जो बोया वही काट रहे आडवानी


advani resigns from all prime posts of bjp, rajnath reject 
''आज माना कि इक्तदार में हो ,हुक्मरानी के तुम खुमार में हो ,
ये भी मुमकिन है वक़्त ले करवट ,पाँव ऊपर हों सर तगार में हो .''
    कुछ साल पहले जब अटल बिहारी वाजपेयी जी को बीमार बताकर नेपथ्य में जाने को अडवाणी जी ने अपने गुट के साथ मिलकर विवश किया था तब अटल जी के मन में यही विचार उभरे होंगे जो अब मोदी जी के लिए अडवाणी जी के मन में सभी को उभरते नज़र आ रहे हैं .किन्तु जैसा कि भारतीय संस्कृति का नियम है जो जो बोता है वही काटता है  ,के परिणाम स्वरुप आज अडवाणी जी भी उसी स्थिति में पहुँच चुके हैं और पार्टी में मोदी जी के बढ़ते प्रभाव के फलस्वरूप स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे हैं यही कारण है कि उन्होंने अपनी तरफ से अपनी पार्टी का बहिष्कार कर दिया जिसे वे स्वयं राष्ट्र हित के लिए बनी पार्टी कहते हैं .
    भारतीय जनता पार्टी ,यही नाम है उस दल का और जैसे कि आज भारतीय जनता के ही मानक पलट चुके हैं वैसे ही पलट चुके हैं इस पार्टी के सिद्धांत .आज की भारतीय जनता अपने बड़े  बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में भेजने लगी है क्योंकि उसके लिए ये नाकारा हो चुके होते हैं ,किसी काम के नहीं रहते ऐसे विचार आज की भारतीय जनता रखने लगी है और वह भी खासकर तब जबसे मोदी जी जैसे इस पार्टी में प्रमुखता ग्रहण कर रहे हैं जो दूसरे दलों के विद्वान नेताओं की उम्र को लेकर जब तब खिल्ली उड़ाते ही नज़र आते हैं . और जब यह पार्टी इसी भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करती है तो यह कैसे लाल कृष्ण अडवाणी जी को पार्टी के लिए प्रासंगिक मान सकती है.इसलिए ऐसे में जब पार्टी अपनी विशेषता खोती जा रही है  ,जो कि उन्होंने अपने इस्तीफे में भी लिखा है -

Full Text of L K Advani's resignation letter to Rajnath Singh

Here's the full text of BJP patriarch L K Advani's resignation letter to party chief Rajnath Singh.
Dear Shri Rajnath Singhji,
All my life I have found working for the Jana Sangh and the Bharatiya Janata Party a matter of great pride and endless satisfaction to myself.
For some time I have been finding it difficult to reconcile either with the current functioning of the party, or the direction in which it is going. I no longer have the feeling that this is the same idealistic party created by Dr Mookerji, Deen Dayalji, Nanaji and Vajpayeeji whose sole concern was the country, and its people. Most leaders of ours are now concerned just with their personal agendas.
I have decided, therefore, to resign from the three main fora of the party, namely, the National Executive, the Parliamentary Board, and the Election Committee. This may be regarded as my resignation letter.
Yours Sincerely
L K Advani   
ऐसे में भारतीय संस्कृति के प्रति उपेक्षा का बर्ताव करने वाले मोदी को वे चुनावी कमान के मुखिया के रूप में कैसे स्वीकार कर सकते हैं ,जिनसे न तो अपने विवाह को निभाया गया जिसके लिए फेरे लेते वक़्त उन्होंने वचन लिए होंगे -
  
  विवाह संस्कार - सबसे महत्वपूर्ण रस्म है ''सप्तपदी ''जिसके  पूरे होते ही किसी दम्पति का विवाह सम्पूर्ण और पूरी तरह वैधानिक मान लिया जाता है .हिन्दू विवाह कानून के मुताबिक सप्तपदी या सात फेरे इसलिए भी ज़रूरी हैं ताकि दम्पति शादी की हर शर्त को अक्षरशः स्वीकार करें .ये इस प्रकार हैं -
 १- ॐ ईशा एकपदी भवः -हम यह पहला फेरा एक साथ लेते हुए वचन देते हैं कि हम हर काम में एक दूसरे  का ध्यान पूरे प्रेम ,समर्पण ,आदर ,सहयोग के साथ आजीवन करते रहेंगे .
  २- ॐ ऊर्जे द्विपदी भवः -इस दूसरे फेरे में हम यह निश्चय करते हैं कि हम दोनों साथ साथ आगे बढ़ेंगे .हम न केवल एक दूजे को स्वस्थ ,सुदृढ़ व् संतुलित रखने में सहयोग देंगे बल्कि मानसिक व् आत्मिक बल भी प्रदान करते हुए अपने परिवार और इस विश्व के कल्याण में अपनी उर्जा व्यय करेंगे .
 ३-ॐ रायस्पोशय  त्रिपदी भवः -तीसरा फेरा लेकर हम यह वचन देते हैं कि अपनी संपत्ति की रक्षा करते हुए सबके कल्याण के लिए समृद्धि का वातावरण बनायेंगें .हम अपने किसी काम में स्वार्थ नहीं आने देंगे ,बल्कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेंगें .
 4- ॐ मनोभ्याय चतुष्पदी  भवः -चौथे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि आजन्म एक दूजे के सहयोगी रहेंगे और खासतौर पर हम पति-पत्नी के बीच ख़ुशी और सामंजस्य बनाये रखेंगे .
 ५- ॐ प्रजाभ्यःपंचपदी भवः -पांचवे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि हम स्वस्थ ,दीर्घजीवी संतानों को जन्म  देंगे और इस तरह पालन-पोषण करेंगे ताकि ये परिवार ,समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर साबित हो .
 ६- ॐ रितुभ्य षष्ठपदी  भवः -इस छठे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि प्रत्येक उत्तरदायित्व साथ साथ पूरा करेंगे और एक दूसरे का साथ निभाते हुए सबके प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करेंगे .
     ७-ॐ सखे सप्तपदी भवः -इस सातवें और अंतिम फेरे में हम वचन देते हैं कि हम आजीवन साथी और सहयोगी बनकर रहेंगे .
   और जिन्हें उन्होंने कभी पूरा नहीं किया जबकि वे उन भगवान राम के नाम पर अपनी सत्ता की नीवं रखने चले हैं जिनके लिए ''प्राण जाये पर वचन न जाये ''जीवन का मूल सिद्धांत है .ऐसे मोदी जी को स्वीकारना ,जो कि भारतीय संस्कृति को दरकिनार कर मुगलों की संस्कृति को अपना कर ''औरंगजेब ''बनने जा रहे हैं , किसी भी सच्चे भाजपाई के लिए असहनीय होगा .ऐसे में जब भाजपा के मूल ढांचे में ही परिवर्तन होने जा रहा है तो आडवानी जी को अप्रासंगिक ही कहा जायेगा .
                  और आडवानी जी के मन के भाव तो इसी शेर से अभिव्यक्त किये जा सकते है -
  ''जब जब तहजीबें नीली हो जाती हैं ,
    कुछ नस्लें जहरीली हो जाती हैं .''
        शालिनी कौशिक 
            [कौशल ]

