....मरे जो शादियां करके .


दर्द गृहस्थी का ,बह रहा आँखों से छलके ,
ये उसके पल्लू बाँधा है ,उसी के अपनों ने बढ़के .
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पिता के आदेशों को मान ,चली थी संग जिसके वो.
उसी ने सड़कों पर डाला ,उसे बच्चे पैदा करके.
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वफ़ादारी निभाई थी ,रात -दिन फाका करती थी ,
बदचलन कहता फिरता है ,बगल में दूसरी धरके .
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वो अपने बच्चों की रोटी,कमाकर खुद ही लाती है ,
उसे भी लूट लेता है ,उसी के हाथों से झटके.
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अगर अंजाम शादी का ,ऐसा ही भयानक है,
कुंवारी ही जिए लड़की ,कुंवारी ही बचे मरके.
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दिखी है ''शालिनी''को अब ,दुनिया में बर्बादी है ,
कोई पागल ही होगा अब ,मरे जो शादियां करके .
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शालिनी कौशिक
    [कौशल]

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-05-2017) को
मैया तो पाला करे, रविकर श्रवण कुमार; चर्चामंच 2635
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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