गजेन्द्र की मौत के लिए पुलिस ,मीडिया ,मोदी सरकार और हम सब जिम्मेदार
नेता और उनकी कार्यप्रणाली हमेशा से विवादास्पद रहे हैं और यही हो रहा है इस वक़्त आप की रैली के दौरान दौसा के किसान गजेन्द्र के द्वारा फांसी लगाने पर ,लेकिन क्या हम अक्ल के अंधे नहीं कहे जायेंगे अगर हम वास्तविक स्थितियों को नज़रअंदाज़ कर बेवजह का दोषारोपण आरम्भ कर देते हैं .दिल्ली में आप की किसान रैली के दौरान जितनी संख्या में नेता थे उससे कहीं अधिक संख्या में मीडिया कर्मी और पुलिस वाले थे और गजेन्द्र वहां जो कुछ भी कर रहा था उससे परिचित मीडिया वाले भी थे और पुलिस वाले भी इसका जीता जगता उदाहरण समाचारपत्रों में प्रकाशित ये समाचार और चित्र हैं -
मरने दो साले को! गजेंद्र को पेड़ पर झूलते देख एक पुलिस अधिकारी के मुंह से ये शब्द निकले थे।[ [अमर उजाला से साभार]
[दैनिक जनवाणी से साभार]
समाचार और चित्र वहां के परिदृश्य व सही घटनाक्रम को हम लोगों के दिमाग में सही रूप में प्रस्तुत करने के लिए काफी हैं और ये स्पष्ट कर रहे हैं कि कहीं से भी इस घटनाक्रम के जिम्मेदार आप पार्टी के कार्यकर्ता व नेता नहीं हैं.दैनिक जनवाणी अपनी रिपोर्ट में कहता है -''आप के नेताओं व् कार्यकर्ताओं ने उसे नीचे उतरने की बार बार अपील की .पुलिस इस पूरी घटना को देख रही थी तो आप के कार्यकर्ता उसे बचाने को पेड़ पर चढ़ गए .''
और अमर उजाला कहता है - जंतर मंतर पर आयोजित आम आदमी पार्टी की रैली में लगभग 12.30 बजे के आसपास दौसा का किसान गजेंद्र सिंह पेड़ पर चढ़ा था। उसके हाथों में झाड़ू था और वह मोदी सरकार के विरोध में नारे लगा रहा था।
फर्स्टपोस्ट के मुताबिक, लोगों को लगा कि वह मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहा है। उसने थोड़ी देर बाद सफेद गमछे से अपनी गर्दन में फंदा लगा लिया। अपनी दोनों बाहों से पेड़ की डालियों को पकड़ रखा था। पैरों से उसने एक दूसरी डाली से सहारा ले रखा था।
वह जब तक उस डाली के सहारे रहा, ठीक रहा। हालांकि नीचे खड़ी भीड़ लगातर शोर कर रही थी। मीडियाकर्मियों ने वहां खड़े पुलिसकर्मियों से कहा के वे गजेंद्र को नीचे उतारे। पुलिसकर्मी मूकदर्शक की तरह खड़े रहे। उन्हें पुलिसकर्मियों में से एक ने कहा, 'मरने दो साले को।'
अब सही हाल जानकर भी अगर हम केजरीवाल या आप के कार्यकर्ताओं या उनकी रैली को दोषी ठहराते हैं तो यह हमारी अक्ल की कमी या फिर एक तरफ़ नेताओं की बुराई के लिए स्थिर दिमागी परिस्थिति ही कही जाएगी .पुलिस ने मुख्यमंत्री केजरीवाल की अपील नहीं सुनी क्योंकि वह उनके नियंत्रण में ही नहीं और मीडिया ने केवल पुलिस से अपील की या फिर उसके फांसी वाले दृश्यों के चित्र उतारे क्या वे आगे बढ़कर उसे नहीं रोक सकते थे ? अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना और क्या है ? क्या हर जिम्मेदारी नेताओं की है हमारी या आपकी कुछ नहीं जिनकी आँखों के सामने कुछ भी घट जाये और हम हाथ से हाथ बांधकर खड़े हो जाएँ .
