सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं .WHY ?
आमतौर पर यदि हम ध्यान दें तो जहाँ देखो सौतेली माँ की ही बुराई जोरों पर होती है.किसी भी बच्चे की माँ अगर सौतेली है तो उसके साथ सभी की सहानुभूति होती है किन्तु कहीं भी सौतेले बाप का जिक्र नहीं किया जाता जबकि मेरी अपनी जानकारी में यदि मैं देखती हूँ तो हर जगह भेदभाव ही पाती हूँ.अभी हाल में ही मेरी जानकारी की एक लड़की का निधन हो गया वह लम्बे समय से बीमार थी किन्तु कहा गया कि लम्बे इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो पाई.सभी को उसके पिता से बहुत सहानुभूति थी और सभी यही कह रहे थे कि ये तो अपनी लड़की से बहुत प्यार करते थे और दुःख में इनके आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं.ये मुझे बाद में पता चला की वह लड़की अपनी माँ के साथ आयी थी अर्थात उसकी माँ की ये दूसरी शादी थी और उस लड़की के वे दूसरे पिता थे.अब कीजिये गौर इसके दूसरे पहलू पर यदि यह स्थिति किसी महिला के साथ होती तो सब क्या कहते-''सौतेली माँ थी मगरमच्छी आंसू बहा रही थी.इसीने उसकी कोई देखभाल नहीं की इसीलिए वह मर गयी.''आखिर ये हर जगह नारी और पुरुष की स्थिति में अंतर क्यों कर दिया जाता है?
मेरी सहेली की बहन की जिससे शादी हुई है उसके पहले से ही दो बेटियां हैं और वह उन दोनों बेटियों को भी अपने बच्चों की तरह ही पाल रही है.और ये नहीं कि ये कोई दो दिन की बात है लगभग १५ साल पहले हुई इस शादी की सफलता मेरी सहेली की बहन पर ही निर्भर रही है.जबकि मेरे पड़ोस की ही एक लड़की जिसका तलाक हुआ है और जिसके एक लड़का है उसके दूसरी शादी होने पर उसके माता पिता ने उसके लड़के को अपने पास रखा है क्योंकि उसका दूसरा पति उसके बेटे को अपनाने को तैयार नहीं था.
मेरी एक सहपाठिनी मित्र जिसके पिता की मृत्यु पर उसकी मम्मी की शादी एक ऐसे पुरुष से हो गयी जिसके बच्चे भी उसके मम्मी से बड़े थे और मेरी सहपाठिनी को उसके पूर्व पिता की ओर से कुछ संपत्ति भी मिली थी किन्तु इस सबके बावजूद उसके चेहरे पर हर वक़्त सहमापन रहता था और आज अपनी छोटी बहन की शादी वह ही करवा चुकी है ओर स्वयं सरकारी नौकरी कर रही है किन्तु उसके सौतेले पिता को उसकी जिंदगी की कोई सुध नहीं.
मेरा तो यही कहना है कि जब भी सौतेले शब्द का जिक्र हो तो केवल वही बुराई का केंद्र बिंदु हो न कि सौतेले माँ या बाप.क्योंकि जहाँ एक ओर अब्राहम लिंकन की सौतेली माँ की महानता हमारे सामने है वही सौतेले बाप द्वारा कई बच्चों को गंडासे से काटने के उदाहरण भी हमारे समक्ष हैं.
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
लेकिन समाज पुरुष और महिलाओं दोनों के ही ऐसे ढेरों उद्धरणों से भरा पड़ा है।
विचार करने योग्य ☺
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उसकी छोटी सी डांट भी अगर चाहे कितनी सत्य हो बुरी लगेगी
अगर माँ सौतेली है तो परन्तु दूसरा पहलू पिता का रुखा व्यवहार जो कोई देख कर भी नहीं देखना चाहता।