युगपुरुष पंडित जवाहरलाल नेहरू को शत-शत नमन
''सिमटे तो ऐसे सिमटे तुम
बंधे पाँखुरी में गुलाब की ,
बिखरे तो ऐसे बिखरे तुम
खेत खेत की फसल हो गए .''
मशहूर कवि भारत भूषण जी की ये पंक्तियाँ देश के प्रथम प्रधानमंत्री और उससे भी पहले देश के ह्रदय पर विराजने वाले ,देश के माथे पर मुकुट की भांति शोभायमान पंडित जवाहर लाल नेहरू जी को समर्पित हैं और दो पंक्तियों में ही नेहरू जी के व्यक्तित्व का व्यापक विश्लेषण हम जैसी आने वाली पीढ़ियों के समक्ष प्रस्तुत किया है जिससे हम आज के मिथ्यावादी स्वार्थ में डूबी हुई राजनेताओं की पंक्ति से उन्हें पृथक कर देश के एक ऐसे रत्न को जान सकें जिन्होंने देश और देश की जनता से मात्र ये आशा की थी कि-
''अगर मेरे बाद कुछ लोग मेरे बारे में सोचें तो मैं चाहूंगा कि वे कहें -वह एक ऐसा आदर्श था जो अपने पूरे दिल और दिमाग से हिन्दुस्तानियों से मुहब्बत करता था और हिंदुस्तानी भी उसकी कमियों को भूलकर उसको बेहद अज़हद मुहब्बत करते थे .''
२७ मई १९६४ को देश को असहनीय दुःख देते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू स्वर्ग सिधार गए .देश असहनीय दुःख में डूब गया .पुर्तगाल को छोड़कर विश्व का कोई राष्ट ऐसा नहीं था जहाँ पंडित जी की मृत्यु पर शोक प्रगट न किया गया हो .संसार के समस्त राष्ट्राध्यक्षों ने श्रीमती गांधी तथा राष्ट्रपति को संवेदना सन्देश भेजे .विश्व के राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने उनकी शव यात्रा में भाग लिया और उनके अंतिम दर्शन करके पुष्पांजलि समर्पित की. विश्व उन्हें खोने के कारण व्याकुल था किन्तु उनसे बहुत पहले व्याकुल थे पंडित जवाहर लाल नेहरू इस देश के प्रति अपने कर्तव्यों और वादों को पूर्ण करने के लिए .उनकी दिनचर्या जो कुछ दिनों से परिवर्तित हो गयी थी उससे ही लगने लगा था कि उन्हें अपने जीवन का अंत कुछ अनुभव होने लगा था
इसी कारण से उन्होंने और भी अधिक कार्य करना आरम्भ कर दिया था .पिछले एक वर्ष से उन्होंने अपनी मेज पर ,अपने हाथ से ,पैड पर अमेरिकी कवि रॉबर्ट फ्रास्ट की निम्नलिखित कविता लिख रखी थी .यह पैड उनकी मेज पर एक साल से रखा रहता था जिस पर वे काम करते थे .इन पंक्तियों से उन्हें प्रेरणा मिलती थी .पंक्तियों का अनुवाद इस प्रकार है -
''जंगल प्यारे हैं ,घनेरे और अँधेरे !
लेकिन मैंने वायदे किये थे ,जो पूरे करने हैं .
और अभी मीलों दूर का ,सफर करना है .
दूर जाना है ,सोने से पहले ,दूर मीलों दूर .''
एक भावुक और एक पत्नीनिष्ठ की भांति श्री नेहरू ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कमला नेहरू की भस्म जिनका देहावसान १९३६ में हुआ था ,एक मंजूषा [डिबिया ]में युगों से संजों कर रखी थी और दूसरी में मातृभक्त पुत्र ने अपनी माँ स्वरुप रानी की .उनकी अंतिम स्मृति पंडित जी के साथ साथ गंगा में विसर्जित की गयी,प्रयागराज के संगम पर यह भी अपूर्व संगम था.
