लो ! इन्हें भी मौका मिल गया.
राजनीति एक ऐसी बला है जो सेर को सवा सेर बना देती है ,चमकने पर अगर आये तो कांच को हीरा दिखा देती है ,ये कहना मात्र एक मजाक नहीं सच्चाई है .ये राजनीति की ही आदत है जो आदमी को वो भी दिखा देती है जिसे देखने का ख्याल तक उसके गुमान में नहीं होता और तो और वह अंधे के हाथ बगैर लाठी के ही बटेर लगवा देती है .राजनीति का ही दम होता है जो आकस्मिक प्रकोपन को सोची-समझी साजिश दिखाती है और राजनीति की ही हवा है जो बिना दियासलाई के चूल्हा जला देती है और अब यही राजनीति खेली जा रही है क़स्बा कांधला के गांव गढ़ीश्याम में हुई सोनी कश्यप के हत्याकांड में ,और जिसे खेलने वाले हैं कश्यप समाज के लोग ,क्योंकि छात्रा सोनी कश्यप समाज से ताल्लुक रखती थी और इस राजनीति को खेलने के लिए कांधला से इतनी दूर बैठे बरेली के आंवला से भाजपा सांसद धर्मेंद्र कश्यप महोदय भी कश्यप समाज के होने के कारण गढ़ीश्याम पधारे और ऐसा नहीं है कि केवल कश्यप समाज के नेतागण इसमें जुटे हैं बल्कि सत्ताधारी दल को कोसने का मौका मिलने के कारण विपक्षी दलों के नेतागण भी इसमें पूरे जोश-ओ-खरोश से जुटे हैं .
सोनी कश्यप ,जहाँ तक उसके विषय में जानकारी मिली है ,एक छात्रा थी और अभी इंटरमीडिएट की ही पढाई कर रही थी ,अभी परिवार का ही उस पर खर्चा हो रहा था क्योंकि अभी वह कोई नौकरी नहीं कर रही थी जिससे उसकी मृत्यु पर अर्थात हत्या के कारण उसके असमय काल का ग्रास बन जाने पर ये कहा जा सके कि परिवार की रोजी रोटी का साधन छिन गया या परिवार पर खाने का संकट आ गया .ये अलग बात है कि सोनी का पिता मेहनत-मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करता था और जिस दिन से सोनी की हत्या हुई है वह काम पर नहीं जा पाया इस वजह से परिवार पर खाने का संकट आ गया .ये एक आकस्मिक आपदा है जिसका सामना बहुत से परिवार करते हैं किन्तु इसका मतलब ये तो नहीं कि हर परिवार मुआवजे की राह देखने लगे .परिवार के सदस्य का इस तरह जाना दुखद होता है और तब और ज्यादा जब किसी ने इरादतन उसे क़त्ल कर दिया हो किन्तु ऐसे में मदद के बहुत से हाथ उठते हैं वे जो मदद करते हैं वही मदद उस वक़्त पर ऐसे में बेसहारा हुए परिवार का वास्तविक सहारा होती है किन्तु उसके लिए प्रशासन से बड़े-से-बड़े मुआवजे की मांग गले से नीचे ही नहीं उतर रही .
मुआवजे का सवाल वहां तो उठना स्वाभाविक भी था जब सोनी या तो परिवार के पालन-पोषण की अर्थात माता की हैसियत में होती या फिर पिता या बड़े भाई की तरह बाहर से कमाई करके ला रही होती और दुर्भाग्य से सोनी इन दोनों ही स्थितियों में नहीं थी ,वह अभी पढ़ रही थी और संभव था कि शायद पढ़-लिखकर कुछ बनती किन्तु बेटियों से कमाई हमारा भारतीय समाज, चाहे ब्राह्मण हो ,चाहे वैश्य हो ,चाहे क्षत्रिय हो या शूद्र ,नहीं सोचता इसलिए रोटी का संकट दूर करने को उसके परिवार का सहारा बनने का विचार मन में नहीं लाया जा सकता और जो भी होता उसे नियति ने कहें या अमरपाल ने ऐसा नहीं होने दिया और असमय ही सोनी को काल का ग्रास बना दिया .
ऐसे में अगर ज़रूरी कुछ है तो वह है सुरक्षा की मांग और वह भी न केवल छात्राओं को ,न केवल सोनी के परिवार को बल्कि सम्पूर्ण सभ्य समाज के नागरिकों को क्योंकि ऐसा करने वाले न कभी ख़त्म हुए हैं और न कभी ख़त्म होंगे ,पर अगर सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम हों और न केवल पुलिस से मिली सुरक्षा बल्कि जन-भागीदारी द्वारा उपलब्ध सुरक्षा तो अपराधी के मन में डर होना स्वाभाविक है .हम अगर किसी के साथ भी कुछ अनैतिक होते देखें तो ये सोचकर कि हमारा इस बात से क्या मतलब ,जिसके साथ हो रहा है खुद देख लेगा कि सोच अपराधी वर्ग का हौसला बढ़ाती है और हमें यही होने नहीं देना है .
