लाभ के पद पर बोले मोदी सरकार
''लाभ का पद '' हमेशा से एक विवाद का विषय रहा है .इस पदावली की संविधान में या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम १९५१ में कोई परिभाषा नहीं दी गयी है .न्यायिक निर्णयों से ही लाभ के पद के अर्थ को समझा जा सकता है .देवरस बनाम केशव ए.आई.आर.१९५८ बम्बई ३१७ में कहा गया है कि ''लाभ के पद से तात्पर्य ऐसे पद से है जिससे लाभ मिल सकता हो या जिससे व्यक्ति युक्तियुक्त रूप से लाभ प्राप्त करने की आशा कर सकता है .''
और इस सीमा में ये विशेष रूप से सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारी को ही लेकर आते हैं क्योंकि लाभ के पद में लाभ तत्व ही पर्याप्त नहीं मानते हैं वरन इसके लिए यह भी आवश्यक मानते हैं कि वह लाभ का पद भारत सरकार के या राज्य सरकार के अधीन हो .कोई लाभ का पद सरकार के अधीन है या नहीं इसके निर्धारण की निम्नलिखित कसौटियां हैं -
[१]-क्या सरकार को नियुक्ति का अधिकार है ?
[२]-क्या पद धारक को उसके पद से हटाने या पदमुक्त करने का सरकार को अधिकार है ?
[३]-क्या पद धारक को सरकार वेतन देती है ?
[४]-पद धारक के कार्य क्या हैं और क्या वह उन कार्यों को सरकार के लिए करता है ?
[५]-क्या सरकार उसके कार्यों के तरीके पर नियंत्रण रखती है ?
और यह समस्त कसौटियां हमारे कानून बनाने वाले के नजरिये से मात्र एक सरकारी सेवक ही पूर्ण करता है .उसकी नियुक्ति सरकार करती है ,सरकार को ही उसे पद से हटाने या पदमुक्त करने का अधिकार है ,वही उसे वेतन देती है ,वह सरकार के लिए ही कार्य करता है और सरकार उसके कार्यों पर नियंत्रण रखती है किन्तु अब्दुल सकूर बनाम रिसाल चन्द्र ए.आई.आर.१९५८ एस.सी.५२ में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि ''यह आवश्यक नहीं है कि उक्त सभी तत्व एक साथ मौजूद हों यह भी आवश्यक नहीं है कि वेतन धनराशि सदैव सरकारी खजाने से ही दी जाये .''
और इस बात को मद्देनज़र रखते हैं तो हमारे सांसद और विधायक भी इस श्रेणी में आ जाते हैं जिनको सरकार द्वारा अब विभिन्न भत्तों व् सुविधाओं के साथ मासिक वेतन भी दिया जाता है .
Salary of MLA
Salaries of MLA are decided by the states. There is wide variation in MLA salaries across state assemblies. Other than salary, MLAs also get similar facilities like MPs – daily allowance, constituency allowance, office expenses allowance, provisions for accommodation, travel etc. As is the case with salaries, these too vary across states.
lucknow: The Uttar Pradesh government has announced a raise in the
salary and perks of legislators, Assembly speaker, Council chairman and
ministers.
"The government has decided to hike the salary and perks of members in both the Houses to Rs. 50,000 per month from existing Rs. 30,000," Chief Minister Mayawati announced in the Legislative Assembly and Legislative Council on Monday.
Till now, an MLA or MLC was getting Rs. 3,000 as monthly salary, Rs. 15,000 constituency allowance, Rs.6,000 medical allowance and Rs. 6,000 as secretary allowance.
"Now the members will get monthly salary of Rs. 8,000, besides 22,000 as constituency allowance, Rs.10,000 medical allowance and Rs. 10,000 secretary allowance," she said. ]
"The government has decided to hike the salary and perks of members in both the Houses to Rs. 50,000 per month from existing Rs. 30,000," Chief Minister Mayawati announced in the Legislative Assembly and Legislative Council on Monday.
Till now, an MLA or MLC was getting Rs. 3,000 as monthly salary, Rs. 15,000 constituency allowance, Rs.6,000 medical allowance and Rs. 6,000 as secretary allowance.
