नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले



http://www.ourtripvideos.com/images/PicturesForBlog/2013/RepDayIndGbltMD12/Big/DSC_1210.jpg Republic Day Parade




 अभी अभी देश ने पूर्ण श्रृद्धा और उल्लास से अपना ६४ वां गणतंत्र दिवस मनाया और ये बात गौर करने लायक है कि ये श्रृद्धा और उल्लास जितना भारत में निवास करने वालों में था उससे कहीं अधिक विदेश में रह रहे भारतीयों में था [आखिरकार ये ही कहना पड़ेगा क्योंकि वैसे भी भारत में रह रहे लोग कुछ ज्यादा ही विदेश में रह रहे भारतीयों के आकर्षण में बंधें हैं ]इसलिए उनके द्वारा मनाया गया भारत का कोई भी पर्व धन्य माना जाना चाहिए और फिर ये तो है ही गर्व की बात कि वे आज भी भारतीय गणतंत्र से जुड़े हैं और इसके प्रति श्रृद्धा रखते हैं भले ही इसके लिए अपना जो योगदान उन्हें करना चाहिए उसे यहाँ की सरकार की,अर्थव्यवस्था की आर्थिक मदद द्वारा सहयोग कर अपने  इस देश के प्रति उसी प्रकार कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं जैसे हम सभी किसी आयोजन चाहे धार्मिक हो या सामाजिक ,पारिवारिक हो या वैवाहिक में अपने पास किसी वस्तु न होने की स्थिति में रूपये /पैसे दे उसकी आपूर्ति  मान लेते हैं .

