विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं

 
आज जैसे जैसे महिला सशक्तिकरण की मांग जोर  पकड़ रही है वैसे ही एक धारणा और भी बलवती होती जा रही है वह यह कि विवाह करने से नारी गुलाम हो जाती है ,पति की दासी हो जाती है और इसका परिचायक है बहुत सी स्वावलंबी महिलाओं का विवाह से दूर रहना .मोहन भागवत जी द्वारा विवाह संस्कार को सौदा बताये जाने पर मेरे द्वारा आक्षेप किया गया तो मुझे भी यह कहा गया कि एक ओर तो मैं अधिवक्ता होते हुए महिला सशक्तिकरण की बातें  करती हूँ और दूसरी ओर विवाह को संस्कार बताये जाने की वकालत कर विरोधाभासी बातें करती हूँ जबकि मेरे अनुसार इसमें कोई विरोधाभास है ही नहीं .
    यदि हम सशक्तिकरण की परिभाषा में जाते हैं तो यही पाते हैं कि ''सशक्त वही है जो स्वयं के लिए क्या सही है ,क्या गलत है का निर्णय स्वयं कर सके और अपने निर्णय को अपने जीवन में कार्य रूप में परिणित कर सके ,फिर इसका विवाहित होने या न होने से कोई मतलब ही नहीं है .हमारे देश का इतिहास इस बात का साक्षी है कि हमारे यहाँ कि महिलाएं सशक्त भी रही हैं और विवाहित भी .उन्होंने जीवन में कर्मक्षेत्र न केवल अपने परिवार को माना बल्कि संसार के रणक्षेत्र में भी पदार्पण किया और अपनी योग्यता का लोहा मनवाया .
     मानव सृष्टि का आरंभ केवल पुरुष के ही कारण नहीं हुआ बल्कि शतरूपा के सहयोग से ही मनु ये कार्य संभव कर पाए .
   वीरांगना झलकारी बाई पहले किसी फ़ौज में नहीं थी .जंगल में रहने के कारण उन्होंने अपने पिता से घुड़सवारी व् अस्त्र -शस्त्र सञ्चालन की शिक्षा ली थी .उनकी शादी महारानी लक्ष्मीबाई  तोपखाने के वीर तोपची पूरण सिंह के साथ हो गयी और यदि स्त्री का विवाहित होना ही उसकी गुलामी का परिचायक मानें तो यहाँ से झलकारी की जिंदगी मात्र  किलकारी से बंधकर रह जानी थी किन्तु नहीं ,अपने पति के माध्यम से वे महारानी की महिला फौज में भर्ती  हो गयी और शीघ्र ही वे फौज के सभी कामों में विशेष योग्यता वाली हो गयी .झाँसी के किले को अंग्रेजों ने जब घेरा तब जनरल ह्यूरोज़ ने उसे तोपची के पास खड़े गोलियां चलाते देख लिया उस पर गोलियों की वर्षा की गयी .तोप का गोला पति के लगने पर झलकारी ने मोर्चा संभाला पर उसे भी गोला लगा और वह ''जय भवानी''कहती हुई शहीद हो गयी उसका बलिदान न केवल महारानी को बचने में सफल हुआ अपितु एक महिला के विवाहित होते हुए उसकी सशक्तता का अनूठा दृष्टान्त सम्पूर्ण विश्व के समक्ष रख गया .
          भारत कोकिला  ''सरोजनी नायडू''ने गोविन्द राजलू नायडू ''से विवाह किया और महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए १९३२ के नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया .
        कस्तूरबा गाँधी महात्मा गाँधी जी की धर्मपत्नी भी थी और विवाह को एक संस्कार के रूप में निभाने वाली  होते हुए भी महिला सशक्तिकरण की पहचान भी .उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं में सत्याग्रह का शंख फूंका .
      प्रकाशवती पाल ,जिन्होंने २७ फरवरी १९३१ को चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद क्रांति संगठन की सूत्र अपने हाथ में लेकर काम किया १९३४ में दिल्ली में गिरफ्तार हुई .पहले विवाह से अरुचि रखने वाली व् देश सेवा की इच्छुक प्रकाशवती ने बरेली जेल में यशपाल से विवाह किया किन्तु इससे उनके जीवन के लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं आया .यशपाल ने उन्हें क्रन्तिकारी बनाया और प्रकाशवती ने उन्हें एक महान लेखक .