स्वर्गीय नेहरू को भारत कितना प्रिय था और वे भारतवासियों से कितना स्नेह करते थे ,यह उनकी लिखी हुई अद्वित्य एवं आदर्श वसीयत से स्पष्ट हो जाता है .श्री नेहरू ने अपनी वसीयत में गंगा को भारत की सभ्यता और संस्कृति का प्रतिक बताया है .वे जब तक जीवित रहे ,उन्होंने प्रत्येक क्षण भारत की सेवा और उन्नति के अथक प्रयासों में ही व्यतीत किया .मृत्यु के बाद भी वे इसकी मिटटी के कण-कण में मिल जाना चाहते थे .उनकी इच्छा थी कि उनके शरीर की रख भी व्यर्थ न जाये ,उसका भी भारत के खेतों में खाद रूप में उपयोग हो और उसी का अंग बन जाये .१२ जून १९६४ को पंडित नेहरू की भस्म उनकी अंतिम इच्छानुसार उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक खेतों ,खलिहानों ,पहाड़ियों और घाटियों पर बिखेर दी गयी और वह भारत के कण कण का अभिन्न अंग बन गयी .यह कार्य भारतीय वायु सेना को सौंपा गया था .भस्म बिखेरने के लिए २० स्थान निश्चित किये गए थे .इन स्थानों पर विमानों और हेलीकॉप्टरों द्वारा प्रधानमंत्री का पवित्र भस्म बिखेर दिया गया .उनकी भस्म को कश्मीर से पहलगाम ले जाने वाले वायुयान में श्रीमती इंदिरा गांधी थी और अहमदनगर के किले के पास बिखेरने वाले विमान में श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित .
जवाहर लाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में एक धनाढ्य वकील मोतीलाल नेहरू के घर हुआ था। उनकी माँ का नाम स्वरूप रानी नेहरू था। वह मोतीलाल नेहरू के इकलौते पुत्र थे। इनके अलावा मोती लाल नेहरू को तीन पुत्रियां थीं। नेहरू कश्मीरी वंश के सारस्वत ब्राह्मण थे।
जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से, और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। इंग्लैंडमें उन्होंने सात साल व्यतीत किए जिसमें वहां के फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के लिए एक तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित किया।
जवाहरलाल नेहरू 1912 में भारत लौटे और वकालत शुरू की। 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई। 1917 में जवाहर लाल नेहरू होम रुल लीग में शामिल हो गए। राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद 1919 में हुई जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए। उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। नेहरू, महात्मा गांधी के सक्रिय लेकिन शांतिपूर्ण, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति खासे आकर्षित हुए।
नेहरू ने महात्मा गांधी के उपदेशों के अनुसार अपने परिवार को भी ढाल लिया। जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपडों और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया। वे अब एक खादी कुर्ता और गाँधी टोपी पहनने लगे। जवाहर लाल नेहरू ने 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया और इस दौरान पहली बार गिरफ्तार किए गए। कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
जवाहरलाल नेहरू 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में दो वर्ष तक सेवा की। 1926 में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से सहयोग की कमी का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया।
1926 से 1928 तक, जवाहर लाल ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में सेवा की। 1928-29 में, कांग्रेस के वार्षिक सत्र का आयोजन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में किया गया। उस सत्र में जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने पूरी राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया, जबकि मोतीलाल नेहरू और अन्य नेताओं ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ही प्रभुत्व सम्पन्न राज्य का दर्जा पाने की मांग का समर्थन किया। मुद्दे को हल करने के लिए, गांधी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि ब्रिटेन को भारत के राज्य का दर्जा देने के लिए दो साल का समय दिया जाएगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए एक राष्ट्रीय संघर्ष शुरू करेगी। नेहरू और बोस ने मांग की कि इस समय को कम कर के एक साल कर दिया जाए। ब्रिटिश सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
दिसम्बर 1929 में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें 'पूर्ण स्वराज्य' की मांग की गई। 26 जनवरी, 1930 को लाहौर में जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया। गांधी जी ने भी 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया। आंदोलन खासा सफल रहा और इसने ब्रिटिश सरकार को प्रमुख राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया.
