डरो मत - डराओ मत - राहुल गांधी का संदेश



हिन्दू और हिन्दुत्व वर्तमान में सबसे ज्यादा विवादस्पद शब्द है. हिन्दू और हिन्दुत्व इतना कमजोर कभी नहीं रहा जितना कमजोर वर्तमान में दिखाई दे रहा है. जरा सा भी कहीं हिन्दू और हिन्दुत्व शब्द का उच्चारण हुआ नहीं कि हाथों में लाठियां और मुँह पर गालियां चमकने लगती हैं. पहले जब भी चुनाव होते थे उससे पहले जिस तरह से "इस्लाम खतरे में है" शब्द शहर की गलियों में शोर मचाये रहता था, आज वह स्थिति पलट चुकी है, अब इस्लाम पर मँडराया खतरा सनातन पर, हिन्दू और हिन्दुत्व पर आ गया है. अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण जो कट्टरता एक मुसलमान में नजर आती थी आज शिक्षा और ज्ञान के उजाले से भरपूर हिन्दू में भी दिखाई दे रही है. 

     अभी पिछले दिनों नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए बीजेपी के हिन्दुत्व पर भी आक्षेप प्रस्तुत कर दिया और कहा कि - "हिंदू कभी हिंसा नहीं कर सकता, कभी नफरत और डर नहीं फैला सकता। ये लोग हिंदू नहीं हैं क्योंकि 24 घंटे हिंसा की बात करते हैं। नरेंद्र मोदी पूरा हिंदू समाज नहीं हैं। भाजपा पूरा हिंदू समाज नहीं है। आरएसएस पूरा हिंदू समाज नहीं है। ये ठेका भाजपा का नहीं है। नेता प्रतिपक्ष ने सदन में भगवान शिव की तस्वीर दिखाई। राहुल ने कहा कि शंकर भगवान से सच, साहस और अहिंसा की प्रेरणा मिलती है। उनका कहना था, भगवान शिव कहते हैं कि डरो मत, डराओ मत। उन्होंने भगवान शिव की ‘अभय मुद्रा’ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मुद्रा का उल्लेख इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन, सभी धर्मों में हैं।"

     और बस राहुल गांधी द्वारा हिन्दू शब्द का उच्चारण मात्र ही करना बीजेपी /आरएसएस वादियों को उनके खिलाफ एक हथियार देना था, यहां तो राहुल गांधी ने बहुत कुछ कह दिया और एक बार फिर दिखाई दे गया कि बीजेपी के हिन्दुत्व की नींव खोखली हो चुकी है, कमजोर पड़ चुकी है और इसलिए राहुल गांधी द्वारा एक सामान्य हिन्दू को अहिंसक कहने के बावजूद पूरा का पूरा भाजपाई अमला खड़ा हो गया हिन्दू को यह कहकर बहकाने के लिए कि राहुल गांधी ने हिन्दू और हिन्दुत्व का अपमान किया है. यही नहीं भारत के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री संविधान की शपथ लेने के बावजूद हिन्दू धर्म के मुद्दे पर बोलते हैं - "पूरे हिंदू समाज को हिंसक कहना ठीक नहीं है।"  गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि नेता विपक्ष ने कहा है कि जो अपने आपको हिंदू कहते हैं वो हिंसा करते हैं। इनको मालूम नहीं है कि करोड़ों लोग अपने आप को गर्व से हिंदू कहते हैं, क्या वो सभी लोग हिंसा करते हैं। उन्हें (राहुल) माफी मांगनी चाहिए। 

       किस बात की माफी मांगें नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी? उस बात की जो उन्होंने कही ही नहीं. सत्ता की खातिर आज बीजेपी और संघ की सोच रखने वालों को ही मात्र हिन्दू कहने वाले आज हिन्दू धर्म की नींव को कमज़ोर कर रहे हैं. हिन्दू और हिन्दू धर्म को कमजोर करने वाले भाजपाइयों और संघीयों को हिन्दू धर्म की जड़ों में जाना होगा, उन्हें पढ़ना होगा, सोचना होगा, समझना होगा कि सच्चा हिन्दू कौन होता है? सच्चे हिन्दू को क्या करना चाहिए? 