अतः ज़रूरी ये है कि सोनी हत्याकांड से सीख लेकर हम सुरक्षा की व्यवस्था कराने की मांग करें ,क्षेत्रीय सुरक्षा समितियों के गठन की बात करें .सोनी के परिवार को मुआवजे की आस में भिखारी न बनायें बल्कि उन्हें हौसला दें और उन्हें ऐसे दुखद समय में खड़े होने की शक्ति प्रदान करें ,मुद्दे को भटकाकर सोनी के परिवार को दीन-हीन दिखाना उन्हें कमजोर बनाना है जो हमें नहीं करना है और न ही होने देना है .हमें दो-चार दिन की सुरक्षा नहीं वरन हमेशा रहने वाली सुरक्षा व्यवस्था की बात करनी है और उसके लिए प्रशासन के आगे हाथ फ़ैलाने से पहले हमें एकजुट होना है और अपने हौसले से अपराध व् अपराधियों के मुंह तोड़ने हैं .
सोनी कश्यप ,जहाँ तक उसके विषय में जानकारी मिली है ,एक छात्रा थी और अभी इंटरमीडिएट की ही पढाई कर रही थी ,अभी परिवार का ही उस पर खर्चा हो रहा था क्योंकि अभी वह कोई नौकरी नहीं कर रही थी जिससे उसकी मृत्यु पर अर्थात हत्या के कारण उसके असमय काल का ग्रास बन जाने पर ये कहा जा सके कि परिवार की रोजी रोटी का साधन छिन गया या परिवार पर खाने का संकट आ गया .ये अलग बात है कि सोनी का पिता मेहनत-मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करता था और जिस दिन से सोनी की हत्या हुई है वह काम पर नहीं जा पाया इस वजह से परिवार पर खाने का संकट आ गया .ये एक आकस्मिक आपदा है जिसका सामना बहुत से परिवार करते हैं किन्तु इसका मतलब ये तो नहीं कि हर परिवार मुआवजे की राह देखने लगे .परिवार के सदस्य का इस तरह जाना दुखद होता है और तब और ज्यादा जब किसी ने इरादतन उसे क़त्ल कर दिया हो किन्तु ऐसे में मदद के बहुत से हाथ उठते हैं वे जो मदद करते हैं वही मदद उस वक़्त पर ऐसे में बेसहारा हुए परिवार का वास्तविक सहारा होती है किन्तु उसके लिए प्रशासन से बड़े-से-बड़े मुआवजे की मांग गले से नीचे ही नहीं उतर रही .
मुआवजे का सवाल वहां तो उठना स्वाभाविक भी था जब सोनी या तो परिवार के पालन-पोषण की अर्थात माता की हैसियत में होती या फिर पिता या बड़े भाई की तरह बाहर से कमाई करके ला रही होती और दुर्भाग्य से सोनी इन दोनों ही स्थितियों में नहीं थी ,वह अभी पढ़ रही थी और संभव था कि शायद पढ़-लिखकर कुछ बनती किन्तु बेटियों से कमाई हमारा भारतीय समाज, चाहे ब्राह्मण हो ,चाहे वैश्य हो ,चाहे क्षत्रिय हो या शूद्र ,नहीं सोचता इसलिए रोटी का संकट दूर करने को उसके परिवार का सहारा बनने का विचार मन में नहीं लाया जा सकता और जो भी होता उसे नियति ने कहें या अमरपाल ने ऐसा नहीं होने दिया और असमय ही सोनी को काल का ग्रास बना दिया .
ऐसे में अगर ज़रूरी कुछ है तो वह है सुरक्षा की मांग और वह भी न केवल छात्राओं को ,न केवल सोनी के परिवार को बल्कि सम्पूर्ण सभ्य समाज के नागरिकों को क्योंकि ऐसा करने वाले न कभी ख़त्म हुए हैं और न कभी ख़त्म होंगे ,पर अगर सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम हों और न केवल पुलिस से मिली सुरक्षा बल्कि जन-भागीदारी द्वारा उपलब्ध सुरक्षा तो अपराधी के मन में डर होना स्वाभाविक है .हम अगर किसी के साथ भी कुछ अनैतिक होते देखें तो ये सोचकर कि हमारा इस बात से क्या मतलब ,जिसके साथ हो रहा है खुद देख लेगा कि सोच अपराधी वर्ग का हौसला बढ़ाती है और हमें यही होने नहीं देना है .
अतः ज़रूरी ये है कि सोनी हत्याकांड से सीख लेकर हम सुरक्षा की व्यवस्था कराने की मांग करें ,क्षेत्रीय सुरक्षा समितियों के गठन की बात करें .सोनी के परिवार को मुआवजे की आस में भिखारी न बनायें बल्कि उन्हें हौसला दें और उन्हें ऐसे दुखद समय में खड़े होने की शक्ति प्रदान करें ,मुद्दे को भटकाकर सोनी के परिवार को दीन-हीन दिखाना उन्हें कमजोर बनाना है जो हमें नहीं करना है और न ही होने देना है .हमें दो-चार दिन की सुरक्षा नहीं वरन हमेशा रहने वाली सुरक्षा व्यवस्था की बात करनी है और उसके लिए प्रशासन के आगे हाथ फ़ैलाने से पहले हमें एकजुट होना है और अपने हौसले से अपराध व् अपराधियों के मुंह तोड़ने हैं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'