छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने

छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने 

छतीसगढ़ स्थित सुकमा जिले के दर्भा घाटी क्षेत्र में कॉंग्रेसी नेताओं के काफिले पर हुए नृशंस हमले को ऊपरी तौर पर एक नक्सली हमले के रूप में देखा जा रहा है किन्तु जैसे जैसे समाचार पत्रों में ये समाचार प्रकाशित हो रहा है और भुग्तभोगियों व् घटनाक्रम में बचे लोगों के बयान आ रहे हैं उससे यह साफ होता जा रहा है कि यह मात्र नक्सली हमला नहीं था वरन सोची समझी राजनितिक साजिश भी था .
     महेन्द्र कर्मा की हत्या का जहाँ तक सवाल है तो ये नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे और नक्सलियों द्वारा उन पर पहले भी कई हमले किये जा चुके थे किन्तु नन्द कुमार पटेल ,प्रदेश अध्यक्ष की मौत को नक्सली हमले के परिणाम रूप में ग्रहण नहीं किया जा सकता है और यदि यह परिवर्तन यात्रा नक्सली क्षेत्र से निकालने पर पटेल को बात न मानने की सजा नक्सलियों ने दीभी तो उनके बेटे को किस कृत्या की सजा दी जबकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें नक्सलियों ने आसानी से जाने दिया जिनमे कोंटा के विधायक कवासी लकमा भी शामिल हैं .

नक्सली हमला: पटेल, उनके बेटे का शव बरामद


nand kumar patel and son killed by maoists  
एक तरफ दो-दो घंटे तक गोलीबारी होती है अपहरण होते हैं हत्याएं होती हैं और ऐसा नहीं कि किसी निजी क्षेत्र में ऐसा होता है बल्कि राज्य के अति संवेदनशील क्षेत्र में खुले आम इस नृशंस कार्यवाही को अंजाम दिया जाता है उस पर मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ रमण सिंह कहते हैं कि सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे अगर ऐसा सुरक्षा के पूरे इंतजाम में होता है तो बिना सुरक्षा इंतजाम में क्या होगा ये आम छत्तीसगढ़ निवासी की तो कल्पना से भी परे होगा .दर्भा घाटी पहले ही नक्सलियों का अड्डा रही है और वहां कार्यक्रम के लिए जाने वाले कौंग्रेस जेड सुरक्षा वाले नेताओं को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दिया जाना इस हमले को राजनितिक साजिश के घेरे में उसी तरह ले आती है जैसे १९९१ में राजीव गाँधी की हत्या के मामले में चन्द्र शेखर सरकार द्वारा उनकी सुरक्षा हटा लिया जाना संदेह के घेरे में हैं और फिर नक्सली हिट लिस्ट की बात करें तो पूर्व विधायक उदय मुदालियर ,योगेन्द्र शर्मा और अन्य का नक्सली अभियान से कोई वास्ता नहीं था हाँ वे कॉंग्रेसी अवश्य थे .
      आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए कौंग्रेस के दिग्गज नेताओं को चुन-चुनकर मारने के पीछे का कारण तो सहज ही समझा जा सकता है .एक तरफ तो इस हमले से कौंग्रेस की स्थिति राज्य में डांवाडोल करने की कोशिश की गयी है तो दूसरी तरफ रमण सिंह की तीसरी बार ताजपोशी की राह में अंगारों की सड़क का इंतजाम किया गया है क्योंकि तीसरी बार भाजपा का छत्तीसगढ़ में आना रमण सिंह के लिए भी भाजपा में उसकी कुर्सी का प्रबंध करता है जिस कुर्सी का प्रबंध गुजरात में हैट्रिक  लगा कर मोदी अपने लिए हासिल करने की जुगत में लगे हैं .

