मोदी व् मीडिया -उत्तराखंड त्रासदी से भी बड़ी आपदा
पिलाकर गिराना नहीं कोई मुश्किल ,
गिरे को उठाये वो कोई नहीं है .
ज़माने ने हमको दिए जख्म इतने ,
जो मरहम लगाये वो कोई नहीं है .
हरबंस सिंह ''निर्मल'' जी के यही शब्द आज दोहराने को मन करता है .उत्तराखंड में इतनी बड़ी त्रासदी कि स्वयं मीडिया को आरम्भ में कोई सही अनुमान नहीं था कि कितने लोग फंसे हैं या हमारे बीच में अब नहीं रहे हैं दैनिक जागरण के मुख्य पृष्ठ पर २२ जून को समाचार का शीर्षक था कि ''संकट में ६० हज़ार जिंदगियां ''और देखिये किस कदर हावी है राजनीति हमारे मीडिया पर कि ऐसे में भी उसी पृष्ठ पर समाचार देता है ''कौंग्रेस को न बहा ले जाये उत्तराखंड सैलाब ''क्यों नहीं लिखता कि ''जागिये भारतवासियों कहीं वहां के लोगों पर गुजरती आपदा न बहा ले जाये हमारे देश में बसा सद्भाव ''
एक तरफ जिदंगी मौत से जूझ रही थी और दूसरी तरफ दुकानदार उन्हें १० रूपए का बिस्कुट का पैकिट १०० में बेच रहे थे ,पायलट विमान में बैठने के पैसे मांग रहा था ५०००० /-और यही नहीं नेपाली लूट रहे थे जिन्दा महिलाओं के जेवर हाथ काट कर .
और हमारा मीडिया देख रहा था कि किस तरह इस आपदा का ठीकरा कौंग्रेस के माथे फोड़ा जाये नहीं देख रहा था कि ये समय मदद का है और वे मोदी जो आज देश में जबरदस्ती प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार घोषित किये जा रहे हैं और देश के सबसे समृद्ध राज्य के स्वामी बने हुए हैं ऐसे में देते हैं कुल २ करोड़ रूपए की मदद और देखते हैं जाकर आपदा में फंसे केवल गुजराती लोगों को और उस पर तुर्रा ये कि वे वहां से अपने गुजराती भाइयों को बचा ले गए और वह भी एक दो नहीं १५,००० को कमाल है अगर वे इतने लोगों को बचा सकते थे तो उन्होंने क्यों सरकार से यह पेशकश नहीं की कि मैं सभी को बचा लूंगा और मेरे आगे सेना क्या है जो कि रोज कुछ ही लोगों को बचा पा रही है कमाल है उन्हें वहां भी बस गुजराती ही दिखाए दिए क्या चुनाव पश्चात् वहीँ के नागरिकों को जीने देंगे या कहीं और भी जीवन का संचार करने का इरादा है यदि अभी खोल दें अपने इरादे तो आपके इधर के जो दो चार समर्थक हैं अपना रास्ता अभी नाप लेंगे .
कॉंग्रेस को केदारनाथ दुर्घटना मे फसे लोगो से भी ज्यादा दान की रक्कम की पड़ी है ये कौनसी राजनीति है ? .... मोदी ने तो नहीं खेली ऐसी राजनीति ...मोदी जी तो 15000 गुजराती लोगो को बचाकर चले भी गए ''
'
अब देखिये ये हैं सच्चाई ब्लॉग पर लिखने वाले तुलसी जी जिनका ब्लॉग लेखन मात्र गाँधी परिवार की बुराई लिखने में ही देश का कल्याण देखता है और ये भी मोदी की ही जय-जयकार करते हुए नहीं सोचते कि आज जो सर्वाधिक धन्यवाद् के पात्र हैं उनका आभार व्यक्त न करके वे मोदी को उनसे ऊपर दर्जा दे रहे हैं जो केवल गुजरात गुजरात ही रटते रहते हैं ''साथ ही दान की रकम की सार्थकता आज यही है कि जो इस काम को करने में सक्षम हैं उनके कामों में कोई आर्थिक बाधा उनके बढ़ते क़दमों को न रोक दे और क्या मोदी का इसमें २ करोड़ से ज्यादा योगदान की हैसियत नहीं थी हो सकता है क्योंकि उन्हें अपने प्रचार के लिए शायद हमारे उन आपदा पीड़ितों से ज्यादा धन की आवश्यकता है फिर उन्हें वोट चाहियें जो आजकल बहुत कम ही लोकप्रियता के बल पर मिलते हैं और फिर किसी की ऐसी लोकप्रियता हो भी कि उसे नोट न खरचने पडें फिर हमारे फौजी आज जिस पुनीत काम में लगें हैं उस वे अपना फ़र्ज़ मानते हैं न कि वोट बटोरने की राजनीति बस दुःख केवल ये है कि हमारे मीडिया व् मोदी जी उनके काम नकारकर अपने को भगवान् का दर्जा दिलवाने में लगे हैं
एक तरफ ५०० लोग जंगल में फंसे हैं ,एक तरफ ४८ घंटे में बचानी हैं ५०००० हज़ार जिंदगियां और मोदी भाग गए केवल अपने गुजरातियों को बचाकर ,पता नहीं कब वे देश के बारे में और देशवासियों के बारे में सोचेंगे जो कहते हैं कि देश माँ है फिर क्या हम सभी उनके उसी माँ की औलाद नहीं क्या उनके भाई बहन नहीं फिर वे हर जगह गुजरातियों की ही क्यों तरफदारी करते हैं और उनके अनुसार वे १५००० को बचा कर ले गए जबकि हमरे फौजी जिन्हें देवदूत का दर्जा दिया जा रहा है वे कभी १६ लोगों को बचाते हैं कभी ५८१ को कभी १९४ को और यही नहीं इसके लिए वायु सेना अपने इतिहास का सबसे बड़ा ऑपरेशन करती है जबकि मोदी ऐसे ही सब कर लेते हैं तो क्यूं सेना का समय यहाँ बर्बाद किया जा रहा है सेना पर देश की और भी जिम्मेदारियां हैं .मेरा भारत सरकार से अनुरोध है कि वे सेना को तुरंत वहां से हटाकर बगैर हिचक के मोदी की सहायता लें मोदी देशभक्त हैं और देश पर अपने परिवार प्रेम को भी कुरबान कर चुके हैं ऐसे में वे भगवान का दर्जा रखते हैं और जब भगवान धरती पर हों तब उनके दूतों की कोई आवश्यकता नहीं .
उत्तराखंड में राहत और बचाव कार्य के लिए सेना की मध्य कमान ऑपरेशन 'सूर्या होप' चला रही है। शनिवार को लखनऊ में कमांडिंग इन चीफ अनिल चैत ने ऑपरेशन की जानकारी दी।
आज मोदी और मीडिया ने ये साबित कर दिया है कि हमारे दिलों से आपसी प्यार सद्भावना ख़त्म हो चुकी है केवल स्वार्थ हावी हो चुका है जो ऐसे में हमें आम आदमी की पीड़ा को नहीं देखने देती देखने देती है तो मात्र सत्ता हित ,राजनीति देखती है तो मात्र ये कि राहुल गाँधी घोड़े पर गायब क्यूं क्या देश से वोट मांगने वाले इस व्यक्ति का दायित्व नहीं कि वह पहले वहां से सभी अपनों की सकुशल वापसी के लिए जो कर सकते हैं करें उनका अपने चुनावी अभियान का आरंभ करना किसी को नहीं दिखता, दिखता है तो केवल राहुल गाँधी का आपदा के समय बाहर होना,क्या इस आपदा को भी उनके माथे मढ़ा जायेगा क्या दैव को भी उनके हाथ में उसी तरह कहा जायेगा जैसे सभी हत्याओं में इंदिरा ,सोनिया का नाम जोड़ दिया जाता है .
आज यदि मोदी जी को देश से जरा मात्र भी प्रेम है तो उन्हें चक दे इंडिया के नायक कबीर खान से प्रेरणा लेनी होगी जो टीम को एक करने के लिए उन्हें राज्य से अलग देश से जुड़ने को प्रेरित करता है .
