चिंता - चिता सम मानव की खातिर ,
मिटा देती है जीवन का
समस्त अस्तित्व चिंताएं ,
ये आ जाती हरेक मन में
बिना हम सबके बुलाये ,
सुकून का कोई भी पल
ये हम पर रहने न देती ,
तड़पने की टीस भरकर
ये हमको तोहफे हैं देती ,
नहीं बच सकते हम इनसे
नहीं कर सकते इनको दूर ,
ये तोड़ें स्वाभिमान सबका
ये सबकी खुशियां करती दूर ,
कही जाती है ये चिंता
चिता सम मानव की खातिर ,
घिरा जैसे कोई इनसे
हुआ शमशान में हाज़िर .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
समस्त अस्तित्व चिंताएं ,
ये आ जाती हरेक मन में
बिना हम सबके बुलाये ,
सुकून का कोई भी पल
ये हम पर रहने न देती ,
तड़पने की टीस भरकर
ये हमको तोहफे हैं देती ,
नहीं बच सकते हम इनसे
नहीं कर सकते इनको दूर ,
ये तोड़ें स्वाभिमान सबका
ये सबकी खुशियां करती दूर ,
कही जाती है ये चिंता
चिता सम मानव की खातिर ,
घिरा जैसे कोई इनसे
हुआ शमशान में हाज़िर .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-09-2014) को "अहसास--शब्दों की लडी में" (चर्चा मंच 1749) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
शारदेय नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ४