बढ़कर गले लगाती मुमताज़ मौत है .




Standing Skeleton warrior Stock Photo


दरिया-ए-जिंदगी की मंजिल मौत है ,
आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .
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बाजीगरी इन्सां करे या कर ले बंदगी ,
मुक़र्रर वक़्त पर मौजूद मौत है .
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बेवफा है जिंदगी न करना मौहब्बत ,
रफ्ता-रफ्ता ज़हर का अंजाम मौत है .
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महबूबा बावफ़ा है दिल के सदा करीब ,
बढ़कर गले लगाती मुमताज़ मौत है .
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महफूज़ नहीं इन्सां पहलू में जिंदगी के ,
मजरूह करे जिंदगी मरहम मौत है .
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करती नहीं है मसखरी न करती तअस्सुब,
मनमौजी जिंदगी का तकब्बुर मौत है .
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ताज्जुब है फिर भी इन्सां भागे है इसी से ,
तकलीफ जिंदगी है आराम मौत है .
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तक़रीर नहीं सुनती न करती तकाजा ,
न पड़ती तकल्लुफ में तकदीर मौत है .
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तजुर्बे ''शालिनी''के करें उससे तज़किरा ,
तख्फीफ गम में लाने की तजवीज़ मौत है .
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शालिनी कौशिक
[कौशल]


शब्दार्थ-तकमील-पूर्णता ,मुक़र्रर-निश्चित ,बावफ़ा-वफादार , तअस्सुब-पक्षपात, तज़किरा-चर्चा ,तक़रीर-भाषण ,तकब्बुर-अभिमान ,तकाजा-मांगना ,मुमताज़-विशिष्ट ,मजरूह-घायल


टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-05-2015) को "माँगकर सम्मान पाने का चलन देखा यहाँ" {चर्चा - 1985} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Onkar ने कहा…
सुन्दर ग़ज़ल
dr.mahendrag ने कहा…
महफूज़ नहीं इन्सां पहलू में जिंदगी के ,
मजरूह करे जिंदगी मरहम मौत है
बहुत सुन्दर गजल
dj ने कहा…
बेवफा है जिंदगी न करना मौहब्बत ,
रफ्ता-रफ्ता ज़हर का अंजाम मौत है .
बहुत बहुत खूब

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