नहीं तो उनके बारे में और हमारे मीडिया के बारे में हमें यही कहना होगा कि वे तो इस त्रासदी से भी बड़ी आपदा है और जिनसे निबटने के लिए सेना भी नाकाफी है . सत्यपाल ''अश्क ''जी के शब्दों में आज उनके लिए यही कहना होगा -
''मांग कर वो घर से मेरे और क्या ले जायेगा ,
होगा जो उसके मुकद्दर का लिखा ले जायेगा ,
रास्ते ने मंजिलों तक और भी भटका दिया
सोचते थे मंजिलों तक रास्ता ले जायेगा .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
गिरे को उठाये वो कोई नहीं है .
ज़माने ने हमको दिए जख्म इतने ,
जो मरहम लगाये वो कोई नहीं है .
हरबंस सिंह ''निर्मल'' जी के यही शब्द आज दोहराने को मन करता है .उत्तराखंड में इतनी बड़ी त्रासदी कि स्वयं मीडिया को आरम्भ में कोई सही अनुमान नहीं था कि कितने लोग फंसे हैं या हमारे बीच में अब नहीं रहे हैं दैनिक जागरण के मुख्य पृष्ठ पर २२ जून को समाचार का शीर्षक था कि ''संकट में ६० हज़ार जिंदगियां ''और देखिये किस कदर हावी है राजनीति हमारे मीडिया पर कि ऐसे में भी उसी पृष्ठ पर समाचार देता है ''कौंग्रेस को न बहा ले जाये उत्तराखंड सैलाब ''क्यों नहीं लिखता कि ''जागिये भारतवासियों कहीं वहां के लोगों पर गुजरती आपदा न बहा ले जाये हमारे देश में बसा सद्भाव ''
एक तरफ जिदंगी मौत से जूझ रही थी और दूसरी तरफ दुकानदार उन्हें १० रूपए का बिस्कुट का पैकिट १०० में बेच रहे थे ,पायलट विमान में बैठने के पैसे मांग रहा था ५०००० /-और यही नहीं नेपाली लूट रहे थे जिन्दा महिलाओं के जेवर हाथ काट कर .
और हमारा मीडिया देख रहा था कि किस तरह इस आपदा का ठीकरा कौंग्रेस के माथे फोड़ा जाये नहीं देख रहा था कि ये समय मदद का है और वे मोदी जो आज देश में जबरदस्ती प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार घोषित किये जा रहे हैं और देश के सबसे समृद्ध राज्य के स्वामी बने हुए हैं ऐसे में देते हैं कुल २ करोड़ रूपए की मदद और देखते हैं जाकर आपदा में फंसे केवल गुजराती लोगों को और उस पर तुर्रा ये कि वे वहां से अपने गुजराती भाइयों को बचा ले गए और वह भी एक दो नहीं १५,००० को कमाल है अगर वे इतने लोगों को बचा सकते थे तो उन्होंने क्यों सरकार से यह पेशकश नहीं की कि मैं सभी को बचा लूंगा और मेरे आगे सेना क्या है जो कि रोज कुछ ही लोगों को बचा पा रही है कमाल है उन्हें वहां भी बस गुजराती ही दिखाए दिए क्या चुनाव पश्चात् वहीँ के नागरिकों को जीने देंगे या कहीं और भी जीवन का संचार करने का इरादा है यदि अभी खोल दें अपने इरादे तो आपके इधर के जो दो चार समर्थक हैं अपना रास्ता अभी नाप लेंगे .
SACCHAI
'
अब देखिये ये हैं सच्चाई ब्लॉग पर लिखने वाले तुलसी जी जिनका ब्लॉग लेखन मात्र गाँधी परिवार की बुराई लिखने में ही देश का कल्याण देखता है और ये भी मोदी की ही जय-जयकार करते हुए नहीं सोचते कि आज जो सर्वाधिक धन्यवाद् के पात्र हैं उनका आभार व्यक्त न करके वे मोदी को उनसे ऊपर दर्जा दे रहे हैं जो केवल गुजरात गुजरात ही रटते रहते हैं ''साथ ही दान की रकम की सार्थकता आज यही है कि जो इस काम को करने में सक्षम हैं उनके कामों में कोई आर्थिक बाधा उनके बढ़ते क़दमों को न रोक दे और क्या मोदी का इसमें २ करोड़ से ज्यादा योगदान की हैसियत नहीं थी हो सकता है क्योंकि उन्हें अपने प्रचार के लिए शायद हमारे उन आपदा पीड़ितों से ज्यादा धन की आवश्यकता है फिर उन्हें वोट चाहियें जो आजकल बहुत कम ही लोकप्रियता के बल पर मिलते हैं और फिर किसी की ऐसी लोकप्रियता हो भी कि उसे नोट न खरचने पडें फिर हमारे फौजी आज जिस पुनीत काम में लगें हैं उस वे अपना फ़र्ज़ मानते हैं न कि वोट बटोरने की राजनीति बस दुःख केवल ये है कि हमारे मीडिया व् मोदी जी उनके काम नकारकर अपने को भगवान् का दर्जा दिलवाने में लगे हैं
जंगलों में फंसे 500 लोग अब भी कर रहे मदद का इंतजार
उत्तराखंड में 48 घंटे में बचानी है 50 हजार जिंदगियां!