      सुचेता कृपलानी आचार्य कृपलानी  की पत्नी थी और पहले स्वतंत्रता संग्राम से जुडी कर्तव्यनिष्ठ क्रांतिकारी और बाद में उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री .क्या यहाँ ये कहा जा सकता है कि विवाह ने कहीं भी उनके पैरों में बंधन डाले या नारी रूप में उन्हें कमजोर किया .
      प्रसिद्ध समाज सुधारक गोविन्द रानाडे की पत्नी रमाबाई रानाडे पति से पूर्ण सहयोग पाने वाली ,पूना में महिला सेवा सदन की स्थापक ,जिनकी राह में कई बार रोड़े पड़े लेकिन न तो उनके विवाह ने डाले और न पति ने डाले  बल्कि उस समय फ़ैली पर्दा  ,छुआछूत ,बाल विवाह जैसी कुरीतियों ने डाले और इन सबको जबरदस्त टक्कर देते हुए रमाबाई रानाडे ने स्त्री सशक्तिकरण की मिसाल कायम की .
        देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने फ़िरोज़ गाँधी से अंतरजातीय विवाह भी किया और दो पुत्रों राजीव व् संजय की माँ भी बनी और दिखा दिया भारत ही नहीं सारे विश्व को कि एक नव पल्लवित लोकतंत्र की कमान किस प्रकार कुशलता से संभालकर पाकिस्तान जैसे दुश्मनों के दांत खट्टे किये जाते हैं .क्या यहाँ विवाह को उनका कारागार कहा जा सकता है .पत्नी व् माँ होते हुए भी  बीबीसी की इंटरनेट न्यूज़ सर्विस द्वारा कराये गए एक ऑनलाइन  सर्वेक्षण में उन्हें ''सहस्त्राब्दी की महानतम महिला [woman of the millennium ]घोषित   किया गया .
      भारतीय सिनेमा की  प्रथम अभिनेत्री देविका रानी पहले प्रसिद्ध  निर्माता निर्देशक हिमांशु राय की पत्नी रही और बाद में विश्विख्यात रुसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक की पत्नी बनी और उनके साथ कला ,संस्कृति तथा पेंटिंग के क्षेत्र में व्यस्त हो गयी कहीं कोई बंदिश नहीं कहीं कोई गुलामी की दशा नहीं दिखाई देती उनके जीवन में कर्णाटक चित्रकला को उभारने में दोनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा .१९६९ में सर्वप्रथम ''दादा साहेब फाल्के '' व् १९५८ में ''पद्मश्री ''महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय स्थान रखते हैं .
     ''बुंदेलों हरबोलों के मुहं हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ''कह राष्ट्रीय आन्दोलन में नवतेज भरने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान ''कर्मवीर'' के संपादक लक्ष्मण सिंह की विवाहिता थी किन्तु साथ ही सफल राष्ट्र सेविका ,कवियत्री ,सुगृहणी व् माँ थी .स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे मध्य प्रदेश विधान सभा की सदस्य भी रही .गुलाम  भारत  की इस राष्ट्र सेविका के जीवन में हमें तो  कहीं भी गुलामी की झलक नहीं मिलती जबकि जीवन में जो जो काम समाज ने, समाज के नियंताओं ने ,भगवान् ने वेद ,पुराण में लिखें हैं वे सब से जुडी थी . 
         बुकर पुरुस्कार प्राप्त करने वाली ,रैली फॉर द वैली  का नेतृत्त्व  कर नर्मदा बचाओ आन्दोलन को सशक्त करने वाली अरुंधती राय फ़िल्मकार प्रदीप कृष्ण से विवाहित हैं .
       पुलित्ज़र पुरुस्कार प्राप्त झुम्पा लाहिड़ी विदेशी पत्रिका के उपसंपादक अल्बर्टो वर्वालियास से विवाहित हैं और अपने जीवन को अपनी मर्जी व् अपनी शर्तों पर जीती हैं .
       वैजयन्ती माला ,सोनिया गाँधी ,सुषमा स्वराज ,शीला  दीक्षित  ,मेनका  गाँधी ,विजय राजे सिंधिया ,वनस्थली विद्या पीठ की संस्थापिका श्रीमती रतन शास्त्री ,क्रेन बेदी के नाम से मशहूर प्रथम महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी ,प्रसिद्ध समाज सेविका शालिनी ताई मोघे, प्रथम भारतीय महिला अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला ,टैफे की निदेशक मल्लिका आदि आदि आदि बहुत से ऐसे नाम हैं  जो सशक्त हैं ,विवाहित हैं ,प्रेरणा हैं ,सद गृहस्थ हैं तब भी कहीं कोई बंधन नहीं ,कहीं कोई उलझन नहीं .
