सुप्रीम कोर्ट से टक्कर लेती खाप पंचायतें
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खाप पंचायत को लेकर बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों को झटका देते हुए कहा कि शादी को लेकर खाप पंचायतों के फरमान गैरकानूनी हैं। अगर दो बालिग अपनी मर्जी से शादी कर रहे हैं तो कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे यह भी कहा है कि जब तक केंद्र सरकार इस मसले पर कानून नहीं लाती तब तक यह आदेश प्रभावी रहेगा किन्तु लगता है खाप पंचायतें भी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कमर कसकर बैठी हैं ,
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दो बालिगों की अपनी मर्जी की शादी में किसी को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है किन्तु गठवाला खाप के बहावड़ी थांबेदार चौधरी बाबा श्याम सिंह का कहना है -''सगोत्रीय विवाह मंजूर नहीं होगा क्योंकि इससे संस्कृति को खतरा है अपने गोत्र को बचाकर कहीं भी शादी की जा सकती है ,''
सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया वह हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ की रौशनी में दिया जिसमे सगोत्रीय व् सप्रवर विबाह मान्य हैं किन्तु खाप जिस रौशनी में काम करती हैं वे प्राचीन हिन्दू धर्मशास्त्रों में रहा उनका विश्वास है ,जिसके अनुसार हिन्दुओं में यह विश्वास है कि उनमे से प्रत्येक किसी न किसी ऋषि की संतान है ,एक ऋषि की संतान का गोत्र एक ही होता है दूसरे शब्दों में एक ऋषि की पुरुष परंपरा में समस्त वंशजों का एक ही गोत्र होता है ,यह गोत्र है उस पूर्वज ऋषि का नाम ,गोत्र की अन्य व्याख्याएं भी दी गयी हैं ,संभवतः प्रारम्भ में गोत्र का अर्थ था 'बन्ध ',जो भी अन्य व्याख्याएं गोत्र की रही हों ;यह स्पष्ट है कि स्मृतियों व् गृहसूत्रों के काल में सगोत्रीय विवाह वर्जित थे ,अंग्रेजी शासन काल में भी प्राप्त सूचनाओं के अनुसार सगोत्रीय अमान्य रहे किन्तु हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ ने इन्हें मान्यता दे दी ,
हिन्दू विधि की अधिकांश मान्यताएं विज्ञानं पर आधारित रही और इसी का मुख्य कारण था गोत्र में शादी का प्रचलन न होना क्योंकि वैज्ञानिक आधार पर एक गोत्र से तात्पर्य एक ब्लड से है और एक ब्लड में शादी बहुत सी मानसिक व् शारीरिक विसंगतियां पैदा करती हैं जैसा कि हिन्दुओं में पंजाबियों में व् मुस्लिम धर्म के लोगो में देखते होंगें इन दोनों में ही केवल एक माँ की संतान से शादी का परहेज किया जाता है एक गोत्र या एक ब्लड का परहेज इनमे नहीं होता इसलिए इनमे मानसिक व् शारीरिक विकृतियों की भरमार इनमे देखने को मिलती है ,
हमारी खाप पंचायतें इसी विज्ञानं को मानती हैं और इसीलिए संस्कृति की सुरक्षा के झंडे के नाम पर हमारी आने वाली पीढ़ियों की सलामती का झंडा उठायें खड़ी हैं जिन पंचायतों के फरमानों को आज सुप्रीम कोर्ट गैरकानूनी कह रही हैं आने वाली पीढ़ियां इन्हीं का इस्तेकबाल करने वाली हैं क्योंकि भले ही आज की पीढ़ी भटककर कोई गलत फैसला ले हो किन्तु आगे जब खुद को अपने माँ बाप की स्थिति में देखेगी तो यही कहेगी कि हममें तो अक्ल नहीं थी आपने हमें क्यों नहीं रोका ? माँ बाप को इसी स्थिति से बचाने के लिए खाप पंचायतें सुप्रीम कोर्ट से टक्कर ले रही हैं और कह रही हैं कि ''खाप पंचायत किसी पर जोर जबरदस्ती नहीं करती हैं ,लेकिन समाज को सही राह दिखाना खाप पंचायत का कार्य है ,जिसे खाप करती रहेगी ,और खाप की यही नेकनीयती इसे जन समुदाय में अग्रणी स्थान दिलाती रहेगी ,
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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