पाखंडों का अजगर घूमे ,अपना मुख फैलाकर .
तौबा करते धर्मस्थल में ,भक्त यूँ भीड़ बढाकर ,
पाप काटते रोज़ चढ़ावा ,ज्यादा खूब चढ़ाकर .
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सारे साल है मारे बच्चे ,रखे खूब कमाकर ,
दाई कराये तीर्थ यात्रा बस में लोग बैठाकर .
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खाली हाथ ही जाना मुझको ,बोले ये चिल्लाकर ,
पैसे बीमे के वे खाता ,लोग जो जाएँ जमाकर .
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देता दावत नेताओं को ,बाप का धन लुटाकर ,
विधवा माँ को सबके आगे ,पागल बड़ी दिखाकर .
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इस दुनिया में जिधर भी देखो ,अपनी आँख घुमाकर,
पाखंडों का अजगर घूमे ,अपना मुख फैलाकर .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
मानवता का कोई धर्म ,कोई मत, कोई सम्प्रदाय पाखंड से अछूता नहीं है ! आपने सत्य कहा कि
इस दुनिया में जिधर भी देखो ,अपनी आँख घुमाकर,
पाखंडों का अजगर घूमे ,अपना मुख फैलाकर .---
बुद्धजीवियों को इससे मुक्ति की राह खोजनी है !
पाखंडों का अजगर घूमे ,अपना मुख फैलाकर-- ....लोग जानकार भी लोभ में उनके चंगुल में फंसते हैं
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
पाखंडों का अजगर घूमे ,अपना मुख फैलाकर .
...आज की अवस्था का बहुत सटीक चित्रण...बहुत सुन्दर..