          अब यदि हम विवाह संस्कार की बात करते हैं तो उसकी सबसे महत्वपूर्ण रस्म है ''सप्तपदी ''जिसके  पूरे होते ही किसी दम्पति का विवाह सम्पूर्ण और पूरी तरह वैधानिक मान लिया जाता है .हिन्दू विवाह कानून के मुताबिक सप्तपदी या सात फेरे इसलिए भी ज़रूरी हैं ताकि दम्पति शादी की हर शर्त को अक्षरशः स्वीकार करें .ये इस प्रकार हैं -
 १- ॐ ईशा एकपदी भवः -हम यह पहला फेरा एक साथ लेते हुए वचन देते हैं कि हम हर काम में एक दूसरे  का ध्यान पूरे प्रेम ,समर्पण ,आदर ,सहयोग के साथ आजीवन करते रहेंगे .
  २- ॐ ऊर्जे द्विपदी भवः -इस दूसरे फेरे में हम यह निश्चय करते हैं कि हम दोनों साथ साथ आगे बढ़ेंगे .हम न केवल एक दूजे को स्वस्थ ,सुदृढ़ व् संतुलित रखने में सहयोग देंगे बल्कि मानसिक व् आत्मिक बल भी प्रदान करते हुए अपने परिवार और इस विश्व के कल्याण में अपनी उर्जा व्यय करेंगे .
 ३-ॐ रायस्पोशय  त्रिपदी भवः -तीसरा फेरा लेकर हम यह वचन देते हैं कि अपनी संपत्ति की रक्षा करते हुए सबके कल्याण के लिए समृद्धि का वातावरण बनायेंगें .हम अपने किसी काम में स्वार्थ नहीं आने देंगे ,बल्कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेंगें .
 4- ॐ मनोभ्याय चतुष्पदी  भवः -चौथे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि आजन्म एक दूजे के सहयोगी रहेंगे और खासतौर पर हम पति-पत्नी के बीच ख़ुशी और सामंजस्य बनाये रखेंगे .
 ५- ॐ प्रजाभ्यःपंचपदी भवः -पांचवे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि हम स्वस्थ ,दीर्घजीवी संतानों को जन्म  देंगे और इस तरह पालन-पोषण करेंगे ताकि ये परिवार ,समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर साबित हो .
 ६- ॐ रितुभ्य षष्ठपदी  भवः -इस छठे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि प्रत्येक उत्तरदायित्व साथ साथ पूरा करेंगे और एक दूसरे का साथ निभाते हुए सबके प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करेंगे .
     ७-ॐ सखे सप्तपदी भवः -इस सातवें और अंतिम फेरे में हम वचन देते हैं कि हम आजीवन साथी और सहयोगी बनकर रहेंगे .
   इस प्रकार उपरोक्त ''सप्तपदी ''का ज्ञान विवाह संस्कार की वास्तविकता को हमारे ज्ञान चक्षु खोलने हेतु पर्याप्त है .
          इस प्रकार पति-पत्नी इस जीवन रुपी रथ के दो पहिये हैं जो साथ मिलकर चलें तो मंजिल तक अवश्य पहुँचते हैं और यदि इनमे से एक भी भारी पड़ जाये तो रथ चलता नहीं अपितु घिसटता है और ऐसे में जमीन पर गहरे निशान टूट फूट के रूप में दर्ज कर जाता है फिर  जब विवाहित होने पर पुरुष सशक्त हो सकता है तो नारी गुलाम कैसे ?बंधन यदि नारी के लिए पुरुष है तो पुरुष के लिए नारी मुक्ति पथ कैसे ?वह भी तो उसके लिए बंधन ही कही जाएगी .रामायण तो वैसे भी नारी को माया रूप में चित्रित  किया गया है और माया तो इस  सम्पूर्ण जगत वासियों के लिए बंधन है .
        वास्तव में दोनों एक दूसरे के लिए प्रेरणा हैं ,एक राह के हमसफ़र हैं और दुःख सुख के साथी हैं .रत्नावली ने तुलसीदास को
     ''अस्थि चर्ममय देह मम तामे ऐसी प्रीति,
           ऐसी जो श्री राम में होत न तो भव भीति . ''
       कह प्रभु श्री राम से ऐसा जोड़ा कि उन्हें विश्विख्यात कर दिया वैसे ही भारत की प्रथम महिला चिकित्सक कादम्बिनी गांगुली जो कि विवाह के समय निरक्षर थी को उनके पति ने पढ़ा लिखा कर देश समाज से वैर विरोध झेल कर विदेश भेज और भारत की प्रथम महिला चिकित्सक के रूप में प्रतिष्ठित किया .

