दहेज़ के दानवों को सबक
मंडप भी सजा ,शहनाई बजी ,
आई वहां बारात भी ,
मेहँदी भी रची ,ढोलक भी बजी ,
फिर भी लुट गए अरमान सभी .
समधी बात मेरी सुन लो ,अपने कानों को खोल के ,
होगी जयमाल ,होंगे फेरे ,जब दोगे तिजोरी खोल के .
आंसू भी बहे ,पैर भी पकड़े ,
पर दिल पत्थर था समधी का ,
पगड़ी भी रख दी पैरों में ,
पर दिल न पिघला समधी का .
सुन लो समधी ये भावुकता ,विचलित न मुझे कर पायेगी ,
बेटे पर खर्च जो मैंने किया ,ये मुझको न दे पायेगी .
देख पिता की हालत को ,
बेटी का घूंघट उतर गया .
सम्मान जिन्हें कल देना था ,
उनसे ही माथा ठन गया .
सुन लो बाबूजी बात मेरी ,अब खुद की खैर मना लो तुम ,
पकड़ेगी पुलिस तुम्हें आकर ,खुद को खूब बचा लो तुम .
सुनते ही नाम पुलिस का वे ,
कुछ घबराये ,कुछ सकुचाये ,
फिर माफ़ी मांग के जोड़े हाथ ,
बोले रस्मे पूरी की जाएँ .
पर बेटी दिल की पक्की थी ,बाबूजी से अड़कर बोली ,
अब शादी न ये होगी कभी ,बोलो चाहे मीठी बोली .
ए लड़की !बोलो मुँह संभाल ,
तू लड़की है ,कमज़ोर है ,
हम कर रहे बर्ताव शरीफ ,
समझी तू शायद और है .
बेटी से ऐसी भाषा पर ,बाप का क्रोध भी उबल पड़ा ,
समधी को पकड़ के खुद ही पुलिस में देने चल पड़ा .
आ गयी पुलिस , ले गयी पकड़ ,
लालच के ऐसे मारों को ,
देखा जिसने की तारीफें ,
अच्छा मारा इन यारों को .
लड़के वाला होने का घमंड ,जब हद से आगे जायेगा ,
बेटे का बाप बारातों संग ,तब जेले ही भर पायेगा .
बेटी ने लाकर पगड़ी को ,
पिता के शीश पर रख दिया .
पोंछे आंसू माँगा वादा ,
दुर्बल न होगा कभी जिया .
बदलेंगे सोच अगर अपनी ,कानून अगर हम मानेंगे ,
तब बेटी को अपने ऊपर न बोझ कभी हम मानेंगे .
सबक दहेज़ के दानवों को ,गर यूँ बढ़कर सिखलाएंगे ,
सच्चे अर्थों में हम जीवन बेटी को तब दे पाएंगे .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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