नारी स्वयं मर्द से गर्दन कटवाने को तैयार

उम्रकैद की सजा काट रहा हत्यारा मनु शर्मा

जेसिका के हत्यारे मनु शर्मा ने रचाई शादी [अमर उजाला से साभार ]

  जेसिका लाल मर्डर केस में उम्रकैद की सजा काट रहा हत्यारा मनु शर्मा (सिद्धार्थ वशिष्ठ) ने मुंबई की लड़की से शादी रचा ली। ये समाचार आज चर्चा का विषय है और कल को एक आम बात हो जायेगा .जब मैं इस विषय पर लिखने चली तो मेरे इस कदम पर खुद मैं ही अपने पक्ष में नहीं थी कि आखिर क्या एक हत्यारे को शादी का अधिकार नहीं है ? जब भारत का उच्चतम न्यायालय किसी के क़त्ल में सजा काट रहे अपराधी को यह हक़ देता है तब मैं इसका विरोध करने वाली भला कौन होती हूँ ? किन्तु मेरे दिमाग में तब मात्र मनु शर्मा नहीं था वरन ऐसे सब पुरुष थे जो कभी प्रेम में तो कभी दहेज़ के लिए पागल होकर अपनी प्रेमिका या पत्नी की हत्या कर देते हैं और इस सबके बावजूद उनके लिए रिश्तों की कोई कमी नहीं होती बल्कि उनके लिए लड़कियों की लाइन ही लगी रहती है और ऐसा तब है जब इस देश में लड़कियों का प्रतिशत लड़कों की तुलना में बहुत कम है .
     हत्या बहुत खौफनाक वारदात होती है और इसीलिए इसकी सजा फांसी या आजीवन कारावास हमारे देश के कानून ने दी है और इससे भी खौफनाक सजा एक हत्यारे को हमारे देश का समाज देता है ,वह उसका अपनी बिरादरी से निकाला घोषित करता है, उसका हुक्का-पानी बंद कर देता है और न केवल उसका बल्कि उसके पूरे परिावर का किन्तु जैसे कि भेद-भाव हमारे समस्त समाजों की रग-रग में भरा है  वह यहाँ भी खुलेआम दृष्टिगोचर होता है क्योंकि ऐसा व्यवहार मात्र उसी हत्यारे के व् उसके परिवार के साथ किया जाता है जो गरीब होता है अगर हत्यारा पैसे वाला है तो वह सौ खून भी कर ले सब माफ़ कर दिए जाते हैं और उसे अपने घर -परिवार में सम्मिलित करने में सभी गौरवान्वित महसूस करते हैं .
 ऐसे ही एक अंतर यहाँ और भी है नारी-पुरुष का एक पुरुष चाहे दहेज़ के लिए हत्या करे या प्रेम के लिए उसके लिए लड़कियों की रिश्तों की कमी नहीं और एक नारी अगर किसी पुरुष की हत्या कर दे तो वह कुलटा या चुड़ैल करार दी जाती है उसके द्वारा किये गए अपराध में कोई परिस्थिति नहीं देखता मात्र उसके स्वभाव के विपरीत कार्य देखते हैं जिसमे केवल घुट-घुटकर मरना लिखा है किसी को घोटकर मारना नहीं  और मनु शर्मा द्वारा जैसिका लाल की हत्या की सजा काटते हुए शादी किये जाने के बारे में बस यही कहा जायेगा कि ये अंतर यूँ ही चलता जायेगा और मर्द चाहे कितने ही खून कर ले उसके लिए नारियों का काफिला गर्दन कटवाने को पक्तिबद्ध होकर खड़ा नज़र आएगा .
शालिनी कौशिक 
  [कौशल ]   

टिप्पणियाँ

dj ने कहा…
पूर्णतः सहमत हूँ आपसे। नारी पुरुष में भिन्नता हर मामले में की जाती है और पुरुषों को न जाने किस कारण से हर गलत कार्य के बावजूद भी समाज का हर तबका अपनाने को तैयार। जबकि नारी के लिए तो बस किसी के विरुद्ध सोच रखने मात्र से गुनहगार करार दे दिया जाता है। ये मानसिकता जाने कब बदलेगी। और रही बात बिरादरी से निकला घोषित करने की तो यहाँ घूसखोरी ने पैर पसार रखे हैं इधर हत्यारा समाज से बहिष्कृत हुआ नहीं और उधर समाज में चन्द रुपये भरकर फिर से समाज का इज्जतदार नागरिक हो जाता है।
बहुत ही ज्वलंत आलेख।

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