ये था सरकारी मंसूबा - जाट आरक्षण
देश एकबार फिर आरक्षण की आग में झुलस रहा है और इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है. हरियाणा सरकार आंदोलनकारियों की मांग मानने को राजी हो गई है और ये सब तब जब लोगों की दुकानों में आग लगा दी गई, बाजार लूट लिए गए, बसों, ट्रेनों को नुकसान पहुंचाया गया, मतलब क्या निकला यही ना कि इस देश मे अगर किसी को अपनी बात मनवानी है तो उसे जनजीवन को अस्त-व्यस्त करना होगा, तोड़फोड़ करनी होगी, सरकारी प्रतिष्ठानों में आग लगानी होगी. मात्र दो दिन में जाटों ने देश हिला दिया जबकि ये केवल एक राज्य में आरक्षण मांगने चले थे लेकिन अपना हित साधने में सफल रहे और इस तरह एक संदेश सारे देश के बरसों से जुटे आंदोलनकारियों को दे गये विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाइकोर्ट खंडपीठ की मांग में लगे वकीलों के समुदाय को. और संदेश यह है -
"खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले ,
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है."
इसलिए सरकार का इनके प्रति सही कदम न उठाते हुए इनकी नाजायज मांगों को स्वीकार करना देश में अराजकता को फैलाने में सहयोग करना ही कहा जाएगा क्योंकि सेना को भी वहां कार्यवाही करने को तब मुक्त किया गया जब जनजीवन लुटपिट चुका या यूँ कहें तो ज्यादा सही होगा कि सरकार को अपने मंसूबे को पूरा करने का उपयुक्त माहौल मिल चुका.
शालिनी कौशिक
[ कौशल ]
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