और रही बात नेताओं पर दोषारोपण की तो पहले ये जिम्मेदारी राजस्थान की सपा पार्टी पर आती है जिसका टिकट गजेन्द्र ने माँगा था और टिकट न मिलने के कारण उसपर निराशा छायी थी और दूसरी जिम्मेदारी हमारी मोदी सरकार पर जाती है जिसके विरोध में गजेन्द्र मरने से पहले नारे लगा रहा था ऐसे में अपने दिमाग के द्वार खोलते हुए हमें सही बात ही कहनी चाहिए और सही बात यही है कि आप या केजरीवाल गजेन्द्र की मौत के उत्तरदायी नहीं और गजेन्द्र की मौत होने के बावजूद रैली को जारी रखना उनकी दिलेरी और सिस्टम के प्रति गजेन्द्र की नाखुशी का साथ ही देना है जिसके कारण गजेन्द्र को मौत का मुंह चुनना पड़ गया उसे घर लौटने का रास्ता नहीं मिला .गृह मंत्री राजनाथ सिंह का आप को ये कहना कि -''जब गजेन्द्र पेड़ पर चढ़े थे तो लोग तालियां बजा उन्हें उकसा रहे थे .नेता भाषण दे रहे थे .'' उनकी पूर्व में की गयी संवेदनहीनता को नहीं छिपा सकती जब उनके विमान का पायलट मौत का शिकार हो गया था और वे उसकी मौत का गम न मना अपनी सभा में भाषण देने चले गए थे जबकि यहाँ जब कि बात वे बता रहे हैं तब किसान गजेन्द्र केवल पेड़ पर चढ़ा था वह मरने की सोच रहा है यह किसी को गुमान नहीं था .इसलिए किसान गजेन्द्र की मौत पर व्यर्थ का दोषारोपण छोड़ते हुए हमें आगे ऐसे उपाय सोचने चाहिए जिसके कारण हमारे किसान मौत की ओर अग्रसर न होते हुए अपने कार्य में ही इस विश्वास से जुटें कि ये देश हमारा है और हर परिस्थिति में हमारे साथ है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
मरने दो साले को! गजेंद्र को पेड़ पर झूलते देख एक पुलिस अधिकारी के मुंह से ये शब्द निकले थे।[ [अमर उजाला से साभार]
[दैनिक जनवाणी से साभार]
समाचार और चित्र वहां के परिदृश्य व सही घटनाक्रम को हम लोगों के दिमाग में सही रूप में प्रस्तुत करने के लिए काफी हैं और ये स्पष्ट कर रहे हैं कि कहीं से भी इस घटनाक्रम के जिम्मेदार आप पार्टी के कार्यकर्ता व नेता नहीं हैं.दैनिक जनवाणी अपनी रिपोर्ट में कहता है -''आप के नेताओं व् कार्यकर्ताओं ने उसे नीचे उतरने की बार बार अपील की .पुलिस इस पूरी घटना को देख रही थी तो आप के कार्यकर्ता उसे बचाने को पेड़ पर चढ़ गए .''
