मृतक अनुदान योजना में बदलाव करे भारतीय सरकार




*कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता का दुख 

फरवरी 2023 में अंशुमान-स्मृति की शादी । 5 महीने बाद अंशुमान शहीद । देवरिया के लार विकास खंड के बरडीहा दलपत गांव के रहने वाले कैप्टन अंशुमान सिंह 19 जुलाई, 2023 को सियाचिन ग्लेशियर में शहीद हो गए थे। कैप्टन अंशुमान ने फाइबरग्लास की झोपड़ी में आग में घिरे सैन्य अधिकारियों को बचाया, लेकिन जब आग मेडिकल जांच आश्रय स्थल तक फैल गई, तो कैप्टन अंशुमन ही उस आग में घिर गए और अपनी जान गंवा बैठे।भारतीय सेना के टेंट में आग लगने पर अन्य सैनिकों को बचाने में 19 जुलाई को सियाचिन में शहीद हुए कैप्‍टन अंशुमान सिंह को कुछ दिन पहले राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कीर्ति चक्र से सम्‍मानित किया गया. यह सम्मान उनकी पत्‍नी स्‍मृति और मां मंजू सिंह ने ग्रहण किया. 

शहीद अंशुमन सिंह के पिता ने बताया कि , 'अंशुमन की पत्नी स्मृति तेरहवीं के दिन अपनी मां के साथ नोएडा चली गई. नोएडा में वह मेरे बेटे से जुड़ी हर चीज, उसकी तस्वीर, उसकी शादी के एल्बम सर्टिफिकेट कपड़े सब लेकर अपने मां-बाप के पास चली गई. हमें इसकी जानकारी तब हुई जब मेरी बेटी वापस नोएडा गई तो वहां फ्लैट में बेटे अंशुमान का कोई भी समान नहीं था.'शहीद अंशुमान के पिता ने कहा, 'बेटे को उसके अदम्य साहस के लिए कीर्ति चक्र मिला तो नियम था कि मां और पत्नी दोनों यह सम्मान लेने के लिए जाते हैं. अंशुमान की मां भी साथ गई थीं. राष्ट्रपति ने मेरे बेटे की शहादत पर कीर्ति चक्र दिया लेकिन मैं तो उसको एक बार छू भी नहीं पाया.'

   अंशुमान के माता और पिता का कहना है कि बेटे की शहादत पर बहू को सेना द्वारा जो भी मदद मिली, कीर्ति चक्र मिला वह सब लेकर बहू अपने मायके चली गईं. अंशुमान के पिता ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह एनओके नियमों में बदलाव करे.

*ट्रेनी पायलट निशांत की माँ प्रोमिला देवी का दुख 

एयर क्राफ्ट क्रैश के दौरान ट्रेनी पायलट को बचाने में निशांत शहीद हो गए । निशांत की शादी को चार महीने हुए थे। बहू अपने पति निशांत की सभी यादें अपने साथ ले गई। पेंशन का पूरा लाभ भी सिर्फ बहू को मिल रहा है। मां  प्रोमिला देवी के पास जीवन जीने का कोई सहारा नहीं बचा है और न ही उनकी कमाई का कोई साधन. 

प्रोमिला देवी आज गरीबी में जी रही हैं। प्रोमिला देवी कहती हैं - "कि उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं है । उनके करीबी व नजदीकी लोग उनका ध्यान रखते हैं। वह कहती हैं, तलाक के दौरान बेटे ने पिता से उन्हें गुजारा भत्ता नहीं लेने दिया था। इसलिए उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है।भोजन और अन्य जरूरतें पूरी करने में स्थानीय लोग मदद करते हैं. तबीयत खराब होने पर उन्हें परेशान होना पड़ता है। सेना के अस्पताल का लाभ नहीं मिल पाता. "

     प्रोमिला देवी बेटे की पेंशन का 50 प्रतिशत हिस्सा मां को दिए जाने की मांग करती हैं, ताकि सैनिक के माँ बाप भी दिक्कतों से दूर रहते हुए जीवन गुजार सकें. साथ ही, सेना के अस्पताल में मृतक सैनिक के माँ बाप के लिए उपचार की सुविधा भी चाहती हैं. 

