माननीय राष्ट्रपति मतदान अवश्य करें .
Lok Sabha - Zee News
zeenews.india.com/tags/Lok-Sabha.html- माननीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने निष्पक्षता बनाये रखने के मद्देनज़र लोक सभा चुनाव २०१४ में मतदान न करने के निर्णय लिया है .ऐसे समय में जब भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा सम्पूर्ण देश में ''हर वोट ज़रूरी '' अभियान चलाकर प्रत्येक नागरिक को मतदान हेतु प्रेरित किया जा रहा है ,देश के संवैधानिक प्रधान द्वारा लिया गया यह निर्णय देश की संवैधानिक प्रक्रिया को धक्का पहुंचाता है .अपना पद धारण करते समय भारत का राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद ६० के अंतर्गत यह शपथ लेता है कि-''मैं ईश्वर की शपथ लेता हूँ कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन करूँगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण ,संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा और भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा .''साथ ही ,संविधान के ४२ वे संशोधन अधिनियम १९७६ द्वारा संविधान के भाग -४ के पश्चात एक नया भाग ४-क जोड़ा गया है जिसके द्वारा पहली बार संविधान में नागरिकों के मूल कर्तव्यों को समाविष्ट किया गया है .नए अनुच्छेद ५१[क] के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह -[क] संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों ,संस्थाओं ,राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ;हमारे संविधान की उद्देशिका भी नागरिक अधिकारों को सुलभ कराने का संकल्प लेती है .संविधान ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए भारत के हर नागरिक को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ,बिना भेदभाव १८ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर मत देने का अधिकार दिया है .अनुच्छेद ३२४ [२] के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा ही निर्वाचनों के अधीक्षण ,निदेशन और नियंत्रण के लिए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की जाती है .ऐसे में जब संविधान की प्रधानता भारत के राष्ट्रपति में निहित होती है तो उनका कर्तव्य बनता है कि वे संविधान द्वारा नियत संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग के संकल्प का पालन करें और भारत का राष्ट्रपति ही चूँकि भारत का प्रथम नागरिक भी होता है इस नाते उनका अधिकार है कि वे देश के शासन सञ्चालन के लिए अपना प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेंजे .अपने इस कर्तव्य व् अधिकार को निष्पक्षता के नाम पर राष्ट्रपति महोदय द्वारा नाकारा जाना संवैधानिक प्रमुख होने के नाते सही कदम नहीं कहा जा सकता .देश का शासन कैसी सरकार के हाथों में हो यह तय करना संविधान ने जनता के हाथों में ही सौंपा है और आज देश गणतंत्र है और गणतंत्र के प्रमुख को प्रत्येक जन की प्रेरणा बनते हुए वोट अवश्य करना चाहिए .शालिनी कौशिक[कौशल ]
टिप्पणियाँ
मैं आपसे सहमत हूं आदरणीया शालिनी कौशिक जी
अपने कर्तव्य व अधिकार को निष्पक्षता के नाम पर राष्ट्रपति महोदय द्वारा नकारा जाना संवैधानिक प्रमुख होने के नाते सही कदम नहीं कहा जा सकता .
देश का शासन कैसी सरकार के हाथों में हो यह तय करना संविधान ने जनता के हाथों में ही सौंपा है और आज देश गणतंत्र है और गणतंत्र के प्रमुख को प्रत्येक जन की प्रेरणा बनते हुए वोट अवश्य करना चाहिए .
दायित्वपूर्ण लघु आलेख
आभार...
मंगलकामनाओं सहित...
मैं आपसे सहमत हूं आदरणीया शालिनी कौशिक जी
अपने कर्तव्य व अधिकार को निष्पक्षता के नाम पर राष्ट्रपति महोदय द्वारा नकारा जाना संवैधानिक प्रमुख होने के नाते सही कदम नहीं कहा जा सकता .
देश का शासन कैसी सरकार के हाथों में हो यह तय करना संविधान ने जनता के हाथों में ही सौंपा है और आज देश गणतंत्र है और गणतंत्र के प्रमुख को प्रत्येक जन की प्रेरणा बनते हुए वोट अवश्य करना चाहिए .
दायित्वपूर्ण लघु आलेख
आभार...
मंगलकामनाओं सहित...
मैं आपसे सहमत हूं आदरणीया शालिनी कौशिक जी
अपने कर्तव्य व अधिकार को निष्पक्षता के नाम पर राष्ट्रपति महोदय द्वारा नकारा जाना संवैधानिक प्रमुख होने के नाते सही कदम नहीं कहा जा सकता .
देश का शासन कैसी सरकार के हाथों में हो यह तय करना संविधान ने जनता के हाथों में ही सौंपा है और आज देश गणतंत्र है और गणतंत्र के प्रमुख को प्रत्येक जन की प्रेरणा बनते हुए वोट अवश्य करना चाहिए .
दायित्वपूर्ण लघु आलेख
आभार...
मंगलकामनाओं सहित...