हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
''हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है ,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दी-दावर पैदा .''
२३ जुलाई २०१२ सुबह ११.२० पर हमारे देश की महान स्वतंत्रता सेनानी कैप्टेन लक्ष्मी सहगल स्वर्ग सिधार गयी और छोड़ गयी अपने मरीजों जिन्हें वे ९७ साल की उम्र में भी नित्य अपनी सेवाएं दे रही थी और हमें बहुत सी ऐसी बातें सोचने को जो एक ओर तो लक्ष्मी जी के देशप्रेम की यादें ताज़ा करती हैं तो दूसरी ओर हमें अपने नेताओं के मानसिक स्तर के पतन पर चुल्लू भर पानी में डूब मरने को विवश करती हैं.
सिंगापुर में आजाद हिंद फ़ौज की महिला शाखा का १९४२ में गठन हुआ .इसमें महिलाओं के विकास विभाग की अध्यक्ष डॉ.लक्ष्मी सहगल बनायीं गयी.जब महिला सेना बनाने का प्रस्ताव सुभाष चन्द्र बोस ने रखा तो डॉ.लक्ष्मी ने उत्साह से इस कार्य को अंजाम दिया .जब महिला शाखा की अध्यक्स श्रीमती चिदंबरम ने कागज और कलम लेकर उन महिलाओं के नाम लिखे जो सेना में भर्ती होना चाहती थी तो डॉ.लक्ष्मी ने उस समय कहा -''आजादी के दस्तावेज पर स्याही से नहीं ,खून से हस्ताक्षर किया जाते हैं.''ऐसा कहकर उन्होंने चाकू से अपना अंगूठा चीरकर उस कागज पर अपने खून से हस्ताक्षर किये .उनका अनुसरण अन्य महिलाओं ने भी किया .इस सेना का नाम ''रानी झाँसी रेजिमेंट ''रखा गया .कमांडर डॉ.लक्ष्मी बनी .उन्हें कैप्टेन का रैंक मिला और बाद में वे कर्नल के पद पर पदोन्नत हुई बाद में डॉ.लक्ष्मी सहगल अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर ली गयी.
१९९८ में कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया और २००२ में वामदलों ने इन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया किन्तु देश के इतिहास के प्रति अनभिज्ञता एवं स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति क्रित्य्घ्नता का उदाहरण हमें जो तब देखने को मिला उसने वास्तव में हमारा सर शर्म से झुका दिया .तब तेलगू देशम के अध्यक्ष और आन्ध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री चन्द्र बाबू नायडू को जब ये बताया गया कि वामदलों ने कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है तो उन्होंने आश्चर्य चकित होकर पूछा -''ये कौन हैं?''एक पत्रकार के शब्दों में ,''न मालूम कौन कौन से गलियारों को पारकर राजनीति तक पहुँचने वाले समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने अपने आपको एक हास्यास्पद ऊँचाई पर खड़े होकर गुरु गंभीर टिप्पणी की,''she is a good lady but she stands no where near kalam .''{वह एक अच्छी महिला हैं किन्तु वह अब्दुल कलम के सामने कहीं नहीं ठहरती .}
एन.डी.ए. ने ए .पी.जे अब्दुल कलाम को अपना उम्मीदवार बनाया और अन्य सभी दलों के साथ कांग्रेस ने भी उनका समर्थन किया जबकि इतिहास साक्षी है कि जवाहरलाल नेहरु वकील का काला चोगा पहन कर राजनीति के क्षेत्र में विरोधी नेता श्री सुभाष चन्द्र बोस द्वारा स्थापित आजाद हिंद फ़ौज के सेनानियों -शाहनवाज खान ,ढिल्लन ,कैप्टेन लक्ष्मी सहगल का मुकदमा लड़ने एनी वकीलों के साथ दिल्ली के लाल किले पहुंचे थे .ये उस वक़्त की राजनीति थी जब भले ही विचारधारा या लड़ने का तरीका अलग था किन्तु मकसद सभी का एक था -देश की आजादी .और अलग अलग ढंग अपना कर भी सभी सेनानी एक दुसरे के भाव जानते थे और उनका आदर करते थे.सुभाष चन्द्र बोस जो कि गाँधी विचार धरा के सर्वाधिक विरोधी थे , ने ही उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि से विभूषित किया था और एक आज के क्रित्घ्यं नेता जिन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक स्वर्णिम अवसर मिला भी और वह गवां भी दिया गया.यह अमर सिंह जी को कौन समझाए कि कलाम जी को काम करने के अवसर तभी मिले जब हमारा भारत स्वतंत्र हुआ और वे उस महिला को कलाम जी के समक्ष बौनी दिखाना चाह रहे थे जो वे स्वर्णिम अवसर प्रदान करने वालों में से एक थी.यही तो है कृत्याघ्नता कि जिन्होंने हमारे लिए अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया हम उन्ही के योगदान को नकार स्वयं को ऊंचा दिखने में लगे हैं.
सिंगापुर में आजाद हिंद फ़ौज की महिला शाखा का १९४२ में गठन हुआ .इसमें महिलाओं के विकास विभाग की अध्यक्ष डॉ.लक्ष्मी सहगल बनायीं गयी.जब महिला सेना बनाने का प्रस्ताव सुभाष चन्द्र बोस ने रखा तो डॉ.लक्ष्मी ने उत्साह से इस कार्य को अंजाम दिया .जब महिला शाखा की अध्यक्स श्रीमती चिदंबरम ने कागज और कलम लेकर उन महिलाओं के नाम लिखे जो सेना में भर्ती होना चाहती थी तो डॉ.लक्ष्मी ने उस समय कहा -''आजादी के दस्तावेज पर स्याही से नहीं ,खून से हस्ताक्षर किया जाते हैं.''ऐसा कहकर उन्होंने चाकू से अपना अंगूठा चीरकर उस कागज पर अपने खून से हस्ताक्षर किये .उनका अनुसरण अन्य महिलाओं ने भी किया .इस सेना का नाम ''रानी झाँसी रेजिमेंट ''रखा गया .कमांडर डॉ.लक्ष्मी बनी .उन्हें कैप्टेन का रैंक मिला और बाद में वे कर्नल के पद पर पदोन्नत हुई बाद में डॉ.लक्ष्मी सहगल अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर ली गयी.
