''छोड़ दे अब टिमटिमाना भोर का तारा है तू -नशे में फंसती युवा पीढ़ी
''मादक पदार्थों की गिरफ्त में
घिरे हुए हमने
भी देखा है
क़र्ज़ में डूबे हुए हिंदुस्तान का ,
बिक चुके आत्म-सम्मान का ,
फलते-फूलते भ्रष्टाचार का ,
चार कदम गुलामी की ओर .''
शाप और अभिशाप दोनों समानार्थक होते हुए भी अपने में बड़ा अंतर छिपाए हुए हैं .शाप वस्तु विशेष ,समय विशेष आदि के लिए होता है ,जबकि अभिशाप जीवन भर घुन की भांति लगा रहता है .सुख प्राप्ति के लिए चिंताग्रस्त आज का मानव चेतना और चिंतन से बहुत दूर है .भय ,कायरता ,विषाद ,ग्लानि और असफलताएँ उसके मन और मस्तिष्क पर छायी रहती है .खिन्नता और क्लांति को मिटाने के लिए वह दोपहरी में प्यासे मृग की भांति कभी सिनेमाघर की ओर मुड़ता है तो कभी अन्य मन बहलाव के साधनों की ओर ,पर वहां भी उसकी चेतना उसे शांति से नहीं बैठने देती .वह दुखी होकर उठ खड़ा होता है -''क्या संसार में ऐसा कुछ नहीं जो कि तेरी चेतना को कुछ देर के लिए अचेतना में परिवर्तित कर दे ''-''मन मस्तिष्क से प्रश्न पूछता है और बिना कहे बिना उत्तर मिले पैर मुड़ जाते हैं मदिरालय की ओर ,जहाँ न शोक है और न दुःख ,जहाँ सदैव दीवाली मनाई जाती है और बसंत राग अलापे जाते हैं कुछ यूँ-
''शीशे से शीशा टकराये ,जो भी हो अंजाम ,
ओ देखो कैसे छलक छलक छल....छलकता जाये रे ...
या फिर जहाँ विषपायी शंकर का प्रसाद भांग हो ,चरस हो ,गांजा हो ,अफीम हो ,वहां वह प्रवेश करता है .
इस प्रकार नशे के द्वारा उसकी मानसिक गति शिथिल हो जाती है और रक्त संचार पर मादकता का प्रभाव हो जाता है जिससे संसार की भीतियां उससे स्वयं भयभीत होने लगती हैं लेकिन यह क्रम जल अपनी सीमा का उल्लंघन कर रोजाना की आदत के रूप में समाज में गत्यावरोध उत्पन्न करता है तब वह समाज से तिरस्कृत होकर निंदा और आलोचना की वस्तु बन जाता है .
किसी नशीली वस्तु का सीमित और अल्प मात्रा में सेवन स्वास्थ्य और रोग के लिए लाभदायक होता है डाक्टर और वैध प्रायः दर्द बंद करने की जितनी औषधियां देते हैं उनमे भांग और सुरा का किसी न किसी रूप में सम्मिश्रण होता ही है .चिंतित और दुखी व्यक्ति को यदि इन पदार्थों का सहारा न हो ,तो न जाने कितने लोग नित्य आत्महत्या करने लगें क्योंकि दुःख में व्यक्ति कुछ आगा-पीछा नहीं सोचता और न असीमित दुःख उसमे सोचने की क्षमता छोड़ते हैं .
संसार में प्रत्येक वस्तु के लाभ व् हानियां होती हैं .आज मनुषय ने अपनी मूर्खता या स्वार्थवश इन मादक पदार्थों को अत्यधिक प्रयोग कर इन्हें सामजिक अभिशाप का स्वरुप प्रदान कर दिया है .प्रत्येक वस्तु जब अपनी 'अति'की अवस्था में आ जाती है तो वह अमृत के स्थान पर विष बन जाती है .नशे के चक्कर में बड़े-बड़े घरों को उजड़ते देखा है .नशे से दृव्य का अपव्यय होता है .घरवालों को समाज में अपमान का शिकार होना पड़ता है शराब आदि पीने वाले पर इस सब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता उसे अपना सब कुछ लूटकर भी नशा करना ही है .ऐसा करते हुए उसके मन में केवल एक भाव रहता है कि ---
''रूह को एक आह का हक़ है ,आँख को एक निगाह का हक़ है ,
मैं भी एक दिल लेकर आया हूँ ,मुझको भी एक गुनाह का हक़ है .''
