धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
आंसू न किसी के रोक सके धिक्कार तुम्हे है तब मानव |
आंसू न किसी के रोक सके धिक्कार तुम्हे है तब मानव |
खुशियाँ न किसी को दे सके धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
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ये जीवन परोपकार में तुम गर लगा सके तो धन्य है ,
गर स्वार्थ पूर्ति में लगे रहो धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
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जब बनते खुशियाँ लोगों की सच्ची खुशियाँ तब पाते हो ,
जब छीनो चैन किसी का भी धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
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न छीनो हक़ किसी का तुम जो जिसका है उसको दे दो ,
जब लूटपाट मचाते तुम धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
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जब समझे गैर को तुम अपना तब जग अपना हो जाता है,
करते जब अपने को पराया धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
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लायी "शालिनी"धर्मों से कुछ बाते तुम्हे बताने को,
न समझ सके गर अब भी तुम धिक्कार तुम्हे है तब मानव||
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शालिनी कौशिक
{कौशल }
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