पुरुष मन की कल्पना

 


अधिकार 

सार्वभौमिक सत्ता 
सर्वत्र प्रभुत्व 
सदा विजय 
सबके द्वारा अनुमोदन 
मेरी अधीनता 
सब हो मात्र मेरा 

कर्तव्य 

गुलामी 
दायित्व ही दायित्व 
झुका शीश 
हो मात्र तुम्हारा 
मेरे हर अधीन का 

बस यही कल्पना 

हर पुरुष मन की .

शालिनी कौशिक 

   

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर कल्पना।
Shalini kaushik ने कहा…
जो सत्य भी है - टिप्पणी हेतु आभार 🙏🙏
Anita ने कहा…
वाह! यह अलग अलग मन की कहानी है

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