       हम अगर अपने देश से प्रेम करते हैं और इसकी तरक्की के आकांक्षी हैं तो क्या ये सही है कि हम सभी तरह की योग्यता ग्रहण कर मात्र अधिक कमाई के फेर में अपने देश को छोड़ कर किसी और देश में जा बसें ?क्या देश को उन्नति पथ गामी बनाना  हमारा कर्तव्य नहीं है ? इस तरह के कई सवाल हमारे मन में कौंधते हैं किन्तु हम अपनी उन्नति को वरीयता दे इन सवालों को दरकिनार कर देते हैं किन्तु हर देश वासी ऐसा नहीं होता और इसलिए वह रत्न होता है और ऐसे ही एक रत्न हैं पानीपत [हरियाणा ] के नसीब सभ्रवाल .[अकी],आज केवल मैं कह रही हूँ कल आप भी कहेंगे   दैनिक जागरण के झंकार में ६ जनवरी को ''मेरी कहानी मेरा जागरण''शीर्षक के अंतर्गत नसीब सभ्रवाल की कहानी पढ़ी और मन कर गया कि इसे आप सभी से साझा करूँ ताकि जैसे मेरा सिर नसीब जी के देशप्रेम के आगे नत हो गया ऐसे ही अन्य देशवासियों का भी हो .
    नसीब जी बताते हैं कि बात उन दिनों की है जब वे मुंबई में क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर का कोर्स कर रहे थे पढाई के दौरान उन्हें अपनी कक्षा के सभी छात्रों के साथ समुंद्री जहाज बनाने के प्रसिद्द सरकारी उपक्रम मंझगांव  डाकयार्ड   में  जाकर कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ वहां कार्यरत एक वरिष्ठ  इंजीनियर उनका मार्गदर्शन करते हुए कंपनी की प्रत्येक गतिविधि से अवगत करा रहे थे उन्होंने उन्हें बताया कि कंपनी में शिवालिक ,सह्याद्रि और सतपुड़ा नाम के तीन बड़े युद्धपोत बनाने का कार्य तेज़ी से चल रहा है इसके अतिरिक्त वहां कई पनडुब्बी बनाई जा रही थी .नसीब जी आगे कहते हैं ''जब वह वरिष्ठ इंजीनियर उस संस्थान की उपलब्धियों का बखान कर रहे थे ,तब मेरा ध्यान कहीं और था .दरअसल ,उस वक्त मेरा चयन दुबई की एक कंपनी में अच्छे पैकेज पर हो चुका था .वहां जाने के  लिए मेरा वीजा भी जल्दी मिलने वाला था,जिसको लेकर मैं खासा उत्साहित  था .मुझे कहीं और ध्यान मग्न देखकर कम्पनी के इंजीनियर और उस वक्त हमारे मार्गदर्शक ने मुझे बीच में ही टोक दिया .उनके टोकते ही मैं कल्पना लोक से सीधे यथार्थ  की ज़मीन पर आ गिरा .उन्होंने मुझ पर अपना गुस्सा निकलते हुए कहा ,''आपके लिए तो यह एक नाटक चल रहा होगा ?''नहीं सर आपको कुछ ग़लतफ़हमी हो गयी है .दोस्तों के सामने अपनी फजीहत से बचने के लिए नसीब जी ने घबराहट में जल्दी से अपना बचाव किया मगर वे कहते  हैं कि इससे उनके वे इंजीनियर साहब संतुष्ट नहीं हुए .वे समझ गए थे कि बात क्या है .वे फिर से उनपर बरस पड़े .उन्होंने उन नवनिर्मित जहाजों की ओर इशारा करते हुए कहा ,''बेटा ,इन्हें बनाने  में हमारे साथियों ने अपनी सारी उम्र लगा दी ,तब कहीं जाकर हम यहाँ तक पहुंचे हैं .बरसों पहले जब हम यहाँ आये थे ,उस वक्त भी दूसरे मुल्क हमें लाखों डालर के पैकेज देने के लिए तैयार थे ,परन्तु अपने देश के लिए हमने यहाँ कुछ हज़ार रुपये की पगार पर ही बरसों गुजार दिए .''बात करते करते उस प्रौढ़ उम्र के इंजीनियर की आँखों में मुझे इत्मिनान और आत्मविश्वास के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे .उन्होंने बताया कि''हमारे डाक्टर  ,वैज्ञानिक व् इंजीनियर भारत से बड़ी बड़ी डिग्रियां हासिल करके विदेश निकल जाते हैं .जीवन भर विदेश में काम करके भारत लौटते हैं तो कितनी आसानी से कह देते हैं -''भारत आज भी वैसा ही है जैसा बीस साल पहले था .इतने सालों में यहाँ कोई बदलाव नहीं आया .कोई तरक्की नहीं हुई ,जबकि हम यह कभी नहीं सोचते कि हमने देश के लिए क्या किया है ?''  
    इंजीनियर की बातों का नसीब जी के मस्तिष्क पर गहरा असर हो चला था .उन्होंने कहा ,''भारत आपसे और हमसे मिलकर ही बनता है .इसकी तरक्की के लिए भी एक एक आदमीं का सहयोग अपेक्षित है .दूसरे मुल्क हमारी प्रतिभाओं को ऊँची कीमत पर खरीद लेते हैं और उन्हीं के बूते वे तरक्की के पायदान चढ़ते जा रहे हैं ,जबकि हम उनसे पिछड़ जाते हैं .''उस प्रबुद्ध  इंजीनियर के निश्छल देश प्रेम ने नसीब जी के शब्दों में ''मुझे अन्दर तक झकझोर दिया था .''उन्हें लगा कि जब ये काम तनख्वाह पाकर भी देश के लिए इतना कुछ कर रहे हैं तो क्या मैं ....?उनकी बातें सुनकर नसीब जी की आत्मा ग्लानि से भर गयी और उनके अन्दर भी देश प्रेम की  भावना दम भरने लगी .
       ''मैंने उसी वक्त विदेश न जाने का  दृढ निश्चय कर लिया उस इंजीनियर की देश प्रेम से ओत-प्रोत बातों ने मेरे अन्दर भी देश के प्रति कर्तव्य बोध का जागरण कर दिया था .''ये कहते हुए देश प्रेम से गर्वित होते नसीब जी आज तक एक स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेज  में शिक्षक के पद पर कार्य कर रहे हैं और अपने देश के विकास में थोडा किन्तु महत्वपूर्ण योगदान दे उसकी तरक्की में भागीदार बन रहे हैं .
    ये थोडा ही सही किन्तु बहुत महत्वपूर्ण ही कहा जायेगा क्योंकि सभी जानते हैं कि ''बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है ''और आज विकास की राह पर अग्रसर अपने भारत वर्ष की तरक्की में यदि हम सच्चे देश भक्त हैं तो हमें माखन लाल चतुर्वेदी जी की ''पुष्प की अभिलाषा ''को ही अपनी अभिलाषा बनाना होगा ताकि हमारा देश विश्व में सिरमौर के रूप में सुशोभित हो सके -
   ''चाह नहीं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं ,
      चाह नहीं प्रेमी माला में विन्ध नित प्यारी को ललचाऊँ ,
    चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरी डाला जाऊं ,
    चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं ,भाग्य पर इठलाऊँ ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना फैंक
मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक .''
नसीब जी के देश प्रेम की ये भावना समस्त भारतीयों  के नयनों का स्वप्न बन जाये और यहाँ से पलायन करने वाली प्रतिभाओं के पैर यहाँ जमा दे तो मेरा ये आलेख लिखने का उद्देश्य सफल हो जाये .नसीब जी को मेरा सादर प्रणाम .
   शालिनी कौशिक
     [कौशल ]
  