    इसलिए हम सभी यह कह सकते हैं कि सशक्तिकरण को मुद्दा बना कर नारी को कोई भटका नहीं सकता .अपनी मर्जी से अपनी शर्तों पर जीना सशक्त होना है और विवाह इसमें कोई बाधा नहीं है बाधा है केवल वह सोच जो कभी नारी के तो कभी पुरुष के पांव में बेडी बन जाती है .
              इस धरती पर हर व्यक्ति भले ही वह पुरुष हो या नारी बहुत से रिश्तों से जुड़ा है वह उस रूप में कहीं भी नहीं होता जिसे आवारगी की स्थिति कहा जाता है और कोई उस स्थिति को चाहता भी नहीं है और ऐसे में सहयोग व् अनुशासन की स्थिति तो होती है सही और बाकी सभी स्थितियां काल्पनिक बंधन कहे जाते हैं और वे पतन की ओर ही धकेलते हैं .अन्य सब रिश्तों पर यूँ ही उँगलियाँ नहीं उठती क्योंकि वे जन्म से ही जुड़े होते हैं और क्योंकि ये विवाह का नाता ही ऐसा है जिस हम  स्वयं जोड़ते हैं इसमें हमारी समझ बूझ ही विवादों  को जन्म देती है और इसमें गलतफहमियां इकट्ठी कर देती है .इस रिश्ते के साथ यदि हम सही निर्णय व् समझ बूझ से काम लें तो ये जीवन में कांटे नहीं बोता अपितु जीवन जीना आसान बना देता है .यह पति पत्नी के आपसी सहयोग व् समझ बूझ को बढ़ा एक और एक ग्यारह की हिम्मत लाता  है और उन्हें एक राह का राही बना मंजिल तक पहुंचाता है .
  और फिर अगर एक स्थिति ये है
 Man beating woman,silhouette photo
तो एक स्थिति ये भी  तो है 
 