      हिंदू धर्म में धर्म को जीवन जीने की कला के रूप में अपनाया गया है। सत्य के मार्ग पर चलना, दूसरों को कष्ट न देना, जीवों पर दया करना, जैसे विचारों को जीवन में उतारना सिखाया जाता है। ऐसे कार्यों को निंदनीय माना जाता है, जिनसे धर्म की हानि होती हो या समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो।

     राहुल कुमार जांगरा कहते हैं कि हिंदू की मूलभूत शिक्षा जो उसे प्रारम्भ से ही अपने घर पर मिलती है वो यह है कि सत्य ही सुंदर है, सत्य ही ईश्वर है। झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, किसी का अपमान मत करो, बड़ों का सम्मान करो, देशभक्त बनो। यानी सत्य ही ईश्वर है। हिंदू को रात दिन अपने धर्म की किताबों में उलझे रहने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि धर्म की व्याख्या बार बार आसान भाषा में हर जगह की जाती है और बच्चे इसे धीरे धीरे अपनी आदत बना लेते हैं। वो जानने लगते हैं कि धारण करने योग्य ही धर्म है। जो चीज आप स्वयं के लिए गलत मानते हैं वो दूसरों के लिए भी गलत होती है। हिंदू लोग अपने घरों में बात करते हैं, बैठी गाय को लात मत मारो, यानी जो जीव आपको परेशान नहीं करता है उसे आप भी परेशान मत करो। यहाँ जीवों के प्रति दया दिखाना है, हिंदू जीवों के प्रति निर्दयी नहीं होता। हमें अधर्मी से बचकर चलना सिखाया जाता है, हिंदू के बारे में जानना उतना ही आसान है जितना गणित या विज्ञान पढना क्योंकि हिंदू हमेशा प्रकृति के बनाए नियमों पर चलता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने 2005 के एक फैसले में हिंदुत्व को और भी विस्तार देते हुए कहा था-हिंदुत्व एक जीवन शैली है। हिंदू शब्द की कोई परिभाषा नहीं है। ऐसा शख्स भी हिंदू हो सकता है, जो धर्म से तो हिंदू हो, लेकिन मंदिर जाकर पूजा करने में विश्वास न रखता हो। अदालत ने यह बात देवसम मंदिर मामले में सुनवाई करते हुए कही थी। आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव हिंदुत्व को भौगोलिक पहचान से जोड़कर देखते हैं। वह कहते हैं, 'हिमालय और हिंद महासागर के बीच की जमीन पर रह रहे लोग हिंदू हैं। यह एक भौगोलिक पहचान है। आज भी यह देश उत्तर भारत में हिंदुस्तान कहलाता है, क्योंकि लोग किसी धर्म के बारे में नहीं, बल्कि जमीन के बारे में बात कर रहे होते हैं। बाकी दुनिया हमें हिंदू कहती है, क्योंकि वह हमें खुद से अलग रूप में देखती है।' यानी हिंदुओं को सिर्फ धर्म से जोड़कर देखना सही नहीं होगा।

