किसान और फसल क्या सूली ही चढ़ने के लिए ?

दैनिक जनवाणी से साभार 
 ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं ,विष्णु पालन करते हैं और महेश संहार करते हैं यदि इस तथ्य की गहराई में हम जाकर देखें तो भगवान विष्णु के इस कर्तव्यपालन में हमारे कृषक बराबर की भागीदारी करते हैं और इसलिए ये हमारे अन्नदाता कहे जाते हैं .हमारे द्वित्य प्रधानममंत्री माननीय लाल बहादुर शास्त्री जी ने भी इसलिए ''जय जवान -जय किसान ''का नारा बुलंद किया था .किसान का जीवन सदैव संघर्ष सहकर भी हम सभी के लिए सुख व् आंनद की वर्षा करने वाला रहा है .जिस प्रकार फलों से लदे वृक्ष हमेशा झुके रहते हैं इसी तरह हम सबका पेट भरने को हमारे किसानों के शरीर सर्वदा सर्दी-गर्मी-बारिश में खेतों में जुते रहते हैं और इस सबके बाद भी उन्हें क्या मिलता है कभी आकाश के मालिक भगवान की तरफ से अन्याय तो कभी धरती की मालिक हमारी लोकतान्त्रिक सरकार से अत्याचार और परिणाम यह होता है कि कभी हमारे किसान ख़ुदकुशी करते हैं तो कभी उनकी मेहनत अर्थात उनकी उपजाऊ फसल सूली चढ़ती है . गन्ना मूल्य उत्तर प्रदेश में दूसरे साल भी २७५,२८० और २९० रूपये प्रति क्विंटल ही रहने की बात सामने आते ही किसानों ने उत्तर प्रदेश में गन्ने की होली जलाई और ये तो होगा ही जब सरकार चीनी मीलों के सामने घुटने टिकेगी .एक तरफ चीनी कभी ३९ तो कभी ३८,३७ किलों के भाव तक पहुँच रही है और चीनी के उत्पादन का मूल गन्ना उपेक्षित भाव ही पा रहा है जब पडोसी राज्य हरियाणा में गन्ना ३०५ का भाव पा सकता है तो उत्तर प्रदेश में उसके साथ ये सौतेला बर्ताव क्यों ?किसानों के हित देखने का दम भरने वाली सरकार आखिर कब तक किसानों को इस तरह मरने व् फसल जलाने को विवश करती रहेगी जो कि पूर्णतया उन पर अत्याचार करने के समान है ऐसे में तो यही कहना पड़ेगा कि अगर सरकार हमारे किसानों की नहीं सुनती तो उसे सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि जब तक हमारा किसान खुशहाल नहीं है हमारा देश /प्रदेश खुशहाल हो ही नहीं सकता .

शालिनी कौशिक
     [कौशल ]

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