अब जनता मांगे हाईकोर्ट बेंच मेरठ

अब जनता भी मांगे वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच

       मुंबई हाईकोर्ट की एक खडपीठ कोल्हापुर में बनने का रास्‍ता साफ हो गया है. कोल्‍हापुर खंडपीठ के लिए महाराष्‍ट्र सरकार कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही सरकार खंडपीठ के लिए 1120 करोड़ रुपये भी प्रदान करेगी. जिसे खंडपीठ की इमारत निर्माण और विभिन्‍न व्‍यवस्‍थाओं पर खर्च किया जाएगा. और यह समाचार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहुँचते ही यहाँ के अधिवक्ताओं के तन बदन में आग सी लग गयी ,१९७९ से लगातार उत्तर प्रदेश सरकार से और केंद्र सरकार से अधिवक्ता हाई कोर्ट बेंच की मांग कर रहे हैं जिसे चाहे कोई भी सरकार आ जाये ,पूरी नहीं करती है ,कभी कुछ कहकर तो कभी कुछ कहकर अधिवक्ताओं को टरका दिया जाता है , आज यह आंदोलन अपने ४० वे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और नतीजा वही ढाक के तीन पात , ये हाल बनाया है आज के सत्ताधारियों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच का कि लगता है कोई हंसी मजाक की बात हो रही है जबकि -
        पश्चिमी यू.पी.उत्तर प्रदेश का सबसे समृद्ध क्षेत्र है .चीनी उद्योग ,सूती वस्त्र उद्योग ,वनस्पति घी उद्योग ,चमड़ा उद्योग आदि में अपनी पूरी धाक रखते हुए कृषि क्षेत्र में यह उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वाधिक राजस्व प्रदान करता है .इसके साथही अपराध के क्षेत्र में भी यह विश्व में अपना दबदबा रखता है .यहाँ का जिला मुजफ्फरनगर तो बीबीसी पर भी अपराध के क्षेत्रमें ऊँचा नाम किये है और जिला गाजियाबाद के नाम से एक फिल्म का भी निर्माण किया गया है .यही नहीं अपराधों कीराजधानी होते हुए भी यह क्षेत्र धन सम्पदा ,भूमि सम्पदा से इतना भरपूर है कि बड़े बड़े औद्योगिक घराने यहाँ अपने उद्योगस्थापित करने को उत्सुक रहते हैं और इसी क्रम में बरेली मंडल के शान्ह्जहापुर में अनिल अम्बानी ग्रुप के रिलायंस पावर ग्रुपकी रोज़ा विद्युत परियोजना में २८ दिसंबर २००९ से उत्पादन शुरू हो गया है .सरकारी नौकरी में लगे अधिकारी भले ही न्यायविभाग से हों या शिक्षा विभाग से या प्रशासनिक विभाग से ''ऊपर की कमाई'' के लिए इसी क्षेत्र में आने को लालायित रहते हैं.इतना सब होने के बावजूद यह क्षेत्र पिछड़े हुए क्षेत्रों में आता है क्योंकि जो स्थिति भारतवर्ष की अंग्रेजों ने की थी वही स्थितिपश्चिमी उत्तर प्रदेश की बाकी उत्तर प्रदेश ने व् हमारे भारतवर्ष ने की है .  