१९९८ में कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया और २००२ में वामदलों ने इन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया किन्तु देश के इतिहास के प्रति अनभिज्ञता एवं स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति क्रित्य्घ्नता का उदाहरण हमें जो तब देखने को मिला उसने वास्तव में हमारा सर शर्म से झुका दिया .तब तेलगू देशम के अध्यक्ष और आन्ध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री चन्द्र बाबू नायडू को जब ये बताया गया कि वामदलों ने कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है तो उन्होंने आश्चर्य चकित होकर पूछा -''ये कौन हैं?''एक पत्रकार के शब्दों में ,''न मालूम कौन कौन से गलियारों को पारकर राजनीति तक पहुँचने वाले समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने अपने आपको एक हास्यास्पद ऊँचाई पर खड़े होकर गुरु गंभीर टिप्पणी की,''she is a good lady but she stands no where near kalam .''{वह एक अच्छी महिला हैं किन्तु वह अब्दुल कलम के सामने कहीं नहीं ठहरती .}
एन.डी.ए. ने ए .पी.जे अब्दुल कलाम को अपना उम्मीदवार बनाया और अन्य सभी दलों के साथ कांग्रेस ने भी उनका समर्थन किया जबकि इतिहास साक्षी है कि जवाहरलाल नेहरु वकील का काला चोगा पहन कर राजनीति के क्षेत्र में विरोधी नेता श्री सुभाष चन्द्र बोस द्वारा स्थापित आजाद हिंद फ़ौज के सेनानियों -शाहनवाज खान ,ढिल्लन ,कैप्टेन लक्ष्मी सहगल का मुकदमा लड़ने एनी वकीलों के साथ दिल्ली के लाल किले पहुंचे थे .ये उस वक़्त की राजनीति थी जब भले ही विचारधारा या लड़ने का तरीका अलग था किन्तु मकसद सभी का एक था -देश की आजादी .और अलग अलग ढंग अपना कर भी सभी सेनानी एक दुसरे के भाव जानते थे और उनका आदर करते थे.सुभाष चन्द्र बोस जो कि गाँधी विचार धरा के सर्वाधिक विरोधी थे , ने ही उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि से विभूषित किया था और एक आज के क्रित्घ्यं नेता जिन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक स्वर्णिम अवसर मिला भी और वह गवां भी दिया गया.यह अमर सिंह जी को कौन समझाए कि कलाम जी को काम करने के अवसर तभी मिले जब हमारा भारत स्वतंत्र हुआ और वे उस महिला को कलाम जी के समक्ष बौनी दिखाना चाह रहे थे जो वे स्वर्णिम अवसर प्रदान करने वालों में से एक थी.यही तो है कृत्याघ्नता कि जिन्होंने हमारे लिए अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया हम उन्ही के योगदान को नकार स्वयं को ऊंचा दिखने में लगे हैं.
सबसे ज्यादा अफ़सोस हमें डॉ.कलाम जैसी शख्सियत पर होता है जिन्होंने अपने सामने कैप्टेन लक्ष्मी सहगल की उम्मीदवारी देख कर भी अपना नाम वापस नहीं लिया जबकि उनका रवैय्या उस समय एक स्वतंत्रता सेनानी के सामने यदि नतमस्तक होने का होता तो उनके देश प्रेम की भावना में चार चाँद लग जाते.
आज कैप्टेन लक्ष्मी सहगल हमें छोड़ गयी है और हम उनके प्रति अपने सही कर्तव्य का पालन नहीं कर पाए और उनकी देश सेवा को सही स्थान नही दे पाए ये शर्मिंगी हमेशा के लिए झेलने के लिए .
आज कैप्टेन लक्ष्मी सहगल हमें छोड़ गयी है और हम उनके प्रति अपने सही कर्तव्य का पालन नहीं कर पाए और उनकी देश सेवा को सही स्थान नही दे पाए ये शर्मिंगी हमेशा के लिए झेलने के लिए .
एक देशभक्त का स्थान स्वर्ग से भी ऊंचा है देशभक्ति के जज्बे से से भरपूर कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को हम सभी का सलाम .हम उनके सम्बन्ध में केवल यही कह सकते हैं -
''कुछ लोग वक़्त के सांचों में ढल जाते हैं,
कुछ लोग वक़्त के सांचों को ही बदल जाते हैं ,
माना कि वक़्त माफ़ नहीं करता किसी को
पर क्या कर लोगे उनका जो वक़्त से आगे निकल जाते हैं.''
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
मुद्दा पहरावा है ही नहीं सामाजिक अलगाव और भटकाव है एक निस्संग समाज हो गएँ हैं हम .
लक्ष्मी दुर्गा थी बनी, कांपा इंग्लिश राज |
वीरांगना प्रणाम,
कल 25/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल ''
निजी रूप में मुझ पर और मेरे परिवार पर उन्होंने अमेकनेक उपकार किये थे ! धर्म पत्नी कृष्णा जी तथा मेरे दो पुत्र [ राम -राघव] की जीवन रक्षा उन्होंने की थी! लम्बी कहानी है, लिखूँगा लिख सका तो पुनः आशीर्वाद सहित धन्यवाद !