और देखा जाये तो ये भाव उसमे केवल तभी तक रहते हैं जब तक उसके सिर पर नशा सवार रहता है ,नशा उतरने पर वे सामान्य दिखते हैं और दया के पात्र भी किन्तु क्या ऐसे लोग कभी भी किसी के आदर्श बनने योग्य होंगें ?आने वाली पीढ़ी इनसे क्या शिक्षा ग्रहण करेगी यह सभी जानते हैं .आज इन नशीले पदार्थों के कारण समाज के नैतिक स्तर का पतन हो रहा है ,युवा इसके ज्यादा प्रभाव में आ रहे हैं ,जीवन की समस्याओं से बचने का ,तनाव से दूर रहने का ये ही एकमात्र साधन नज़र आ रहा है परिणाम क्या है , दुर्घटनाएं रोज तेजी से हो रही हैं जिनमे एक बड़ा वहां ट्रक है जो नशे में धुत चालक द्वारा चलाया जाता है और जिसमे बैठकर चालक को अपने आगे सभी कीड़े-मकोड़े ही नज़र आते हैं जिन्हे वह नशे के आवेग में रौंदता चला जाता है ,बलात्कार जो कि सभ्य समाज के माथे पर सबसे बड़ा कलंक है अधिकतर शराब के नशे में ही हो रही हैं और देश ,समाज परिवार का भविष्य तो चौपट हो ही रहा है और नेस्तनाबूद हो रहा है हमारी युवा पीढ़ी का भविष्य और स्थिति ये है कि ऐसे में सही शिक्षा और शिक्षक सभी उन्हें गलत व् दुश्मन नज़र आते हैं और दोस्त नज़र आता है वह नशा जिसके खुमार में वह गाता है -
''दम मारो दम
मिट जाये गम
बोलो सुबह शाम
हरे कृष्णा हरे राम ''
दिल दहल जाता है अपनी युवा पीढ़ी को इस तरह विनाश की ओर बढ़ते देख और ऐसे में हमारा ही ये फ़र्ज़ बन जाता है कि हम अपने स्वाभिमान को बीच में न लाकर उन्हें भटकने से रोकें जो कि वास्तव में ये नहीं जानते कि वे जो कर रहे हैं ,उसमे केवल सत्यानाश ही है ,जहाँ जा रहे हैं वहां केवल विनाश ही विनाश है .आज इस बिगड़ती हुई स्थिति को सम्भालने के लिए आवश्यक है कि लोग इन मादक पदार्थों के सही व् गलत प्रयोग को जानने के लिए सचेत हों .आज अगर देश में इसी प्रकार इन गलत पदार्थों का प्रयोग चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बच्चे दूध की जगह कोकीन और गांजा चरस आदि मांगेंगे .
आज देश के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह स्वयं तो इस बुराई से दूर रहे ही अपने साथियों को भी इसका आदी बनने से रोके .बहुत सी बार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति गलती से इन आदतों का शिकार हो जाता है ऐसे में हम लोग उस व्यक्ति को उसके बुराई छोड़ने के निर्णय में भी साथ न देकर उस पर व्यंग्य बाण कसते हैं जबकि ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम उसे उस बुराई को छोड़ने में सहयोग प्रदान करें .प्यार और स्नेह वह मरहम है जो किसी भी हद तक घायल के ह्रदय के घाव भर सकता है ,वह प्रकाश है जो उनकी आँखों के आगे छाये नशे के अँधेरे को दूर कर उन्हें जीवन की रौशनी प्रदान कर सकता है ,प्यार व् स्नेह में वह ताकत है जो नशे की गिरफ्त में फंसी युवा पीढ़ी को वापस ला सकती है हम सभी के साथ ,यह वह भाव है ,वह गुरु है ,वह लाठी है जो प्यार से पुचकारकर ,समझाकर और धमकाकर उसे एक नयी दिशा दे सकती है ज़िंदगी की खुशियां प्राप्त करने की .आज लोगों को निम्नलिखित पंक्ति को मन में बिठाकर नशे में फंसती युवा पीढ़ी को अपने से जोड़कर उसका इस बुराई से नाता तोड़ने के लिए कृत संकल्प होना ही होगा और उन्हें यह समझाना ही होगा -
''छोड़ दे अब टिमटिमाना भोर का तारा है तू ,
रात के यौवन सरिस ढलती रहेगी ज़िंदगी ,
इस भरम को छोड़ दे मत समझ इसको अचल ,
हिमशिला सम ताप में गलती रहेगी ज़िंदगी .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
सादर --
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-06-2014) को ""मृगतृष्णा" (चर्चा मंच-1637) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-06-2014) को ""मृगतृष्णा" (चर्चा मंच-1637) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आजकल युवा लोगों की इस और आसक्ति देख दुःख होता है
सब अपने अपने स्तर से समझे समझाएं तो सब कुछ ठीक होने में देर नहीं लगती