क्यूँ खेल रहे हैं 'आप' आम आदमी से ?


केजरीवाल मेट्रों से जायेंगे शपथ लेने ,समाचार पत्रों की सुर्खियां बने इस समाचार ने आज एक बारगी फिर माथे पर चिंता की रेखाएं ला दी और यह चिंता न केवल अपनी ज़िंदगी को लेकर वरन उन सभी की ज़िंदगी को लेकर थी जिसके अपने होने का दम भरते हैं ''केजरीवाल और उनकी आप ''.
जेड सुरक्षा से इंकार ,रामलीला मैदान में शपथग्रहण ,सरकारी बंगले का ठुकराना ये सब क्या हा ? एक बार को तो लगता है कि ऐसा कर वे उस विशिष्ट श्रेणी वी.वी.आई.पी.का सफाया कर रहे हैं जिसके आभामंडल में आम आदमी का कोई स्थान नहीं होता किन्तु यदि हम गहराई में जाते हैं तो जनतंत्र को नौटंकी की जो परिभाषा केजरीवाल ने दी है वे अपने इन कृत्यों से उसी को साकार रूप दे रहे हैं .
जेड सुरक्षा या कोई भी सुरक्षा ,सरकारी बंगला ,विशिष्ट स्थान पर शपथ ग्रहण आदि समारोह की व्यवस्था हमारे इन संवैधानिक प्रमुखों को केवल कोई विशिष्ट दरजा देने के लिए ही नहीं दिया जाता बल्कि ये इनके साथ साथ प्रत्येक आम आदमी को भी सुरक्षित ,सुविधाजनक ज़िंदगी देने का भी एक न्यायिक तरीका है क्योंकि पहले ही हमारे इन नेताओं से ,संवैधानिक प्रमुखों से जन भावनाएं इस कदर जुडी रहती हैं कि इनको मात्र खरोंच पहुंचना भी आम आदमी के एक बड़े वर्ग को शहादत की राह पर पहुंचा देता है .
दुसरे सरकारी बंगलों में इनका निवास होना ज़रूरी है क्योंकि इनकी जीवन चर्या आम आदमी की जीवन चर्या से बिलकुल विपरीत होती है और इनका आम जनता के साथ रहना उनकी ज़िंदगी को असुविधाजनक बना देता है इसलिए ऐसे में उनका अलग महत्वपूर्ण आवास आवश्यक होता है .
और रही शपथ ग्रहण या अन्य समारोह की बात तो व्यवस्थाओं की कठिनता ऐसे समारोहों को विशिष्ट स्थलों से जोड़ देते हैं और यह ज़रूरी भी है क्योंकि सुरक्षा इंतज़ाम जब संसद जैसी विशिष्ट संवैधानिक संस्था के लिए नाकाफी हो जाते हैं तब बिल्कुल सामान्य स्थलों की सुरक्षा इंतज़ाम पहले ही प्रश्न चिन्ह के घेरे में होते हैं .
ऐसे में अरविन्द केजरीवाल बात तो आम जनता के हित की करते हैं और काम उसके विपरीत क्यूँ करते हैं .सुरक्षा घेरा तोड़ने का खामियाज़ा राजीव गांधी जैसे नेता की आतंकवादी हमले में मृत्यु द्वारा न केवल हमारी राजनीती बल्कि हमारी आम जनता भी भुगतती है .ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि अरविन्द केजरीवाल और इनकी आप हमारे देश के सिस्टम को भ्रष्टाचार मुक्त करने उतरे हैं या इस देश को ही सिस्टम मुक्त करने अगर ऐसा नहीं है तो पारदर्शिता की बात करने वाले अरविन्द और उनकी आप के नेता क्यूँ लेते हैं ''गोपनीयता की शपथ ''ऐसे में कोई शंका रह ही नहीं जाती है कि वाकई आप और अरविन्द आम आदमी की ज़िंदगी से खेल रहे हैं और दिल्ली को दहशत व् अव्यवस्था के हवाले कर रहे हैं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

अजय कुमार झा ने कहा…
ये सारी व्यवस्थाएं ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था की देन हैं जिन्हें भारतीय परिवेश के अनुरूप हर हाल में बदला ही जाना चाहिए था । राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद और लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी सरलता से ऐसे तमाम मानकों को तोडकर जनता के मन में अपने और शासन के प्रति असीम श्रद्धा और विश्वास जगाया था ।

इसमें कोई अति वाली बात नहीं लगी
विचारणीय है ये बात भी ...

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