     हिंदू फारसी भाषा का शब्द है जिसे पुराने जमाने में भारत के लिए प्रयोग किया जाता था। संस्कृत में इसका मूल रूप था सिंधु, जो देश, समुद्र और नदी आदि कई अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। फारसी में संस्कृत की ध्वनि में बदल जाती है जैसे सप्ताह का हफ्ता हो जाता है और ध-ध्वनि में बदलती है। इस नियम से सिंधु का बना हिंदू। ईरान के प्राचीन पारसी संप्रदाय के ग्रंथ शातीर में हिंदू शब्द भारत देश के लिए इस्तेमाल हुआ है। तब हिंदू देश में रहने वाले को हिंदी या हिंदू कहते थे।हिंदू वह व्यक्ति है जो हिंदू धर्म में विश्वास करता है। भारत में बहुत से हिंदू रहते हैं । हिंदू शब्द का प्रयोग किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करने के लिए करें जो हिंदू धर्म की शिक्षाओं और प्रथाओं का पालन करता हो, या जिसका हिंदू धर्म से सांस्कृतिक संबंध हो। यदि आप हिंदू हैं, तो आप दुनिया के तीसरे सबसे बड़े धर्म से संबंधित हैं, और जिसमें कई अलग-अलग देवी-देवता हैं। हिंदू शब्द का इस्तेमाल भारत के किसी भी व्यक्ति को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जो "भारत" के लिए फ़ारसी शब्द हिंद से लिया गया है । अंतिम मूल संस्कृत शब्द सिंधु , या "नदी" है

    और आज क्या हो रहा है? जिस देश को उसकी मूल संस्कृति पर इंदिरा गांधी संविधान में 42 वां संशोधन कर धर्मनिरपेक्ष शब्द शामिल कर लेकर आई उसमे दरार डाली जा रही है. भारत में तेजी से फैलती जा रही धार्मिक असहिष्णुता, साम्प्रदायवाद वैश्विक स्तर पर भारत को शर्मसार कर रहा है. भारत में धार्मिक असहिष्णुता वैश्विक चिंता का सबब बनती जा रही है। इस चिंता ने तब और जोर पकड़ा, जब गणतंत्र दिवस पर चीफ गेस्ट बनकर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने एक पखवाड़े में सावर्जनिक रूप से दो बार भारत में बढ़ रही धार्मिक असहिष्णुता का जिक्र किया। दिल्ली में उन्होंने कहा कि लोगों को सांप्रदायिकता या अन्य आधार पर बांटने की कोशिशों के खिलाफ सतर्क होना होगा और भारत तभी सफल रहेगा, जब वह धार्मिक या दूसरे किसी आधार पर नहीं बंटेगा। दूसरी बार अमेरिका में नैशनल प्रेयर-ब्रेकफास्ट कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘भरपूर सौंदर्य लिए इस अद्भुत देश में जबरदस्त विविधता है, लेकिन पिछले कुछ बरसों के दौरान यहां हर धर्म के मानने वालों को दूसरे धर्मों की असहिष्णुता का शिकार बनना पड़ा है।' उन्होंने यहां तक कह दिया कि ‘भारत में धार्मिक असहिष्णुता जिस स्तर पर पहुंच चुकी है, उसे देखकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्तब्ध हो गए होते।’

  आज हिन्दू धर्मावलंबियों मे हिन्दू धर्म के अस्तित्व को लेकर इतनी असुरक्षा भर दी गई है कि वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने वाली भारतीय संस्कृति अब कहीं नजर ही नहीं आ रही है उल्टे मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं बढ़ी हैं. बदायूं जैसे कांड बढ़े हैं. टैक्सी सर्विस देने वाली ओला कैब्स कंपनी को एक कस्टमर की  ओर से मिली एक अजीब रिक्वेस्ट ने ट्विटर पर हंगामा मचा दिया। एस. वी. नायडू नाम के एक शख्स ने ओला से हिंदू ड्राइवर की मांग की थी। ओला ने इस पर इनकार करते हुए कहा कि हम अपने ड्राइवर्स को धर्म के आधार पर नहीं बांटते। इसके बाद नायडू के पक्ष और विपक्ष में ट्वीट्स की बरसात होने लगी। नायडू ने अपनी मांग के पक्ष में तर्क दिया कि इसे धर्म के आधार पर शोषण के बजाय ग्राहक की प्राथमिकता माना जाना चाहिए, क्यूँ बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएं 2014 के बाद से, इस पर विचार किया जाना चाहिए. 

