सेना का तमाशा बनाया बाबू मोशा ने


   आज के समाचार पत्रों में एक समाचार के शीर्षक ने सर शर्म से झुका दिया ,शीर्षक था -''शहीद का कोई धर्म नहीं होता ,''शीर्षक सही था और लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अनबू  ने बात कही भी सही थी क्योंकि शहीद का केवल एक धर्म होता है ''वतन '' और केवल एक ही मकसद होता है ''वतन के लिए कुर्बानी '' और यही हम बचपन से सुनते आये हैं -
''शहीद तेरी मौत ही तेरे वतन की ज़िंदगी ,
 तेरे लहू से जाग उठेगी इस चमन की ज़िंदगी ,
 खिलेंगे फूल उस जगह पे तू जहाँ शहीद हो
 वतन की राह में वतन के नौजवाँ शहीद हों ,''
      ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी के विवादास्‍पद बयान का इंडियन आर्मी ने करारा जवाब दिया है। नॉर्दर्न कमांड के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अनबू ने कहा क‍ि सेना धर्म से ऊपर है और सभी जवानों के साथ समान व्‍यवहार किया जाता है। उन्‍होंने कहा, “सेना सर्वधर्म स्‍थल है। आर्मी में हर धर्म और संप्रदाय के जवान हैं, लेकिन यहां धार्मिक पहचान मायने नहीं रखता है। हम जवानों को धर्म के आधार पर नहीं बांटते हैं।” सुंजवान सैन्‍य शिविर पर आतंकी हमले में कई जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद ओवैसी ने कहा था कि हमले में शहीद होने वाले सात जवानों में से पांच कश्‍मीरी मुस्लिम हैं। उनके इस बयान पर विवाद पैदा हो गया था।
             सेना का यह कहना एकदम सही है कि सेना का कोई धर्म नहीं होता और यह हम सबके लिए गर्व की बात है क्योंकि अगर सेना भी हम सभी की तरह धर्म जाति में बँटी होती तो आज यह देश एक नहीं कई टुकड़ों में बँट चुका होता और ये भी हमारे लिए गर्व की बात रही कि आजतक कभी सेना के विषय में धर्म की बात की भी नहीं गयी किन्तु आज ऐसा हो रहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय को अपने से जुड़े सेना के जवान की शहादत को गाना पड़ रहा है असदुद्दीन ओवेसी जैसे कथित सांप्रदायिक नेता को यह कहना पड़ रहा है कि सुंजवां हमले में मारे गए सात कश्मीरी सैनिकों में से पांच कश्मीरी मुसलमान थे ,तो हमें यहाँ धर्म को छोड़कर इस खुसर-पुसर के मूल में तो जाना ही होगा कि आखिर हम इतना नीचे क्यों गिरते जा रहे हैं ?
        लता मंगेशकर जी ने कवि प्रदीप का यह गाना
             ''कोई सिख कोई जाट मराठा
              कोई गोरखा कोई मद्रासी
              सरहद पर मरने वाला
              हर वीर था हिंदुस्तानी ,''
  जब गाया तब कहीं हिन्दू-मुस्लिम शब्द शहीदों की श्रेणी में नहीं आया क्योंकि तब हम हिंदुस्तानी थे किन्तु आज यह लाग-लपेट हिन्दू मुस्लिम को लेकर शुरू हुई है और यह लाज़िमी भी है और इसके जिम्मेदार भी हम ही हैं इसलिए शर्म से सर भी हमारा ही झुकना चाहिए ,क्योंकि सेना का यह करारा जवाब न तो असदुद्दीन ओवेसी को है न धर्म के ठेकेदारों को बल्कि हमें है क्योंकि हमीं वे महान वोटर हैं जो अपनी वोट के इस्तेमाल द्वारा बीजेपी जैसी पार्टी को सत्ता में लाते हैं ,यह एक अटल सत्य है कि जब-जब देश में बीजेपी सत्ता में आती है तब-तब देश धर्मों में बँट जाता है क्योंकि इस पार्टी की नींव ही धर्मान्धता पर आधारित है ,
     स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने वाले दल का अंश, जिसके संस्थापकों में से एक और भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में उनका विकिपीडिया ही कहता है-
Vajpayee's first exposure to politics was in August 1942, when he and his elder brother Prem were arrested for 23 days during the Quit India Movement, when he was released after giving a written undertaking, expressly declaring that they would not participate in the anti-British struggle, a promise that they kept.[8]
