्रेसी हिम्मत तो राहुल गाँधी ने अपने हौसले से बयां कर ही दी है और ये हौसले वे रखते हैं इसमें कोई शक भी नहीं क्योंकि वे स्वयं ऐसे आतंकवाद में अपनी दादी व् पिता को खोने का दंश झेल चुके हैं और तब भी इससे टकराने को सामने खड़े हैं और इसलिए उनकी प्रेरणा उनके कार्यकर्ताओं में वास्तविक जोश भर सकती है क्योंकि सभी जानते हैं कि ये कोरी बयानबाजी नहीं हैं और न ही चुनावी स्टंट .उनके इरादे आज यही उजागर करते हैं -
''तू हर तरह से ज़ालिम मेरा सबर आजमाले ,
तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
आप भी कभी यहाँ पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (27-05-2013) के
सोमवारीय गुज़ारिश :चर्चामंच 1257 में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
RECENT POST : बेटियाँ,
तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''
आपने सच कहा आपके समर्थन में मेरा पोस्ट एक नज़र देखें
http://zaruratakaltara.blogspot.in/2013/05/blog-post_26.html