"Now the members will get monthly salary of Rs. 8,000, besides 22,000 as constituency allowance, Rs.10,000 medical allowance and Rs. 10,000 secretary allowance," she said. ]
इस सबके बावजूद इन्हें यदि कहीं सांसद या विधायक रहते हुए चुनाव लड़ना हो तो लड़ने की इज़ाज़त है ,इन्हें चुनाव लड़ने से पहले अपनी मौजूदा सीट से इस्तीफा नहीं देना होता ,इन्हें यदि कोई सीट छोड़नी भी हो तो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम १९५१ के अनुसार चुनाव परिणाम घोषणा के १० या १४ दिन में छोड़नी होती है जबकि एक सरकारी सेवक को यदि कहीं चुनाव लड़ना हो तो उसे नामांकन पत्र भरने से पूर्व ही अपनी नौकरी छोड़नी होती है जबकि मात्र एक छोटी सी तनख्वाह के उसे अन्य ऐसा कुछ नहीं मिलता जो लाभ के पद जैसी ऐश्वर्यपूर्ण परिभाषा में सम्मिलित किया जा सके .
गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री पद के लिए सांसद का चुनाव लड़ा और दो-दो जगह से लड़ा और इस कानून का फायदा उठाते हुए उन्होंने अभी तक भी गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया .साफ है प्रधानमंत्री बनने तक वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहेंगें और उसके नाते वहां के विधायक व् मुख्यमंत्री होने के नाते प्राप्त सभी वेतन ,भत्तों व् सुविधाओं के हक़दार -क्या ये लाभ के पद में नहीं आता और नहीं आता तो क्यूँ नहीं आता ? एक सरकारी सेवक को तो ऐसा कुछ भी नहीं मिलता जो इन्हें मिलता है .
भाजपा के उत्तर प्रदेश में ४७ विधायकों में से १२ विधायक विधायक रहते हुए भी सांसद का चुनाव लड़े और जीत गए अब वे विधायक के वेतन भत्ते व् सुविधाएँ तब छोडेंगें जब सांसद के वेतन भत्ते व् सुविधाएँ लेने लगेंगें क्यूँ इस स्थिति को लाभ के पद में नहीं सम्मिलित नहीं किया जाता जबकि वे भी वेतन पाते हैं ? क्यूँ उनके कार्य को सरकार के लिए काम नहीं माना जाता जबकि जिस जनता के लिए वे काम करते हैं वह लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार -''जनता की ,जनता के लिए .जनता के द्वारा सरकार है .''वास्तविक सरकार है ?क्यूँ फिर सरकारी सेवक को ही नौकरी छोड़नी पड़ती है ?जबकि चुनाव जीतना या न जीतना भविष्य के गर्भ में होता है और ऐसा न हो पाने पर उसे नौकरी भी खोने का डर होने के कारणवह लोकतंत्र में पूर्ण स्वतंत्रता के साथ भागीदारी नहीं निभा पाता जबकि भारतीय संविधान उसे विभिन्न तरह की स्वतंत्रताएं देता है किन्तु जिस तरह से वह अपनी भागीदारी द्वारा लोकतंत्र में अपने दायित्व का सही रूप में निर्वहन कर सकता है उससे ही उसे इस तरह से रोक दिया गया है .उसे भी तो चुनावों में भागीदारी का अवसर दिया जा सकता है भले ही हमारे सांसदों की तरह निर्बाधित रूप से न दी जाये किन्तु चुनाव के समय अवैतनिक अवकाश पर रखकर उसे चुनाव बाद की स्थिति के लिए निश्चिन्त रखकर चुनाव में भागीदारी का अवसर दिया जा सकता है बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारे सांसदों व् विधायकों को वेतन ,आदि सुविधाएँ जारी रखते हुए सीट न छोड़ते हुए चुनाव लड़ने का मौका दिया जाता है .
आज तक की सरकारों ने आम जनता से अपने को ऊपर रखते हुए जिस संविधान को अपने हित में ढाला है आशा है पहली बार पूर्ण बहुमत पाने वाली भाजपा की मोदी सरकार ऐसा नहीं करेगी और लाभ के पद की नयी परिभाषा गढ़ते हुए आम जनता के लोकतंत्र के इस पर्व में भागीदारी का पथ प्रशस्त करेगी .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
जैसे : - गृह, वित्त, कोयला आदि मंत्रालयों में मोटा माल मिलता है.....