raman singh in problemनक्सली हमले ने बढ़ाई रमन सिंह की मुश्किलें  

ऐसे में हमला केवल नक्सली नही कहा जा सकता .ये तो वही बात हुई कि कोई व्यक्ति सात साल से लापता है तो मर ही गया होगा कि उपधारणा की जाये या फिर कोई व्यक्ति किस लाश के पास खड़ा है तो क़त्ल उसने ही किया होगा ,सोच लिया जाये .इस सोच पर चलकर हम मामले के भीतर के सत्य को कभी उजागर नहीं कर सकते .इसकी सच्चाई सामने लाने के लिए हमें इन तथ्यों को ध्यान में रखना ही होगा कि पुलिस द्वारा किसी भी घटना को मुठभेड़ का रूप दे दिया जाता है .किसी महत्वपूर्ण घटनाक्रम से ध्यान हटाना हो तो देश को आतंकवाद की आग में झोंक दिया जाता है .
          शालिनी कौशिक 
                  [कौशल ]

टिप्पणियाँ

राजेश सिंह ने कहा…
प्रश्न और संदेह स्वाभविक है उदय मुदलियार और दिनेश पटेल का ग्रीन हंट या किसी नक्सल विरोधी से कोई भी स्पष्ट सरोकार नहीं था फिर यह हत्या प्रश्न खड़े करती ही है
Shikha Kaushik ने कहा…
this is a open murder scandal .inquiry will bring out many startling facts
Ramakant Singh ने कहा…
आपका लेख विचारणीय और घटनाएँ रूट का बदलना राज्य सरकार की नियत, निष्ठा, सेवा पर संदेह पैदा करता है श्री राजेश कुमार सिंह की टिपण्णी को भी मेरी मानी जाए
kb rastogi ने कहा…
शालिनी जी
इस नक्सली घटना का सत्य शायद ही सामने आये। पर एक बात है जब हमारे जवान मारे जाते हैं तब इतना आक्रोश सरकार क्यों नहीं दिखाती। आज उन जवानो के साथ कुछ राजनितिक हस्तियाँ हताहत होती हैं तब एकदम उबाल आ जाता है।
kb rastogi ने कहा…
शालिनी जी
इस नक्सली घटना का सत्य शायद ही सामने आये। पर एक बात है जब हमारे जवान मारे जाते हैं तब इतना आक्रोश सरकार क्यों नहीं दिखाती। आज उन जवानो के साथ कुछ राजनितिक हस्तियाँ हताहत होती हैं तब एकदम उबाल आ जाता है।
Rajendra kumar ने कहा…
हर दिन नक्सली हमले में हमारे जवान मारे जा रहे हैं जिसे दो चार दिन में ही भूला दिया जाता है. जवानो के साथ कुछ राजनितिक हस्तियाँ हताहत हुई तो हलचल मच गयी.
Rajput ने कहा…
बहुत ही दर्दनाक वाकया। काश ऐसा ही अफसोस नेता लोग तब करते जब अनेकों जवान मारे जाते हैं
Tanuj Vyas ने कहा…
"अपने देश में एक सिपाही की जिन्दगी की कीमत सिर्फ एक गोली की कीमत जितनी ही हैं जिससे नेताओ पर हमला हुआ"....#naksalwad
Tanuj Vyas ने कहा…
http://tanuj-linesfromheart.blogspot.com/2013/05/blog-post.html
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
निश्चय ही यह एक राजनीतिक साजिश ही है जिसे नक्सलियों के माध्यम से भाजपा ने अंजाम दिया है। जब नक्सली यशवंत सिन्हा को इसलिए जिता सकते हैं कि उन्हें कांग्रेस को हराना था। फिर वादा-खिलाफी पर उन्ही यशवंत सिन्हा से 16 लाख रुपए नकद लेकर उनकी ही गाड़ी से मुकाम तक पहुंचाते हैं और उनको 20 किलो मीटर पैदल दौडवा लेते हैं और चुनाव मे हरवा देते हैं तब क्यों न यह माना जाना चाहिए कि भाजपा से धन लेकर नक्सलियों ने यह षड्यंत्र रचा था। इसका प्रमाण भाजपा सरकार द्वारा सुरक्षा प्रबंध न किए जाने मे अंतर्निहित है।
Unknown ने कहा…
बहुत ही दर्दनाक वाकया विचारणीय लेख
शक के घेरे में केवल भाजपा की सरकार ही नहीं बल्कि कांग्रेस के कई नेता भी है ! इसलिए अभी किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी !जो भी हुआ वो दुखद था !

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