और अमर उजाला कहता है - जंतर मंतर पर आयोजित आम आदमी पार्टी की रैली में लगभग 12.30 बजे के आसपास दौसा का किसान गजेंद्र सिंह पेड़ पर चढ़ा था। उसके हाथों में झाड़ू था और वह मोदी सरकार के विरोध में नारे लगा रहा था।
फर्स्टपोस्ट के मुताबिक, लोगों को लगा कि वह मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहा है। उसने थोड़ी देर बाद सफेद गमछे से अपनी गर्दन में फंदा लगा लिया। अपनी दोनों बाहों से पेड़ की डालियों को पकड़ रखा था। पैरों से उसने एक दूसरी डाली से सहारा ले रखा था।
वह जब तक उस डाली के सहारे रहा, ठीक रहा। हालांकि नीचे खड़ी भीड़ लगातर शोर कर रही थी। मीडियाकर्मियों ने वहां खड़े पुलिसकर्मियों से कहा के वे गजेंद्र को नीचे उतारे। पुलिसकर्मी मूकदर्शक की तरह खड़े रहे। उन्हें पुलिसकर्मियों में से एक ने कहा, 'मरने दो साले को।'
अब सही हाल जानकर भी अगर हम केजरीवाल या आप के कार्यकर्ताओं या उनकी रैली को दोषी ठहराते हैं तो यह हमारी अक्ल की कमी या फिर एक तरफ़ नेताओं की बुराई के लिए स्थिर दिमागी परिस्थिति ही कही जाएगी .पुलिस ने मुख्यमंत्री केजरीवाल की अपील नहीं सुनी क्योंकि वह उनके नियंत्रण में ही नहीं और मीडिया ने केवल पुलिस से अपील की या फिर उसके फांसी वाले दृश्यों के चित्र उतारे क्या वे आगे बढ़कर उसे नहीं रोक सकते थे ? अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना और क्या है ? क्या हर जिम्मेदारी नेताओं की है हमारी या आपकी कुछ नहीं जिनकी आँखों के सामने कुछ भी घट जाये और हम हाथ से हाथ बांधकर खड़े हो जाएँ .
और रही बात नेताओं पर दोषारोपण की तो पहले ये जिम्मेदारी राजस्थान की सपा पार्टी पर आती है जिसका टिकट गजेन्द्र ने माँगा था और टिकट न मिलने के कारण उसपर निराशा छायी थी और दूसरी जिम्मेदारी हमारी मोदी सरकार पर जाती है जिसके विरोध में गजेन्द्र मरने से पहले नारे लगा रहा था ऐसे में अपने दिमाग के द्वार खोलते हुए हमें सही बात ही कहनी चाहिए और सही बात यही है कि आप या केजरीवाल गजेन्द्र की मौत के उत्तरदायी नहीं और गजेन्द्र की मौत होने के बावजूद रैली को जारी रखना उनकी दिलेरी और सिस्टम के प्रति गजेन्द्र की नाखुशी का साथ ही देना है जिसके कारण गजेन्द्र को मौत का मुंह चुनना पड़ गया उसे घर लौटने का रास्ता नहीं मिला .गृह मंत्री राजनाथ सिंह का आप को ये कहना कि -''जब गजेन्द्र पेड़ पर चढ़े थे तो लोग तालियां बजा उन्हें उकसा रहे थे .नेता भाषण दे रहे थे .'' उनकी पूर्व में की गयी संवेदनहीनता को नहीं छिपा सकती जब उनके विमान का पायलट मौत का शिकार हो गया था और वे उसकी मौत का गम न मना अपनी सभा में भाषण देने चले गए थे जबकि यहाँ जब कि बात वे बता रहे हैं तब किसान गजेन्द्र केवल पेड़ पर चढ़ा था वह मरने की सोच रहा है यह किसी को गुमान नहीं था .इसलिए किसान गजेन्द्र की मौत पर व्यर्थ का दोषारोपण छोड़ते हुए हमें आगे ऐसे उपाय सोचने चाहिए जिसके कारण हमारे किसान मौत की ओर अग्रसर न होते हुए अपने कार्य में ही इस विश्वास से जुटें कि ये देश हमारा है और हर परिस्थिति में हमारे साथ है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
कोई घटना घटी नहीं की अपनी मन मर्जी से एकतरफा निर्णय लेकर किसी एक को दोषी ठहरा देते हैं
और बस उस पर तोहमत लगाना शुरू। एक सटीक निष्कर्ष परोसता लेख। बहुत ही प्रभावशील है आपकी लेखन शैली। शुभकामनाएँ।
आप जैसी गुणवान अधिवक्ता को मेरा ब्लॉग पसंद आया ये मेरा सौभाग्य है। आभार। आगे भी मार्गदर्शन कीजियेगा। आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। धन्यवाद