मेरी माँ


वो चेहरा जो
        शक्ति था मेरी ,
वो आवाज़ जो
      थी भरती ऊर्जा मुझमें ,
वो ऊँगली जो
     बढ़ी थी थाम आगे मैं ,

वो कदम जो
    साथ रहते थे हरदम,
वो आँखें जो
   दिखाती रोशनी मुझको ,
वो चेहरा
   ख़ुशी में मेरी हँसता था ,
वो चेहरा
   दुखों में मेरे रोता था ,
वो आवाज़
   सही बातें  ही बतलाती ,
वो आवाज़
   गलत करने पर धमकाती ,

वो ऊँगली
   बढाती कर्तव्य-पथ पर ,
वो ऊँगली
  भटकने से थी बचाती ,
वो कदम
   निष्कंटक राह बनाते ,
वो कदम
   साथ मेरे बढ़ते जाते ,
वो आँखें
   सदा थी नेह बरसाती ,
वो आँखें
   सदा हित ही मेरा चाहती ,
मेरे जीवन के हर पहलू
   संवारें जिसने बढ़ चढ़कर ,
चुनौती झेलने का गुर
     सिखाया उससे खुद लड़कर ,
संभलना जीवन में हरदम
     उन्होंने मुझको सिखलाया ,
सभी के काम तुम आना
    मदद कर खुद था दिखलाया ,

वो मेरे सुख थे जो सारे
   सभी से नाता गया है छूट ,
वो मेरी बगिया की माली
   जननी गयी हैं मुझसे रूठ ,
गुणों की खान माँ को मैं
    भला कैसे दूं श्रद्धांजली ,
ह्रदय की वेदना में बंध
    कलम आगे न अब चली .
           शालिनी कौशिक
                [कौशल ]

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-05-2017) को
"लजाती भोर" (चर्चा अंक-2631)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाओं सहित , " तेरे आँचल में - मदर्स डे की ख़ास ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ज्योति-कलश ने कहा…
बहुत भावपूर्ण 🙏

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