      यह पार्टी सत्ता में आते ही अपने को सबसे बड़ी राष्ट्रवादी पार्टी दिखाने लगती है ,हिन्दुओं के रहनुमा के रूप में यह देश में हिन्दू -मुस्लिम में अंग्रेजों की तरह ही एक खाई खोदने का काम ही कर देती है और इसके सत्ता में होते हुए मुसलमानों में जहाँ असुरक्षा की भावना घर कर जाती है वहीँ हिन्दू स्वयं को इसकी छत्रछाया में इतने सुरक्षित महसूस करते हैं कि अपने भूले बिसरे सभी वैर भाव जिसकी वजह चाहे कुछ भी रही हो ,कारण उसका अपने आस-पास के मुसलमानों को ही मानकर उन पर अत्याचार करने लगते हैं ,इससे आपसी वैर-भाव बढ़ता है और साठ-सत्तर सालों से प्रेम सद्भावना की छाया तले रह रहे हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे के कट्टर दुश्मन के रूप में उभरकर सामने आ जाते हैं , 
    हमारा इतिहास साक्षी है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दू-मुस्लिम दोनों ने मिलजुल कर अपना रक्त बहाया है और यही ज़ज़्बा देश के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी कायम रहा है आज भी हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी सेना में अपने बेटों को देश की सेवा के लिए बढ़-चढ़कर भेजते हैं इस सबके बावजूद देश में अपनी सत्ता कायम रखने के लिए भाजपा द्वारा ऐसी ओछी राजनीति की जाती है जिससे अल्पसंख्यक वर्ग को अपने बेटों की भी देश के लिए शहादत के बारे में बताने को स्वयं इस तरह से ऊँगली उठानी पड़ती है और इससे व्यथित हो सेना के अधिकारी को सेना में असंतोष को जन्म लेने देने से रोकने के लिए अपना मुंह खोलना पड़ता है ,
         लेफ्टिनेंट जनरल अनबू ने ओवेसी का नाम लिए बगैर कहा कि जो लोग सेना की कार्य शैली नहीं जानते वे ही ऐसे बयान देते हैं ,और यह हम सब भी जानते हैं कि सेना अपना काम देश में अपनी तरह से ही करती है ,उसकी कार्यशैली सभी से अलग है ,वह किसी की तरफ मुंह नहीं ताकती ,किसी से सहायता की दरख्वास्त नहीं करती ,वह चाहती है तो बस इतना कि उसके कर्तव्य पालन में कोई आड़े न आये और उसकी देशभक्ति पर कोई ऊँगली न उठाये ,
          सेना की कार्यशैली पहले कभी इतने विवादों में नहीं आयी जितनी इस बार मोदी के नेतृत्व वाली भाजपानीत सरकार में आ रही है ,पहले कभी सर्जिकल स्ट्राइक हुई हो पता नहीं चला क्योंकि यह सेना का कार्य था और सेना अपने ऑपरेशन गुप्त  ढंग से करती है किन्तु मोदी सरकार में सबको पता चला कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई जिसकी ज़रुरत शायद कभी पाकिस्तान से 1965 -1971 के युद्ध में नहीं पड़ी 1999  का कारगिल युद्ध हो गया तब सर्जिकल स्ट्राइक की ज़रुरत नहीं पड़ी तो उसकी ज़रुरत अब ही क्यों पड़ी ,जब कंधार विमान में बैठकर आतंकियों को छोड़ने भाजपा के जसवंत सिंह जी जा रहे थे तब सर्जिकल स्ट्राइक क्यों नहीं कर दी गयी ?
        जवाब एक ही है क्योंकि तब मोदी सरकार नहीं थी और यह सरकार ही है जो सेना से भी ऊपर है देशभक्ति में ,राष्ट्रवादिता में और इसी का असर है कि आज शहीदों के भी धर्म बताये जा रहे हैं क्योंकि आज के भारत का केवल एक ही धर्म है -मोदी-शाह पूजा और जो यह कर सके वही भारतीय है और वही इस देश में रहने का अधिकारी है ,

शालिनी कौशिक 
    [कौशल ]

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-02-2017) को "कूटनीति की बात" (चर्चा अंक-2883) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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