         आज पश्चिमी यूपी में मुकदमों की स्थिति ये है कि अगर मुकदमा लड़ना बहुत ही ज़रूरी है तो चलो इलाहाबाद समझौते की गुंजाईश न हो ,मरने मिटने को ,भूखे मरने कोतैयार हैं तो चलिए इलाहाबाद ,जहाँ पहले तो बागपत से ६४० किलोमीटर ,मेरठ से ६०७ किलोमीटर ,बिजनोर से ६९२किलोमीटर ,मुजफ्फरनगर से ६६० किलोमीटर ,सहारनपुर से ७५० किलोमीटर ,गाजियाबाद से ६३० किलोमीटर ,गौतमबुद्धनगर से ६५० किलोमीटर ,बुलंदशहर से ५६० किलोमीटर की यात्रा कर के धक्के खाकर ,पैसे लुटाकर ,समय बर्बाद कर पहुँचोफिर वहां होटलों में ठहरों ,अपने स्वास्थ्य से लापरवाही बरत नापसंदगी का खाना खाओ ,गंदगी में समय बिताओ और फिरन्याय मिले न मिले उल्टे पाँव उसी तरह घर लौट आओ .ऐसे में १९७९ से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट खंडपीठ केआन्दोलन कारियों में से आगरा के एक अधिवक्ता अनिल प्रकाश रावत जी द्वारा विधि मंत्रालय से यह जानकारी मांगी जानेपर -''कि क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खंडपीठ स्थापना के लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन है ?''पर केन्द्रीय विधि मंत्रालय केअनुसचिव के.सी.थांग ने कहा कि -''जसवंत सिंह आयोग ने १९८५ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठस्थापित करने की सिफारिश की थी .इसी दौरान उत्तराखंड बनने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिले उत्तराखंड केअधिकार क्षेत्र में चले गए वहीँ नैनीताल में एक हाईकोर्ट की स्थापना हो गयी है .इस मामले में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कीराय मागी गयी थी .इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की किसी शाखा कीस्थापना का कोई औचित्य नहीं पाया .'' सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड बनने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्टसे दूरी घट गयी है ?क्या नैनीताल हाईकोर्ट इधर के मामलों में दखल दे उनमे न्याय प्रदान कर रही है ?और अगर हाईकोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश को इधर खंडपीठ की स्थापना का कोई औचित्य नज़र नहीं आता है तो क्यों?  

         समाचार पत्रों द्वारा  पश्चिमी उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट बेंच संघर्ष समिति द्वारा हड़ताल किये जाने की घोषणा प्रकाशित  की जाती रहती है जिसे देखते ही जनता का गुस्सा इधर के वकीलों को लेकर चरम पर पहुँच जाता है क्योंकि उनके अनुसार वकील काम करना ही नहीं चाहते वे रोज हड़ताल करते रहते हैं जबकि वे जानते ही नहीं कि अधिवक्ताओं की यह लड़ाई अंततः उन्ही के हितार्थ है आज ही क्या हमेशा से इस आंदोलन को लेकर अधिवक्ताओं की रणनीति में एक मुख्य कमी यह रही कि उन्होंने इसमें अपने साथ आम जनता को जोड़ने की कोशिश ही नहीं की जबकि उनका तो इसमें थोड़े बहुत व्यावसायिक हित का फायदा है असली फायदा तो जनता जनार्दन का ही है किन्तु जनता को जब तक यह नहीं पता होगा तब तक उसकी गलती नहीं कही जा सकती ,
          जनता को यह बताना अधिवक्ताओं का काम है कि मुक़दमे वे लड़ते हैं अपने न्यायिक हितों के लिए और यदि न्याय की दूरी उनसे घट जाये तो उनकी न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास बढ़ना स्वाभाविक है और यह वे खुद भी समझ सकतेहैंकि घर से जाने पर यदि किसी को घर बंद करना पड़ता है तो क्या उसके लिए कोई सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की गयी है ?जबकि जनता स्वयं जानती है कि यू.पी.में तो ये हालहै कि जब भी किसी का घर बंद हो चाहे एक दिन को ही हो चोरी हो जाती है .और यह भी कि अपने क्षेत्र से इलाहाबाद तक के सफ़र केलिए किसी विशेष सुविधा की व्यवस्था नहीं की गयी है ?.जनता को पता है इलाहाबाद में वादकारियों के ठहराने व् खाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं कीगयी है ?जनता जानती है कि वहां तो रिक्शा वाले ही होटल वालों से कमीशन खाते हैं और यात्रियों को स्वयं वहीँ ले जाते हैं जहाँ से उन्हें अच्छा कमीशन मिलता है और फिर मुक़दमे लड़ने के लिए वादकारियों को कौनसा वाद व्यय दिया जाता है या उनके लिए सुरक्षा का कौनसा इंतजाम किया जाता है ?