टिप्पणियाँ

Aparna Bose ने कहा…
अडवाणी जी के स्तीफे से भाजपा की नींव हिल जाएगी ये तो तय है .......और नींव हिलने से मकान गिर जाता है यह तो सब जानते हैं ...सार्थक पोस्ट
Unknown ने कहा…
बी जे पी की आतंरिक राजनीती का तार्किक दस्तावेज़ और सात बचनों की बेड़िओं का सुदर अहसास कराती बेमिशाल प्रस्तुति
Satish Saxena ने कहा…
इतिहास अक्सर अपने को दुहराता है , हम सबक लें पायें या ना लें !
शुभकामनायें !!
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
पूरे देश में आग लगाने वाले,दंगों के माध्यम से जन-संहार करने वाले आडवाणी को उनके ही परम प्रिय चेले मोदी ने उनकी ही शिक्षा पर अमल करते हुये और बड़े व क्रूर जन-संहार करके उनको पहले ही पीछे धकेल दिया था जिसे अब उनकी पार्टी द्वारा वैधानिक मान्यता प्रदान की गई है। मोदी/आडवाणी दया के पात्र नहीं हैं। 'जैसी करनी,वैसी भरनी'इन लोगों की 'नियति'है।
P.N. Subramanian ने कहा…
सुन्दर आलेख. मान मनौवल का उपक्रम जारी है वैसे इसकी जरूरत नहीं थी.
जैसी करनी वैसे भरनी,,,मोदी लाख चाह ले दिल्ली अभी दूर है

recent post : मैनें अपने कल को देखा,
Rajendra kumar ने कहा…
जैसी करनी,वैसी भरनी'बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
Anita ने कहा…
समसामायिक पोस्ट !
Sadhana Vaid ने कहा…
सार्थक आलेख शालिनी जी ! दुष्चिन्ता यही है कि इस्तीफा देकर अपने कद और कीमत की चकाचौंध दिखा कर मोदी समर्थक भाजपाइयों को चमत्कृत करने का अडवानी जी का मंसूबा कहीं खुद के लिये ही भारी न पड़ जाये !
Neetu Singhal ने कहा…
और सियासत जब नशीली हो जाती है..,
निगाहें भी लाल-पीली हो जाती है.....
Neetu Singhal ने कहा…
और सियासत जब रंगीली हो जाती है..,
निगाहें भी लाल-पीली हो जाती है.....
Tamasha-E-Zindagi ने कहा…
सार्थक लेख
Tamasha-E-Zindagi ने कहा…
सार्थक लेख
केवल भाजपा ही नहीं संपूर्ण भारत और विश्व की राजनीति का दस्तुर यहीं है कि जो बोया वहीं पाओगे। आदमी के लिए चाहिए भी क्या सारी सुविधाएं किसी राजनेता को देश और पार्टी से मिल रही है तो निस्सिम सेवा जरूरी है पर पद, महत्त्वकांक्षाएं, कुर्सी, राजनिति के चलते इंसान अपना मजाक बना लेता है। हर इंसान को पता होना चाहिए कि रूके कहां। पता न हो तो अपमान तो सहना पडेगा ही।
Ramakant Singh ने कहा…
आज माना कि इक्तदार में हो ,हुक्मरानी के तुम खुमार में हो ,
ये भी मुमकिन है वक़्त ले करवट ,पाँव ऊपर हों सर तगार में हो .''
गहरी बात और स्पष्टवादिता के लिए बधाई
सहमत हूं आपकी बातों से
बढिया

मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
आपकी सभी बातों से सहमत हूं।
बढिया विवेचना


मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
Dayanand Arya ने कहा…
और बेचारी जनता- बिना किसी विकल्प के - बिना किसी संकल्प के ।

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