वो चेहरा जो शक्ति था मेरी , वो आवाज़ जो थी भरती ऊर्जा मुझमें , वो ऊँगली जो बढ़ी थी थाम आगे मैं , वो कदम जो साथ रहते थे हरदम, वो आँखें जो दिखाती रोशनी मुझको , वो चेहरा ख़ुशी में मेरी हँसता था , वो चेहरा दुखों में मेरे रोता था , वो आवाज़ सही बातें ही बतलाती , वो आवाज़ गलत करने पर धमकाती , वो ऊँगली बढाती कर्तव्य-पथ पर , वो ऊँगली भटकने से थी बचाती , वो कदम निष्कंटक राह बनाते , वो कदम साथ मेरे बढ़ते जाते , वो आँखें सदा थी नेह बरसाती , वो आँखें सदा हित ही मेरा चाहती , मेरे जीवन के हर पहलू संवारें जिसने बढ़ चढ़कर , चुनौती झेलने का गुर सिखाया उससे खुद लड़कर , संभलना जीवन में हरदम उन्होंने मुझको सिखलाया , सभी के काम तुम आना मदद कर खुद था दिखलाया , वो मेरे सुख थ...
टिप्पणियाँ
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (22-05-2013) के झुलस रही धरा ( चर्चा - १२५३ ) में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गुलामी
दायित्व ही दायित्व
झुका शीश
बहुत सुंदर रचना,,,
Recent post: जनता सबक सिखायेगी...
बढिया।
मेरे TV स्टेशन ब्लाग पर देखें । मीडिया : सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/05/blog-post_22.html?showComment=1369302547005#c4231955265852032842
सार्वभौमिक सत्ता
सर्वत्र प्रभुत्व
सदा विजय
सबके द्वारा अनुमोदन
मेरी अधीनता
सब हो मात्र मेरा
काफी हद तक सच ....
सुन्दर रचना
साभार !
--बस पुरुष मन अधिक मुखर होता है स्त्री अंतर्मुखी.....