        जबकि हाल तो येहै कि दीवानी के मुक़दमे आदमी को दिवालिया कर देते हैं और फौजदारी में आदमी कभी कभी अपने परिजनों व् अपनी जान सेभी हाथ धो डालता है .पश्चिमी यू.पी .की जनता को इतनी दूरी के न्याय के मामलों में या तो अन्याय के आगे सिर झुकानापड़ता है या फिर घर बार लुटाकर न्याय की राह पर आगे बढ़ना होता है . वकील इस मुद्दे को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं और जनता इस बात से अभी तक या तो अनभिज्ञ है या कहें कि वह अपनी अनभिज्ञता को छोड़ना ही नहीं चाहती जबकि यह हड़ताल उन्हें हर तरह से नुकसान पहुंचा रही है और वे रोज़ न्यायालयों के चक्कर काटते है और वापस आ जाते हैं वकीलों पर ही नाराज़ होकर ,वे समझना ही नहीं चाहते कि हड़ताल की पूरी जिम्मेदारी हमारी सरकारों की है जो समय रहते इस मुद्दे को निबटाना ही नहीं चाहते और पूर्व के वर्चस्व को पश्चिम पर बनाये रखना चाहते हैं .साथ ही एक बात और भी सामने आई है कि सरकार जनता को बेवकूफ बनाये रखने में ही अपनी सत्ता की सुरक्षा समझती है और नहीं देखती कि न केवल जनता के समय की पैसे की बर्बादी हो रही है बल्कि इतनी दूरी के उच्च न्यायालय से जनता धोखे की शिकार भी हो रही है क्योंकि पास के न्यायालय में बैठे अधिवक्ता अपने मुवक्किल के सामने होते हैं और उन्हें मुक़दमे के संबंध में अपनी प्रतिबद्धता अपने मुवक्किल को साबित करनी पड़ती है किन्तु यह सब उस पार्टी को भी नहीं दिखता जो अपनी सत्ता द्वारा जनता से अच्छे दिन लाने का वादा करती है .पश्चिम का सब कुछ उठाकर पूर्व को देने की यह महत्वाकांक्षा यह पार्टी भी रखती है .  
         आज गौर करने लायक बात यह है कि वकील तो अपने हित छोड़कर जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस लड़ाई को सफलता तभी मिल सकती है जब जनता और सरकार दोनों वकीलों के साथ हों ,कोल्हापुर में भाजपा के मुख्यमंत्री ने अपनी जनता से किया वायदा निभाया आज पहले दोनों जगह सत्ता में बैठी भाजपा को अगर अपने अच्छे दिनों का वायदा पूरा करना है तो पहले वकीलों और जनता से यह वायदा करना होगा कि हम अपने चुनावी वायदों पर कायम हैं और यह स्थिति तभी होगी जब भाजपा वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच दिलवाएगी और भाजपा अपनी तत्परता इसे लेकर साबित भी कर रही है, अभी हाल ही में भाजपा सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियां जी ने लोकसभा में वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच का मुद्दा उठाया वैसे भी हाई कोर्ट बेंच यहाँ के वकीलों की केवल मांग ही नहीं है अपितु यहाँ की जनता की सबसे बड़ी ज़रुरत है और यह जनता का न्यायहित है जो उन्हें अपने देश की सरकार से अपने लिए बिन मांगे न सही मांगने पर तो मिल ही सकता है ,  
शालिनी कौशिक  
[एडवोकेट ]  
सीट नंबर 29
सिविल कोर्ट
कैराना 

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