    11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद (Vivekananda’s 1893 speech at Chicago) में कहा था, ‘संप्रदायवाद, धर्मांधता और कट्टरता ने लंबे समय से इस धरती पर कब्जा जमा रखा है। इन्होंने धरती को हिंसा से भर दिया है। इनके चलते इंसानों का खून बहता रहा है। इनकी वजह से सभ्यताएं नष्ट हुई हैं। इन्होंने समूचे राष्ट्रों को निराशा में धकेल दिया।‘ स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘अगर ये भयानक चीजें नहीं होतीं तो मानव समाज आज के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रगति कर चुका होता। 

     हिन्दू और हिन्दुत्व को लेकर बड़े बड़े विचार हैं बुद्धिजीवी वर्ग के जिनमे कुछ प्रमुख विचार निम्न हैं - 

आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा जी के अनुसार

    हिंदू अस्तित्व की पहचान है कि आप अपनी आस्था से, जन्म से, मन से हिंदू हैं. लेकिन अपनी पहचान के प्रति सजग होना और उसके प्रति चेतना का विकास होना हिंदुत्व है अर्थात पहचान से हिंदू होने का तात्पर्य है कि क्षमाभाव, प्रेमभाव और आचरण की शुद्धता होना, अहिंसा के रास्ते पर चलना और विविधता को महत्व देना. हिंदू शब्द भाववाचक है. इसे हम संज्ञा नहीं मानते हैं. जब हम कहते हैं हिंदू तो उसका मतलब होता है विविधता को महत्व देना. ये विविधता कृत्रिम नहीं है, ये हिंदू के अंतरमन में बैठी हुई है. विविधता के बिना हिंदू शब्द की कल्पना करना अर्थहीन है. हिंदू होने की इन सभी विशेषताओं के प्रति सजग होना, इनका क्षरण ना होने देना हिंदुत्व है.हिंदुत्व का दूसरा तात्पर्य होता है हिंदू की विशेषताओं, हिंदू के अपने अस्तित्व के प्रति भीतरी और बाहरी चुनौतियों से लड़ना. जैसे जातिवाद या छुआछूत की समस्या भीतरी चुनौती है.बाल विवाह, सती प्रथा ये सब भी भीतर की समस्याएं हैं. इनका निदान करना हिंदुत्व है. इसी तरह धर्म परिवर्तन, बाहरी आक्रमण जैसी बाहरी चुनौतियों से भी हिंदुत्व अलग-अलग समय में अलग-अलग तरह से निबटता है और अलग-अलग तरह से इनका निदान ढूंढता है. हिंदुत्व की कोई एक स्थिर परिभाषा नहीं हैं. समय, परिस्थिति और चुनौतियों के हिसाब से हिंदुत्व का स्वरूप बदलता रहता है. इसी तरह से समर्थ रामदास (सत्रहवीं सदी के हिंदू कवि) एक हिंदुत्ववादी इसलिए थे क्योंकि उन्होंने धर्म और अध्यात्म के माध्यम से उस समय की चुनौतियों का हल खोजने और लोगों की चेतना को जागृत करने का काम किया. उन्होंने लोगों को बताया कि तुम हिंदू हो, नहीं रहोगे तो तुम्हारा अस्तित्व मिट जाएगा.

