कल्पना /यथार्थ
उड़ता है मन
कल्पनाओं के
रोज़ नए लोक में ,
पाता है नित नयी
ऊंचाइयां
तैरकर के सोचता
पाउँगा इच्छित सभी,
पूरी आकांक्षाएं
होंगी मेरी अभी ,
तभी लगे हैं ठोकरें
यथार्थ से जो पाँव में
टुकड़े टुकड़े हो ह्रदय
घिरता जाये शोक में .
.............
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
कल्पनाओं के
रोज़ नए लोक में ,
पाता है नित नयी
ऊंचाइयां
तैरकर के सोचता
पाउँगा इच्छित सभी,
पूरी आकांक्षाएं
होंगी मेरी अभी ,
तभी लगे हैं ठोकरें
यथार्थ से जो पाँव में
टुकड़े टुकड़े हो ह्रदय
घिरता जाये शोक में .
.............
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
सार्थक सोच की भावमय और प्रभावपूर्ण रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है----
और एक दिन
यथार्थ से जो पाँव में
टुकड़े टुकड़े हो ह्रदय
घिरता जाये शोक में..... बहुत ही सुन्दर भाव..