रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है .
ये राहें तुम्हें कभी तन्हा न मिलेंगीं ,
तुमने इन्हें फरेबों से गुलज़ार किया है .
ताजिंदगी करते रहे हम खिदमतें जिनकी ,
फरफंद से अपने हमें बेजार किया है .
कायम थी सल्तनत कभी इस घर में हमारी ,
मुख़्तार बना तुमको खुद लाचार किया है .
करते कभी खुशामदें तुम बैठ हमारी ,
हमने ही तुम्हें सिर पे यूँ सवार किया है .
एहसान फरामोश नहीं हम तेरे जैसे ,
बनेंगे हमसफ़र तेरे इकरार किया है .
गुर्ग आशनाई से भरे भले रहें हो संग ,
रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है .
फबती उड़ाए ''शालिनी''करतूतों पर इनकी ,
हमदर्दों को मुखौटों ने बेकार किया है .
शब्दार्थ ;गुलज़ार-चहल-पहल वाला ,ताजिंदगी-आजीवन ,गुर्ग आशनाई -कपटपूर्ण मित्रता ,फबती उड़ाए -चुटकी लेना .
शालिनी कौशिक
[कौशल]
टिप्पणियाँ
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
बनेंगे हमसफ़र तेरे इकरार किया है .
दर्द किसके दिल का लफ़्ज़ों में उतर आया है
कब तक चलेंगे साथ केवल राम ही जानें फिलहाल साथ चलने का इकरार किया है = आगे आगे देखिये होता है क्या ?