बेटी ऐसा जन्म न चाहे
हुआ है आज भी देखो
एक और क़त्ल
पर कहीं किसी चेहरे पर
विषाद की छाया नहीं !
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हर तरफ राहत
हो रही महसूस
जैसे किसी बहुत बड़ी
विपदा से मिली मुक्ति !
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कोई कह रहा
चलो सारे जीवन भर का बोझ हटा
कोई कह रहा
हज़ार झंझट दूर हो गए !
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देश का ,समाज का ,परिवार का
कितना हुआ भला
नहीं समझ पा रहे
बस पालन-पोषण,शिक्षा -दहेज़
के खर्च को बचाने में
खुद को सफल मान रहे !
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कन्या-भ्रूण हत्या का
स्वयं वह भ्रूण जो
जन्म न पा सका
मान रहा उपकार सभी का !
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अच्छा किया जो मुझे ख़त्म कर दिया
लड़की होने के अभिशाप से
मुझको बचा लिया .
मैं बची लड़की होने के ताने से ,
लड़कों के अभद्र गानों से ,
अपनी इच्छाएं दबाने से ,
दहेज़ में जलाने से ,
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और समाज बचा
औरत की रखवाली से ,
उसको मिलती गाली से ,
बलात्कार बीमारी से ,
लुटती पिटती नारी से !
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देश भी देगा तुम्हें दुआएं ,
जनसँख्या न अब बढ़ पाये ,
बेटी कल को माँ ही बनती ,
बेटी नहीं तो दूर बलायें ,
जनसँख्या जब थम जाएगी ,
तभी तरक्की मिल पायेगी .
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देश ,समाज ,परिवार तुम्हारा रहे कृतज्ञ सदा कातिलों ,
बेटी ऐसा जन्म न चाहे जिसमे जीवन ही न मिलो .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
लड़की होने के अभिशाप से
मुझको बचा लिया .
मैं बची लड़की होने के ताने से ,
लड़कों के अभद्र गानों से ,
अपनी इच्छाएं दबाने से ,
दहेज़ में जलाने से ,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत मार्मिक।