             
                    शालिनी कौशिक
                             [कौशल]





टिप्पणियाँ

सवाल दासी होनें का नहीं है, आपसी तालमेल और सामंजस्य होना चाहिए।
--
आप जब विवाहित हो जायेंगी तो आपको इसका उत्तर मिल जायेगा!
Karupath ने कहा…
Hi,Gyaan se bharpoor aur atyant sahayak
समाज में जन्म लेते एक मिथक पर से पर्दा उठाता हुआ लेख !!
रविकर ने कहा…
घर घर की बात है-
मेरे घर में तो गृह स्वामिनी हैं वही-
शुभकामनायें-
बहुत रोचक आलेख, समान रूप से अधिकार व उत्तरदायित्य निर्वहन करें सब..
विवाह संस्था और नारी सशक्तिकरण पर तर्क पूर्ण सटीक और प्रभावी लेख है .शालिनी जी आपको बधाई
New post तुम ही हो दामिनी।
Rekha Joshi ने कहा…
.शालिनी जी ,
यह पति पत्नी के आपसी सहयोग व् समझ बूझ को बढ़ा एक और एक ग्यारह की हिम्मत लाता है और उन्हें एक राह का राही बना मंजिल तक पहुंचाता है .,अति सुंदर आलेख ,बधाई
virendra sharma ने कहा…
मोहन भागवत जी हों या कोई और सवाल प्रतिबद्धता का है .जो भी इस प्रतिबद्धता से विमुख होता है वह दूसरे को भी इस गठबंधन से बाहर जाने के लिए आज़ाद कर देता है .भागवत जी के कहे का

भी

यही अर्थ था .दासी और सशक्तिकरण दो विरोधी भाव है .पत्नी दासी कैसे हो जाती है ?वह तो स्वामिनी है ,मालिकिन है गृह स्वामिनी है .

हर शब्द अपना संस्कार लिए होता है .सौदे की कोई बात भागवत जी ने नहीं कही थी .हमने भी वह वक्तव्य सुना था .वह परम्परागत रोल्स की स्टीरियो -टाइप रोल्स की बात कर थे .एक घर की

जिम्मेवारी ले दूसरा बाहर की जो इस अनुबंध को तोड़े वह दूसरे को भी इस अनुबंध से बाहर जाने की आज़ादी दे देता है .हमने जितना समझा यही भाव था उनका .बाकी आप वकील हैं .तर्क से कुछ

भी सिद्ध कर दें .हम अपना वल्द बचके बिल्ली जितने की चाह नहीं पाले हैं .

बढ़िया जानकारी मुहैया करवा है आपने इस पोस्ट की मार्फ़त .सोनिया जी को कैसे आपने अन्यों के साथ बिठा दिया ?वह तो इस दौर की तीसरी सबसे सशक्त महिला बतलाई जातीं हैं .
सुन्दर लेख. सुखद दाम्पत्य जीवन पारस्परिक आदर और समभाव से ही संभव है.
किसी भी स्त्री में अगर योग्यता और क्षमता है तो किसी भी कार्य के लिए विवाह का बंधन नहीं रोक सकता,,,

recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
विवाह से नारी नर की सहचारिणी बनती है दासी नहीं.गृहस्थी का सुचारु संचालन उसकी अधीनता में ही संभव है .
Rohit Singh ने कहा…
बिल्कुल दुरुस्त बात कही है। शादी का मतलब अगर दासी होना है तो पुरुष भी दास है। मगर ये दासता प्यार का नेह की होती है। ये किसी को कमजोर न बनाकर सशक्त बनाती है। सच है कि जहां जिसका दांव लगता है वही कमजोर को सताता है पर विवाह में कोई किसी को बांधता नहीं है उल्टा बंधनमुक्त सोच को प्रवाह देता है। सही मायने में स्वतंत्रता औऱ स्वछंदता के बीच के अंतर को समझाता है। पर यही मुश्किल है कि आजकल सोच उलटी होती जा रही है। पढ़े लिखे लोग ही समझ को दरकिनार कर तलाक कि दिशा में कदम बढ़ाते हैं। एक दूसरे कि खासियत की इज्जत न करके एक दूसरे कि बेइज्जती ही करने लगते है।
Saras ने कहा…
शालिनीजी ...सबसे ज्यादा ज़रूरी है मन मिलना ...अगर पति पत्नी की सोच मिलती है ...तो वह एक सफल विवाह कहलाता है ...और अगर वह स्त्री नारी सशक्ति करण से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुडी है ....तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है ...की उसका जीवन साथी भी उस सोच से जुड़ा हो....ऐसा न होने पर आपके ही लेख में पढ़ा कि या तो उन स्त्रीयों ने दूसरे विवाह किये और अपने रास्ते पर अग्रसर रहीं.....और या फिर उस संस्था को ही दर किनार अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जुट गयीं ..इसलिए विवाहित होना दासता का परिचायक है यह तो मैं बिलकुल नहीं मानती ....सिर्फ इक्षाशक्ति ज़रूरी है ...और वह हर क्षेत्र में लागू होता है .....अगर वह तीव्र है ...तो कोई भी दिक्कत रास्ते का रोड़ा नहीं बन सकती ...एक बेमेल विवाह भी नहीं ........बहुत सुन्दर विचारोत्तेजक आलेख
Asha Lata Saxena ने कहा…
अच्छा लेख |शक्ति स्वरूपा नारी के लिए विवाह कोई बंधन नहीं वरन उसे और शक्ति प्रदान करता है |जब वह अपना घर अच्छी तरह से सम्हाल सकती है तो कोई अन्य कार्य क्यूँ नहीं |
आशा
Gyan Darpan ने कहा…
बहुत अच्छा लेख !
अभी अभी भास्कर भूमि अख़बार में आपका यह पूरा लेख पढ़ा |
http://www.bhaskarbhumi.com/epaper/inner_page.php?d=2013-01-29&id=8&city=Rajnandgaon#

पर आजकल की नई सोच में आजादी तो सबको चाहिए पर प्रतिबद्धता और उतरदायित्व निभाना कोई नहीं चाहता|
आजादी की मांग करने वाली महिलाओं के पति-पत्नी के जितने भी झगड़े मैंने देखे है उनमें झगड़े का मुख्य बिंदु यदि देखा है कि पति-पत्नी एक दुसरे के प्रति प्रतिबद्ध व उतरदायी नहीं थे |
जिन जोड़ों में आपसी प्रतिबद्धता व उतरदायित्व का भाव है उनके बीच एक दुसरे की आजादी का कभी कोई मुद्दा उठता देखा ही नहीं !!
Gyan Darpan
virendra sharma ने कहा…

शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .प्रतिबद्ध होने और जिम्मेवार होने तथा दासी भाव में अंतर है .शादी के साथ दासत्व की अवधारणा भारतीय समाज में कभी नहीं रही वह तो है ही अर्द्धांगनी .और अर्द्धनारीश्वर है शिव रूप सम्पूर्ण मानव ,जिसमें नारीत्व भी हो पौरुष भी .
virendra sharma ने कहा…

शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .प्रतिबद्ध होने और जिम्मेवार होने तथा दासी भाव में अंतर है .शादी के साथ दासत्व की अवधारणा भारतीय समाज में कभी नहीं रही वह तो है ही अर्द्धांगनी .और अर्द्धनारीश्वर है शिव रूप सम्पूर्ण मानव ,जिसमें नारीत्व भी हो पौरुष भी .
virendra sharma ने कहा…
शालिनी कौशिक ने कहा…
वीरुभाई जी इसे कहते हैं अंधभक्ति अगर आपके मोहन भगवत जी इन्हें ''जी''या साहब कहते तो आप कोई न कोई तर्क उनके समर्थन में दे ही देते कि उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उन्हें झाड़ पर चढ़ा कर गिराने का इरादा रखते थे वैसे मोदी जी की खिलाफत बहार तो कम उनके अपने दल में ही कुछ ज्यादा है इस पर भी तो कुछ कहिये रोचक प्रस्तुति मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी

29 जनवरी 2013 10:22 pm


Virendra Kumar Sharma ने कहा…
मैंने दिग्विजय के वक्तव्यों पर सवाल उठाए थे .उन्होंने ओसामा बिन लादेन और हाफ़िज़ सईद के लिए "जी "और "साहब "का प्रयोग किया है .इस देश के स्वाभिमान को चुनौती देने वाले

