समाज टूट रहा है -मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण
समाज टूट रहा है -मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण
इंटरमीडिएट के छात्र छात्रा ने हरिद्वार में ख़ुदकुशी की, समाचार पत्र की हेडलाइंस -''बाइक से आये शादी की और जान दे दी ,''अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर स्थान और चिंता मात्र ये कि ''प्रेमी युगल ने किसके खौफ में की मौत से ‘दोस्ती’''जबकि चिंता क्या होनी चाहिए यही न कि आज हमारा युवा कहाँ जा रहा है वह उम्र जो उसके अपना कैरियर बनाने की है उस उम्र में वह प्यार जैसे वहम में पड़ता जा रहा है जो कि विशेषज्ञों के अनुसार इस उम्र में मात्र आकर्षण होता है जो कि जीवन की कठिन परिस्थितियों को देखकर बहुत जल्दी ही छूमंतर हो जाता है किन्तु इसे न तो आज कोई समझना चाहता है और न ही समझाना और वह जिसकी इस क्षेत्र में सर्वाधिक जिम्मेदारी बनती है वह मात्र अपनी रेटिंग हाई रखने के लिए ,अख़बार की बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसी ख़बरों को ऊपर स्थान दे रहा है और भटका रहा है हमारे युवा को जो इसे बहुत ऊंचाई पर लेकर चलते हैं .
और न केवल युवा बल्कि ये हमारा मीडिया आज जहाँ देखो प्रेमी युगल संकल्पना की स्थापना करने में लगा है जहाँ कहीं दो आदमी औरत एक साथ खबर में आये नहीं कि उन्हें प्रेमी युगल कहकर अपनी रेटिंग हाई की जाती है और अख़बार बेचे जाते हैं क्यूँ नहीं समझता यह मीडिया अपना उत्तरदायित्व कि आज समाज को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है और वह देने में वह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है .
सबसे पहले तो मीडिया को अपने आप ही ऐसे ख़बरों का शीर्षक परिवर्तन करते हुए इन्हें समाज के कलंक के रूप में ही दिखाना होगा क्योंकि ये फिल्मों की भाषा हो सकती है -
''न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन ''
वास्तव में इनका कोई स्थान नहीं और आज ऐसी वाहियात बातों पर रोक की आवश्यकता है क्योंकि हर काम के लिए कानून नहीं हो सकता ये समाज का उत्तरदायित्व है और समाज के सबसे महत्वपूर्ण अंग मीडिया की भूमिका इसलिए ही सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि उसकी ख़बरों को जनता में वरीयता देते हुए अपनी दिनचर्या में सबसे पहले स्थान दिया जाता है .
इसके साथ ही समचारपत्रों के माध्यम से भी मीडिया को ये बात बात में प्रेमी युगल लिखना बंद करना होगा क्योंकि ऐसे लोग जो अपने भरे पूरे परिवारों को छोड़कर या ऐसी औरतें जो अपने पति बच्चों को छोड़कर भागती हैं वे पलायन वादी हैं और तिरस्कार के अधिकारी हैं न कि इस पवित्र संज्ञा के जिससे नवाज़ नवाज़ कर मीडिया इनके हौसलों को बुलंद कर रहा है और प्यार की गलत परिभाषाएं जनता के समक्ष रख रहा है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
इंटरमीडिएट के छात्र छात्रा ने हरिद्वार में ख़ुदकुशी की, समाचार पत्र की हेडलाइंस -''बाइक से आये शादी की और जान दे दी ,''अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर स्थान और चिंता मात्र ये कि ''प्रेमी युगल ने किसके खौफ में की मौत से ‘दोस्ती’''जबकि चिंता क्या होनी चाहिए यही न कि आज हमारा युवा कहाँ जा रहा है वह उम्र जो उसके अपना कैरियर बनाने की है उस उम्र में वह प्यार जैसे वहम में पड़ता जा रहा है जो कि विशेषज्ञों के अनुसार इस उम्र में मात्र आकर्षण होता है जो कि जीवन की कठिन परिस्थितियों को देखकर बहुत जल्दी ही छूमंतर हो जाता है किन्तु इसे न तो आज कोई समझना चाहता है और न ही समझाना और वह जिसकी इस क्षेत्र में सर्वाधिक जिम्मेदारी बनती है वह मात्र अपनी रेटिंग हाई रखने के लिए ,अख़बार की बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसी ख़बरों को ऊपर स्थान दे रहा है और भटका रहा है हमारे युवा को जो इसे बहुत ऊंचाई पर लेकर चलते हैं .
और न केवल युवा बल्कि ये हमारा मीडिया आज जहाँ देखो प्रेमी युगल संकल्पना की स्थापना करने में लगा है जहाँ कहीं दो आदमी औरत एक साथ खबर में आये नहीं कि उन्हें प्रेमी युगल कहकर अपनी रेटिंग हाई की जाती है और अख़बार बेचे जाते हैं क्यूँ नहीं समझता यह मीडिया अपना उत्तरदायित्व कि आज समाज को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है और वह देने में वह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है .
सबसे पहले तो मीडिया को अपने आप ही ऐसे ख़बरों का शीर्षक परिवर्तन करते हुए इन्हें समाज के कलंक के रूप में ही दिखाना होगा क्योंकि ये फिल्मों की भाषा हो सकती है -
''न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन ''
वास्तव में इनका कोई स्थान नहीं और आज ऐसी वाहियात बातों पर रोक की आवश्यकता है क्योंकि हर काम के लिए कानून नहीं हो सकता ये समाज का उत्तरदायित्व है और समाज के सबसे महत्वपूर्ण अंग मीडिया की भूमिका इसलिए ही सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि उसकी ख़बरों को जनता में वरीयता देते हुए अपनी दिनचर्या में सबसे पहले स्थान दिया जाता है .
इसके साथ ही समचारपत्रों के माध्यम से भी मीडिया को ये बात बात में प्रेमी युगल लिखना बंद करना होगा क्योंकि ऐसे लोग जो अपने भरे पूरे परिवारों को छोड़कर या ऐसी औरतें जो अपने पति बच्चों को छोड़कर भागती हैं वे पलायन वादी हैं और तिरस्कार के अधिकारी हैं न कि इस पवित्र संज्ञा के जिससे नवाज़ नवाज़ कर मीडिया इनके हौसलों को बुलंद कर रहा है और प्यार की गलत परिभाषाएं जनता के समक्ष रख रहा है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
आभार-
मीडिया को संवेदनशील होना चाहिए इस विषय पर ...