टिप्पणियाँ

देश-प्रेम की भावना से बढ़कर कुछ भी नही ,,,,
नसीब जी के देश प्रेम की भावनाओं को साझा करने के लिए आभार शालिनी जी,,,

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देश प्रेम की भावना ही काफी नहीं, कर्म से देश प्रेम दिखने की आवश्यकता है .युवा इञ्जिनिअर और डाक्टर को देश में रहकर देश सेवा करना चाहिए .इन पर सबसे ज्यादा खर्चा देश करता है.
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Anita ने कहा…
देश को ऐसे ही युवाओं की जरूरत है..
Unknown ने कहा…
प्रेरणा देने वाला लेख ........ बहुत सुंदर लिखते रहिये .........
रविकर ने कहा…
सटीक-


आभार ।।
प्रेरक प्रसंग .... आभार
virendra sharma ने कहा…
कथा का एक छोर ज़रूर है ,नसीब सभरवाल की कथा .लेकिन यथार्थ यह भी है विदेश में जा बसे भारतीयों की प्रतिभा और महनत ने भारत को मान्यता दिलवाई है .भारत के किसी एक राज्य का

नाम

बतलाएं जहां देशी ,विदेशी निवेश के अनु -कूल माहौल हो .अलबता गुजरात इसका अपवाद हो सकता है .जो सेकुलर इंडिया को फूटी आँख नहीं सुहाता .

यहाँ प्रतिभा आरक्षण की भेंट चढ़ जाती है .काबिल लोगों को काम मिलता है लेकिन सिर्फ काबलियत काफी नहीं समझी गई है इंडिया में आपकी सोशल नेट्वर्किंग भी होनी चाहिए .किरण बेदी

प्रमाण है इस बात का .

यहाँ काम के अनुकूल माहौल ही कहाँ है .जाओ जाकर देखो योरोप और अमरीका में काम किस लग्न और ईमानदारी /खुद्दारी से किया जाता है .जापानियों को देखो कर्तव्य निष्ठा के मामले में

जिनसे अमरीकी भी घबराते हैं .

फिर आज रिवर्स ब्रेन ड्रेन भी है अब अ -निवासी भारतीय दबाके डॉलर भेज रहें हैं .यहाँ निवेश के अनुकूल माहौल बने तो विदेश कूच रुके .यहाँ तो आधार भूत सुविधाएं भी नहीं है न बिजली न पानी

न शौच घर .सर्वव्यापी भ्रष्टाचार है यहाँ .कोई क्यों सड़े यहाँ ?

मिटाना लगता है कठिन, पुत्री -पुत्र का भेद |
इस वैज्ञानिक काल में, इस से बड़ा ण खेद ||
मिटाना कितना है कठिन, पुत्री३ -पुत्र का भेद |
इस वेज्ञानिक काल में, इस से बड़ा ण खेद ||
Guzarish ने कहा…
bahut hi sahi kaha aapne shalini ji
http://guzarish6688.blogspot.in/search/label/%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BE

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