झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,[पितृ दिवस पर विशेष]
झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .
...................................................................................
बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .
...............................................................................
शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे ,
मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं .
.........................................................................
मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें ,
सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं .
...................................................................................
कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर,
सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं .
..............................................................................
जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं .
....................................
शालिनी कौशिक
[कौशल]
टिप्पणियाँ