*मृतक अधिवक्ताओं के माँ बाप का दुख 

ऐसे ही, हम देखते हैं अधिवक्ता समुदाय का भी यही हाल है. अधिवक्ताओं में भी किसी अधिवक्ता की मृत्यु पर जो भी बार एसोसिएशन और बार काउंसिल से मिलता है वह पत्नी को ही मिलता है। माँ बाप के लिए पत्नी की उपस्थिति में कुछ मिलने का प्रावधान न होने के कारण यहां भी माँ बाप गर्दिशों के साये में रहने के लिए मजबूर हैं. किसी भी बार एसोसिएशन या बार काउंसिल द्वारा यहां पर माँ बाप को पत्नी के अधिकार के मुकाबले बराबरी का दर्जा नहीं दिया गया. 

*मृतक सरकारी नौकरी करने वालों के माँ बाप का दुख

यही हाल सरकारी नौकरी करने वालों का है. माँ बाप अपना पूरा जीवन लगाकर बेटे के लिए सुनहरा भविष्य तैयार करते हैं उसकी सरकारी नौकरी लग जाये, इसके लिए अपनी लगभग पूरी जमा पूंजी लगा देते हैं, उसकी सरकारी नौकरी लग जाती है, फिर उसकी वे शादी कर देते हैं. दुर्भाग्य से शादी के कुछ दिन बाद, कुछ महीने बाद अगर उनका बेटा मर जाता है तो उसकी नौकरी, पेंशन आदि की हकदार उसकी पत्नी हो जाती है. जो कि यह सब मिलने के बाद दूसरी शादी भी कर लेती है और दुख भरे दिन बची हुई उम्र के लिए रह जाते हैं केवल बेचारे बुजुर्ग माँ बाप के. 

      ये सभी स्थिति बेहद दुखद हैं. पत्नी को पति के बाद सबसे निकट सम्बन्धी का दर्जा कानूनन दिया जाना सही है किन्तु माता पिता का दर्जा पत्नी के मुकाबले कम रखा जाना गलत है क्योंकि पत्नी को यह दर्जा विशेष रूप से सैनिक, अधिवक्ता, सरकारी नौकर के बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाए रखने की भावना को भी संजोए रखता है किन्तु वहां तो इस भावना में कुछ परिवर्तन किया जाना चाहिए जहां शादी के कुछ माह बाद ही पति मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं और विवाह के बाद कोई सन्तान नहीं है. पहले के भारत में विधवा विवाह पर रोक थी, किंतु अब विधवा विवाह तो होने ही लगे हैं और तो और दो - चार बच्चों की माँ भी अब पहले पति की मृत्यु पर दूसरा तीसरा विवाह करने लगी है. जब कि मरने वाला भले ही सैनिक हो, अधिवक्ता हो या फिर सरकारी नौकर उसके माँ बाप के लिए तो वही एक मात्र जीने का सहारा होता है. ऐसे में जिन मामलों में पत्नी अपने सैनिक पति, अधिवक्ता पति या फिर सरकारी नौकर पति की मृत्यु के पश्चात सरकार से सहायता प्राप्त करने के बाद किसी और से शादी कर लेती है तो उस पत्नी को प्राप्त सरकारी सहायता उससे वापस लेकर मृत सैनिक, मृत अधिवक्ता या फिर मृत सरकारी नौकर के माता पिता को दिलाई जानी चाहिए और रही कीर्ति चक्र की बात तो यह अधिकार तो कीर्ति चक्र विजेता की माता का ही होना चाहिए क्योंकि नौ महीने पेट में रखकर उस वीर को जन्म देने वाली माता ही उस कीर्ति चक्र की एकमात्र अधिकारी है. जय हिंद - जय भारत 🇮🇳

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 


टिप्पणियाँ

Anita ने कहा…
विचारणीय विषय
Shalini kaushik ने कहा…
टिप्पणी हेतु आभार अनीता जी 🙏🙏
Shalini kaushik ने कहा…
लेख की अन्तर्निहित भावना को समझने के लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏

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