एक तरफ ५०० लोग जंगल में फंसे हैं ,एक तरफ ४८ घंटे में बचानी हैं ५०००० हज़ार जिंदगियां और मोदी भाग गए केवल अपने गुजरातियों को बचाकर ,पता नहीं कब वे देश के बारे में और देशवासियों के बारे में सोचेंगे जो कहते हैं कि देश माँ है फिर क्या हम सभी उनके उसी माँ की औलाद नहीं क्या उनके भाई बहन नहीं फिर वे हर जगह गुजरातियों की ही क्यों तरफदारी करते हैं और उनके अनुसार वे १५००० को बचा कर ले गए जबकि हमरे फौजी जिन्हें देवदूत का दर्जा दिया जा रहा है वे कभी १६ लोगों को बचाते हैं कभी ५८१ को कभी १९४ को और यही नहीं इसके लिए वायु सेना अपने इतिहास का सबसे बड़ा ऑपरेशन करती है जबकि मोदी ऐसे ही सब कर लेते हैं तो क्यूं सेना का समय यहाँ बर्बाद किया जा रहा है सेना पर देश की और भी जिम्मेदारियां हैं .मेरा भारत सरकार से अनुरोध है कि वे सेना को तुरंत वहां से हटाकर बगैर हिचक के मोदी की सहायता लें मोदी देशभक्त हैं और देश पर अपने परिवार प्रेम को भी कुरबान कर चुके हैं ऐसे में वे भगवान का दर्जा रखते हैं और जब भगवान धरती पर हों तब उनके दूतों की कोई आवश्यकता नहीं .
आज मोदी और मीडिया ने ये साबित कर दिया है कि हमारे दिलों से आपसी प्यार सद्भावना ख़त्म हो चुकी है केवल स्वार्थ हावी हो चुका है जो ऐसे में हमें आम आदमी की पीड़ा को नहीं देखने देती देखने देती है तो मात्र सत्ता हित ,राजनीति देखती है तो मात्र ये कि राहुल गाँधी घोड़े पर गायब क्यूं क्या देश से वोट मांगने वाले इस व्यक्ति का दायित्व नहीं कि वह पहले वहां से सभी अपनों की सकुशल वापसी के लिए जो कर सकते हैं करें उनका अपने चुनावी अभियान का आरंभ करना किसी को नहीं दिखता, दिखता है तो केवल राहुल गाँधी का आपदा के समय बाहर होना,क्या इस आपदा को भी उनके माथे मढ़ा जायेगा क्या दैव को भी उनके हाथ में उसी तरह कहा जायेगा जैसे सभी हत्याओं में इंदिरा ,सोनिया का नाम जोड़ दिया जाता है .
आज यदि मोदी जी को देश से जरा मात्र भी प्रेम है तो उन्हें चक दे इंडिया के नायक कबीर खान से प्रेरणा लेनी होगी जो टीम को एक करने के लिए उन्हें राज्य से अलग देश से जुड़ने को प्रेरित करता है .
नहीं तो उनके बारे में और हमारे मीडिया के बारे में हमें यही कहना होगा कि वे तो इस त्रासदी से भी बड़ी आपदा है और जिनसे निबटने के लिए सेना भी नाकाफी है . सत्यपाल ''अश्क ''जी के शब्दों में आज उनके लिए यही कहना होगा -
''मांग कर वो घर से मेरे और क्या ले जायेगा ,
होगा जो उसके मुकद्दर का लिखा ले जायेगा ,
रास्ते ने मंजिलों तक और भी भटका दिया
सोचते थे मंजिलों तक रास्ता ले जायेगा .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]