राजनीति में जमी आतंकवाद की जड़ें



   पेरिस में मुंबई जैसा आतंकवादी हमला , १२६ की मौत ,आई एस के फिदायीन हमलावरों ने भीड़ भरे सात स्थानों को निशाना बनाया -इस तरह की घटनाएँ कभी रुकने वाली हैं ऐसा कभी भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि जो तत्व इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है वह इन्हें कभी रुकने नहीं देगा और भले ही किसी भी देश में ये घटनाएँ घटने पर वहां के हुक्मरान इनसे हताहत हुई जनता के दुःख को दूर करने के लिए आतंकवाद से निबटने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दें किन्तु वास्तव में इन घटनाओं के पीछे अगर कोई है तो हुक्मरानों का यही  प्रतिबद्धता का नाटक है क्योंकि हुक्मरानों की यह प्रतिबद्धता मात्र एक दिखावा है जो कि घटना के घटित होने पर तुरत प्रतिक्रिया के रूप में दिखाई जाती है और धीरे धीरे इस पर समय का मरहम लगा दिया जाता है और यही इस तरह की घटनाओं का मूल कारण है क्योंकि यह आम तौर पर देखने में आया है कि किसी महत्वपूर्ण घटनाक्रम से  जो कि राजनीति के आकाश में अगर धुंधलका आता दिखाई देता है तो इस तरह के घटनाक्रम से उस आकाश को स्वच्छ करने की प्रक्रिया हमारे हुक्मरानों द्वारा अपनायी जाती है ऐसी ही कुछ मुंबई के आतंकवादी हमले के समय आशंकाएं उठी थी किन्तु जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि समय का मरहम सब कुछ भुला देता है और राजनीति अपना उल्लू सीधा करती रहती है .इसलिए जब फिर सब कुछ सुचारू रूप से चलता दिखाई देता है तब फिर से राजनीति को कुछ चुभन होती है और यह चुभन एक नये आतंकवादी हमले के रूप में दूर की जाती है और हर नया आतंकवादी हमला नए ज़ख्म दे जाता है और ध्यान फिर भटक जाता है और हमें डर की ओर धकेल जाता है .
    कहने को कहा जायेगा कि ये हमला पेरिस में हुआ है भारत में नहीं, किन्तु जवाब वही है राजनीति पूरे विश्व में एक जैसी है ''अवसरवादी -अपना उल्लू सीधा करने वाली '' और रही बात आतंकवादी संगठन द्वारा इन हमलों की जिम्मेदारी लेने की तो यह किसे नहीं पता कि इन संगठनों को पनपने का अवसर कौन देता है .एक छोटा सा अपराधी धीरे धीरे बड़े आपराधिक गिरोह का सरगना बन जाता है ,पुलिस की नाक के नीचे ही वह कितनों को मौत के घाट उतार देता है पुलिस को उसका पता ही नहीं चलता लेकिन जब पुलिस की अपनी ही जान पर बन आती है तब न केवल वह अपराधी पकड़ा जाता है बल्कि मारा भी जाता है और यह तो रही छोटे स्तर की बात पर यह बात ही केवल छोटे स्तर की है छोटी है नहीं क्योंकि इन आतंकवादी हमलों में पुलिस की भूमिका में राजनीति के  आकाश पर चमकते हमारे बड़े बड़े देश और इनके हुक्मरान  हैं और ये जब तक चाहेंगे तब तक ये संगठन ऐसे ही अस्तित्व में रहेंगे और जब ये इनका ख़ात्मा चाहेंगे तब वह भी हो जायेगा और ओसामा बिन लादेन का सफाया इसका जीता जागता सबूत है .इसलिए अगर ये कहा जाये कि राजनीति की जमीन में ही आतंकवाद की जड़ें जमीं हैं और इसका ख़ात्मा मुश्किल नहीं तो कठिन अवश्य है तो यह सही ही होगा क्योंकि राजनीति अमर घुंटी पीकर ही पैदा हुई लगती है .
शालिनी कौशिक
 [कौशल ]

टिप्पणियाँ

Rishabh Shukla ने कहा…

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