जब ब्रिटिश सरकार ने भारत अधिनियम 1935 प्रख्यापित किया तब कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। नेहरू चुनाव के बाहर रहे लेकिन ज़ोरों के साथ पार्टी के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया। कांग्रेस ने लगभग हर प्रांत में सरकारों का गठन किया और केन्द्रीय असेंबली में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की।
नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए 1936 और 1937 में चुने गए थे। उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और 1945 में छोड दिया गया। 1947 में भारत और पाकिस्तान की आजादी के समय उन्होंने अंग्रेजी सरकार के साथ हुई वार्ताओं में महत्वपूर्ण भागीदारी की।[विकिपीडिया से साभार]
पंडित नेहरू पर अंग्रेजीदां होने का आरोप लगाया जाता है जबकि अंगेज तो स्वयं उनसे परेशान थे इसीलिए कलकत्ते में राजद्रोहात्मक भाषण देने के अपराध में इन्हें दो वर्ष की जेल यात्रा मिली और सन १९३९ में द्वित्य विश्वयुद्ध प्रारम्भ होने पर जब भारतीयों को सलाह के बिना ही अंग्रेजों ने भारतवर्ष को युद्ध के लिए सम्मिलित राष्ट्र घोषित कर दिया तब पंडित नेहरू ने सरकार की इस नीति की कटु आलोचना की और समस्त देश में इसके विरुद्ध आंदोलन प्रारम्भ हो गया .जनता ने जवाहर के स्वर में स्वर मिलाया फलस्वरूप अंग्रेजों ने इन्हें पुनः राजद्रोह के अपराध में चार वर्ष के लिए कारावास का दंड दे दिया .भीषण हाहाकार के पश्चात १५ जून १९४५ को पंडित नेहरू को छोड़ दिया गया यह उनकी नवी जेल यात्रा थी और यह वह व्यक्तित्व था जिस पर आज अंग्रेजीदां होने का आरोप लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि यह हमारे धर्मग्रंथों में ही कहा गयाहै कि अच्छी शिक्षा कहीं से भी मिले ग्रहण कर लेनी चाहिए और नेहरू जी को अंग्रेजों का रहन एक ढंग पसंद आता था और उन्होंने उसे ही अपनाया था न कि अंग्रेजों को और यह उनकी स्वतंत्रता संग्राम में अपने जीवन की सभी सुख सुविधाओं को दी गयी आहुतियों से स्पष्ट हो ही जाता है .श्री नेहरू के निधन से राष्ट्र को जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति युगों तक भी न हो सकेगी .मानव कल्याण के लिए यदा कदा उत्पन्न होने वाले ये महामानव केवल और केवल जनता की सेवा करने ही आये थे .वे सफल साहित्यकार थे ,दूरदर्शी थी ,कूटनीतिज्ञ थे ,तत्वदर्शी साधक थे ,मर्मज्ञ राष्टचिंतक थे ,युगपुरुष दासता के मुक्ति दाता थे और थे युग निर्माता ,युग सृष्टा .उनके जीवन के प्रमुख साथी थे अभय और साहस .वे चाहते तो सफल बैरिस्टर बनकर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बन सकते थे ,वे चाहते तो संसार के प्रसिद्द लेखक हो सकते थे भारत एक खोज इन्ही की पुस्तक ''दी डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया '' पर आधारित है और जेल से लिखे गए इनके ''पुत्री के नाम पिता के पात्र '' भी विश्वविख्यात पुस्तक हैं .वे चाहते तो धनी पिता के उत्तराधिकारी के रूप में आनंद भवन में विलास और विनोद कर सकते थे ,वे चाहते तो तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से सझौता करके उच्च पद प्राप्त कर सकते थे परन्तु उन्होंने सब सुख सुविधाओं को एक तरफ कर दिया और जनता की सेवा को ही अपना जीवन धर्म बनाया आज उनका निवास स्थान आनंद भवन सरकरी भवन है और जनता के लिए खुला है .निरन्तर तीस वर्षों तक वे ब्रिटिश शासन से जूझते रहे ,जेलों में अनंत यातनाएं सही अपनी आँखों के आगे अपने घर और वैभव को बर्बाद होते हुए देखा किन्तु अपने पुनीत पथ का परित्याग नहीं किया तभी तो देश का बच्चा बच्चा भी ''जवाहर लाल की जय''बोलने लगा था .उन्हें ''दासता के मुक्ति दाता ''आधुनिक भारत के निर्माता ''कहा गया नेहरू जी ने अपने १७ वर्ष के प्रधानमंत्रित्व काल में अपनी शक्ति और सामर्थ्य से भी अधिक भारत की सर्वांगीण उन्नति के लिए कार्य किया इतिहास इसे कभी नहीं भुला सकता .नेहरू कहा करते थे -
''मुझे इसकी कतई चिंता नहीं है कि मेरे बाद दूसरे लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे .मेरे लिए तो बस इतना ही काफी है कि मैंने अपने को ,अपनी ताकत और क्षमता को भारत की सेवा में खपा दिया .''
और नेहरू जी के चले जाने के ५० वर्ष बाद भी हम आज भी उन्हें उनके कार्यों और समर्पित देश व् जनसेवा के कारण अपने बीच महसूस करते हैं और कवि भारत भूषण जी की उपरोक्त कविता की निम्न पक्तियों को दोहराते हुए उन्हें शत-शत नमन करते हैं -
''जब जब गेंहू धान पकेंगें
तुम किसान की हंसी बनोगे ,
तीरथ तीरथ लहर लहर पर
किरणों से जय हिन्द लिखोगे .''
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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