,मुंबई पर हमला करने वाले सैंकड़ों हजारों लोगों के हत्यारे और भारत को अपना दुश्मन घोषित करने वाले इन आतंकवादियों के लिए "जी" और "साहब "जैसे आदरसूचक शब्दों का प्रयोग

करना किस न्याय के अंतर गत तर्क संगत है ?अपराध करने वाले व्यक्ति का सहकारी भी अपराधी माना जाता है .कोई और स्वाभिमानी देश होता तो दिग्विजय जैसी प्रवृत्ति के व्यक्ति को

शेष जीवन एडियाँ रगड़ने के लिए जेल में डालदेता .दुर्भाग्य यह है कि आप जैसी शिक्षित महिला भी परोक्ष रूप से दिग्विजय का समर्थन कर रही हैं .जब आप मेरे द्वारा कहे गए तर्कों को

पचाने से इनकार करती हैं तो आतंकवाद की समर्थक भाषा का प्रयोग करने वाले दिग्विजय को कौन सम्मान देगा .ये तो भारत का लोक तंत्र है जिसमें दिग्विजय जैसे राष्ट्र हित के विरोधी

और आप जैसी उनकी समर्थक दनदनाते फिर रहें हैं .आपका कोई दोष नहीं है .बस इतना ही कि राष्ट्रहित को देखके टिपण्णी दिया करें .

30 जनवरी 2013 1:02 pm
virendra sharma ने कहा…
शालिनी कौशिक ने कहा…
वीरुभाई जी इसे कहते हैं अंधभक्ति अगर आपके मोहन भगवत जी इन्हें ''जी''या साहब कहते तो आप कोई न कोई तर्क उनके समर्थन में दे ही देते कि उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उन्हें झाड़ पर चढ़ा कर गिराने का इरादा रखते थे वैसे मोदी जी की खिलाफत बहार तो कम उनके अपने दल में ही कुछ ज्यादा है इस पर भी तो कुछ कहिये रोचक प्रस्तुति मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी

29 जनवरी 2013 10:22 pm


Virendra Kumar Sharma ने कहा…
मैंने दिग्विजय के वक्तव्यों पर सवाल उठाए थे .उन्होंने ओसामा बिन लादेन और हाफ़िज़ सईद के लिए "जी "और "साहब "का प्रयोग किया है .इस देश के स्वाभिमान को चुनौती देने वाले

,मुंबई पर हमला करने वाले सैंकड़ों हजारों लोगों के हत्यारे और भारत को अपना दुश्मन घोषित करने वाले इन आतंकवादियों के लिए "जी" और "साहब "जैसे आदरसूचक शब्दों का प्रयोग

करना किस न्याय के अंतर गत तर्क संगत है ?अपराध करने वाले व्यक्ति का सहकारी भी अपराधी माना जाता है .कोई और स्वाभिमानी देश होता तो दिग्विजय जैसी प्रवृत्ति के व्यक्ति को

शेष जीवन एडियाँ रगड़ने के लिए जेल में डालदेता .दुर्भाग्य यह है कि आप जैसी शिक्षित महिला भी परोक्ष रूप से दिग्विजय का समर्थन कर रही हैं .जब आप मेरे द्वारा कहे गए तर्कों को

पचाने से इनकार करती हैं तो आतंकवाद की समर्थक भाषा का प्रयोग करने वाले दिग्विजय को कौन सम्मान देगा .ये तो भारत का लोक तंत्र है जिसमें दिग्विजय जैसे राष्ट्र हित के विरोधी

और आप जैसी उनकी समर्थक दनदनाते फिर रहें हैं .आपका कोई दोष नहीं है .बस इतना ही कि राष्ट्रहित को देखके टिपण्णी दिया करें .

30 जनवरी 2013 1:02 pm
Sarik Khan Filmcritic ने कहा…
बहुत बढि़या कविता/लेखन हैं- सारिक खान

http://sarikkhan.blogspot.in/

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