वहीं गांधीवादी विचारक तुषार गांधी जी के अनुसार-

"हिंदू एक पहचान है जो हमें दी गई है, हिंदुवाद समाज का, धर्म का प्रतीक है और हिंदुत्व उस समाज और धर्म का राजनीतीकरण करने का एक राजनीतिक टूल है.मैं ये मानता हूँ कि हिंदूवाद है. जो लोग हिंदू समाज के तौर-तरीकों को मानते हैं और उन्हें बढ़ावा देते हैं और उनका समर्थन करते हैं उन्हें हिंदूवादी कहा जा सकता है. लेकिन इसमें कोई लिखित रस्म-ओ-रिवाज़ नहीं है. यहां सब कुछ पारंपरिक है. जो लोग सदियों से चली आ रही इन परंपराओं को मानते हैं उन्हें भी हिंदूवादी कहा जा सकता है.जहां तक हिंदू और हिंदुत्व में अंतर का सवाल है तो गांधी हिंदू थे और नाथूराम गोडसे हिंदुत्ववादी थे. इससे बेहतर फ़र्क़ हिंदू और हिंदुत्व के बीच नहीं हो सकता है.हिंदू, हिंदुत्व और हिंदूवाद में एक दूसरे के अंश हैं. लेकिन मुझे लगता है कि हिंदुत्व को हिंदू या हिंदूवाद से कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि वो सिर्फ़ राजनीति का एक औजार है, सत्ता पाने का ज़रिया है.अगर हम हिंदू इंसानों की बात करें या हिंदूवादी इंसानों की बात करें तो उनसे भी हिंदुत्व का कोई लेना-देना नहीं है. हिंदुत्व महज़ एक राजनीतिक समूह का सत्ता पाने का हथियार है.आज हिंदुत्ववादी ये दावा करते हैं कि वो धर्म का पुनर्जागरण कर रहे हैं और हिंदू धर्म के गौरव को बढ़ा रहे हैं लेकिन वो नहीं जानते कि हिंदू धर्म की उदारता ही उसका असली गौरव है.गांधीवाद की ख़ूबी ये है कि जो लोग गांधी को मानते हैं वो सभी के विचारों का सम्मान करते हैं, भले ही हम उन विचारों के ख़िलाफ़ ही क्यों ना हों. एक हिंदू की असली पहचान ये है कि वो उन विचारों को भी जगह देता है, जिन्हें वो नहीं मानता. हर किसी की मान्यता का सम्मान करना ही हिंदू होना है.हम जब किसी का विरोध भी करते हैं तो सम्मानपूर्वक करते हैं. हम हिंदू किसी को छोटा नहीं दिखाते हैं. हम सिर्फ़ सत्य और असत्य के बीच का फ़र्क़ करते हैं. झूठ को संख्या की ज़रूरत होती है, सत्य को संख्या की ज़रूरत नहीं होती है. यदि एक व्यक्ति भी सत्य बोले तो वो सत्य ही रहता है, लेकिन झूठ को मनवाने के लिए लाखों लोगों से गवाही दिलवानी पड़ती है. हिंदू सत्य का प्रतीक है और सत्याग्रह करता है.

  क्षमा भाव, प्रेम भाव, आचरण की शुद्धता, अहिंसा को आरएसएस विचारक एक हिन्दू के जीवन का मूल तत्व मानते हैं और सत्य, उदारता को गांधी वादी विचारक हिन्दू और हिन्दू धर्म की पहचान मानते हैं तो कहाँ अपमान किया है राहुल गांधी ने हिन्दुओं का, राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा है कि हिंदू कभी हिंसा नहीं कर सकता, हिन्दू कभी नफरत और डर नहीं फैला सकता. उन्होंने आईना दिखाया है भाजपा की हिन्दू और हिन्दुत्व को खतरे में पड़ने वाली सोच को, उन्होंने प्रहार किया है भाजपा आरएसएस की हिन्दू और हिन्दुत्व को डराने वाली कुटिल राजनीति पर जिससे खतरा उत्पन्न हो गया है भाजपा आरएसएस को अपनी सत्ता के पतन का और इसीलिए शुरू हो गया है राहुल गांधी को हिन्दू व हिन्दू धर्म विरोधी कहना, जबकि आज अगर भारत में हिंदू और हिन्दू धर्म की व्याख्या को कोई पूरी तरह से समझ पाये हैं तो वे राहुल गांधी हैं जिन्होंने हर धर्म के देवी देवताओं, महापुरुषों के चित्रों का पूर्ण अवलोकन कर हिन्दू और हिन्दू धर्मावलंबियों को ही नहीं सभी धर्म के अनुयायी लोगों को संदेश दिया है कि "डरो मत, डराओ मत".. क्योंकि जब तुम डरोगे नहीं तो नफरत भी नहीं करोगे. 

द्वारा 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 


     

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