फहमाइश देती ''शालिनी ''इन हुक्मरानों को ,
बेचकर ईमान को ये देश खा गए .
बरगला अवाम को ये दिन दिखा गए .
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साहिबे आलम बने घूमे हैं वतन में ,
फ़र्ज़ कैसे भूलना हमको सिखा गए .
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वीरान सबका आज कर अपना संवारे कल ,
फरेबी मेहरबान लूटकर खा गए .
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ज़म्हूरियत के निगहबान जमघट के तलबगार ,
वादों के लचर झूले में सबको झुला गए .
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फ़ालिज जुदा हो लोकतंत्र देखे टुकुर-टुकुर ,
बेबसी के आंसू उसको रुला गए .
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फिजायें तक जिस मुल्क की मुरौवत भरी ,
हवाएं भी वहां की बेरहम बना गए .
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बेताबी में हथियाने को सत्ता की ये कुर्सी ,
फ़स्ले-बहार में हमें खिज़ा थमा गए .
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फहमाइश देती ''शालिनी ''इन हुक्मरानों को ,
झुलसाएगी वो आग जिसे कल लगा गए .
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शब्दार्थ- फहमाइश -चेतावनी ,फालिज जुदा -लकवे से मारा हुआ ,मुरौवत -मानवता ,फ़स्ले-बहार -वसंत ऋतू ,हुक्मरानों -हुक्म चलने वालों ,खिज़ा-पतझड़,
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (28-06-2013) को भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते - चर्चा मंच 1290 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हवाएं भी वहां की बेरहम बना गए .
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बेताबी में हथियाने को सत्ता की ये कुर्सी ,
फ़स्ले-बहार में हमें खिज़ा थमा गए .
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फहमाइश देती ''शालिनी ''इन हुक्मरानों को ,
झुलसाएगी वो आग जिसे कल लगा गए .
Kya gazabkee panktiyan hain.....inka warnana kaise karun?
अक्षरशः सत्य कथन !
पार्टी कोई भी हो, अधिकाँश हुक्मरान ,नेताओं की जी हुजूरी में लगे ,आवाम को लूट कर स्वयम अपनी और नेताओं की जेब गर्म करते हैं ! शालोनी बेटा ,
हैवान भी बेहतर हैं तिर्छी-टोपि-धारी से
जो कफन के लट्ठे का कुर्ता सिला गये !
फ़स्ले-बहार में हमें खिज़ा थमा गए .
BEAUTIFUL LINES AND GREAT THOUGHT
बहुत सशक्त अर्थ सार लिए देश के हालात लिए प्रस्तुति है आपकी .शब्द सौन्दर्य और प्रतीक लाज़वाब .