जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .
पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.
मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह हमने हासिल की है .
जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी ,
मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .
पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
--
यही सच है
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
---------------------------
ये देह जनित रिश्ते दो दिन को जुड़े हैं हर आत्मा की डोर परमात्मा से जुडी है !!
---------------------------
आशीर्वाद -
अंकल आंटी