नैतिकता अपना पराया नहीं देखती

 
आप सभी ने ''गोपी ''फ़िल्म तो देखी ही होगी .आरम्भ में ही गोपी एक गाना गाता है और उस गाने में जो बात कही गयी है वह यूँ है -
''धर्म भी होगा ,करम भी होगा परन्तु शर्म नहीं होगी
बात बात पर मात-पिता को बेटा आँख दिखायेगा .
.................................................भरी सभा में नाचेंगी घर की बाला
कैसा कन्यादान पिता ही कन्या का धन खायेगा .''
आदि भी बहुत कुछ सही बैठ रहा है आज के समाज ,देश  पर क्योंकि नैतिकता यदि वास्तव में देखा जाये और सच्चे ह्रदय से कहूं तो आज केवल शब्दों में ही सीमित रह गयी है .
हमारे द्वारा बड़े बड़े दावे किये जाते हैं कि हम नैतिक हैं ,हमारे संस्कार हमें इस बात की इज़ाज़त नहीं देते,उस बात की इज़ाज़त नहीं देते किन्तु जो हम करते हैं अगर अपने गिरेबां में झांककर देखें तो क्या उसकी इज़ाज़त देते हैं जो हम कर रहे हैं .
आज लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और राजनीतिक स्तर गिर रहा है इसलिए सबसे पहले अपनी नैतिकता की परीक्षा हम यही से कर सकते हैं .हममे से लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी पार्टी और उसके सिद्धांतों में निष्ठां रखते हैं और इसी का प्रभाव है कि अपनी पार्टी के नेता की हर बात सही लगती है और दूसरी पार्टी के नेता की हर बात गलत .मैं स्वयं इस बीमारी की शिकार हूँ क्योंकि मैं दिल से कॉंग्रेस से जुडी हूँ और उससे भी ज्यादा गांधी नेहरू परिवार से और इसलिए मुझे भाजपा के राजस्थान के नेता हीरालाल रेगर की सोनिया -राहुल पर की गयी अभद्र टिप्पणी बेहद नागवार गुज़री जब ऐसा हुआ तब मुझे ख्याल आया कि आजकल ही में कॉंग्रेस के सहारनपुर के उम्मीदवार इमरान मसूद ने मोदी के प्रति हिंसक टिप्पणी की थी तब तो मेरे मन में उसके प्रति कोई ऐसे भाव नहीं आये बल्कि मन एक तरह से उनके विक्षुब्धता का समर्थन ही कर रहा था और ऐसा ही मैं अन्य लोगों के बारे में कह सकती हूँ क्योंकि इमरान मसूद की टिप्पणी पर तो उनकी हैसियत तक पर सवाल उठा दिए गए और उन्हें जेल भी जाना पद गया किन्तु सोनिया- राहुल के लिए इतनी अभद्र टिप्पणी को बहुत ही हलके में लिया गया और लगभग चुप्पी ही साध ली गयी और इसमें वे लोग भी थे जो दामिनी मामले में राष्ट्रपति जी के पुत्र द्वारा महिलाओं पर ''डेंटेड-पेंटेड '' वाली टिप्पणी पर बबाल खड़े करने पर आ गए थे ऐसे में जब हम सभी गलत टिप्पणी किये जाने पर भी टिप्पणीकार के सम्बन्ध में अपनी पसंद/नापसंद देखते हैं तो क्या नैतिक होने का वास्तव में दम भर सकते हैं ?
समाज में अपनी बेटी/बहू के साथ अभद्रता होने पर ''माहौल ख़राब है '' और दूसरे की बेटी/बहू के साथ छेड़खानी होने पर फ़ौरन ये कहने को आगे बढ़ जाते हैं कि उनका तो चाल-चलन ही ख़राब है और इसी का परिणाम होता है कि छेड़खानी /बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध की शिकार पीड़िता होने पर भी अपराधी की ज़िंदगी गुज़ारने को मजबूर होती है .दामिनी मामले ने लोगों की नैतिकता को गहराई तक झकझोरा था ,वे एक साथ खड़े हुए किन्तु आज की स्वार्थपरता नैतिकता पर फिर से हावी ही कही जायेगी क्योंकि इस सम्बन्ध में जो परिवर्तन हुए वे मात्र न्यायालय की इस सम्बन्ध में की जाने वाली कार्यवाही में ही हुए किन्तु समाज के लिए ये फिर से आयी-गयी बात हो गए और देखते देखते तब से लेकर अब तक गैंगरेप की संख्या पहले से चार गुनी हो गयी किन्तु हमरी सोच वही अपनी/परायी बेटी/बहू तक ही सीमित रही क्या हमारी ये सोच हमारी नैतिकता को सवालों के घेरे में नहीं लाती?
घर की बात करें तो जब दूसरा परिवार हमारी कोई संपत्ति हड़पता है तो उसे चोर/अपराधी कहा जाता है ,या जब अपनी बहन /बेटी को किसी और का भाई/बेटा छेड़ता है तो तलवारें /लाठी -डंडे निकल आते हैं और जब अपने परिवार द्वारा किसी के रूपये /संपत्ति हड़पी जाती है तो वह अपना हक़ कहा जाता है , क्यूँ तब हमारी नैतिकता ज़ोर नहीं मारती ?
ऐसे में हम कैसे नैतिक कहे जा सकते हैं जबकि हम विशुद्ध स्वार्थ की ज़िंदगी जीने को अग्रसर हैं .नैतिकता क्या है हम जानते हैं किन्तु उसे अपनाना हमारे स्वाभाव में ही नहीं है क्योंकि नैतिकता अपना /पराया नहीं देखती वह गलत बात पर चोट कर हमेशा सही बात के साथ खड़ी रहती है .वह नेहरू जी को ये बताने पर कि जिन लोगों के पानी के बिल जमा नहीं हुए हैं उनके कनेक्शन काटने का प्रस्ताव है यह नहीं देखती कि उस सूची में कर न देने वालों में उनके पिता 'मोतीलाल नेहरू ''का नाम भी है और जो घर आने पर पानी का कनेक्शन काटने पर गुस्सा होते हैं तो बेटे जवाहर से पिता मोतीलाल से यही कहलवाती है कि ''पैसे भर दीजिये और पानी ले लीजिये .''
आज ये स्थितियां नहीं हैं और इसलिए सही में यही कहा जा सकता है कि आज नैतिकता केवल शब्द में रह गयी है मायनों में इसका अस्तित्व समाप्त हो गया है .अब तो यही कहा जा सकता है -
''देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान
कितना बदल गया इंसान .......अपना बेच रहा ईमान .''
शालिनी कौशिक 
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

dheere dheere nitikta shabd shabdkosh se bhi mit jaayga ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-05-2014) को "फ़ुर्सत में कहां हूं मैं" (चर्चा मंच-1605) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बाहुबली ,चरित्र हीन ,असामाजिक तत्व और सत्ता लोभी लोग नैतिकता का नया शब्दकोष बना रहे है!
New post ऐ जिंदगी !
Anita ने कहा…
आज नैतिकता केवल शब्द में रह गयी है मायनों में इसका अस्तित्व समाप्त हो गया है .

आपने बिलकुल सही कहा है, आज समाज को अपने भीतर झाँकने की आवश्यकता है

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