एक दिल्ली तो संभलती नहीं कहते देश संभालेंगे भाजपाई
एक दिल्ली तो संभलती नहीं कहते देश संभालेंगे भाजपाई
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ये है इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव की राजनीतिक स्थिति और जहाँ तक दिल्ली विधानसभा की बात है तो आज दूरदर्शन पर देखा और सुना कि भाजपा वहाँ कितनी मजबूत स्थिति में है वही भाजपा जो १९९३ में दिल्ली में विधानसभा बनने पर पहली बार में ही सत्ता संभालती है और मदन लाल खुराना के हाथों में मुख्यमंत्री की बागडोर सौंपती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी ओर से बिगुल बजाने वाली ये पार्टी अपना अतीत कितनी जल्दी भूल जाती है ये कोई आश्चर्य की बात नहीं ऐसा वह एक बार नहीं बार बार करती है .मध्य प्रदेश में सत्ता में आती है उमा भारती के दम पर और उनके कानूनी फेर में फंसने पर सत्ता उनसे छीनती है फिर देती नहीं अपने को ईमानदार दिखने के लिए और अब चुनावी फायदा देख उन्हें फिर जोड़ लेती है .दिल्ली में इनके मदन लाल खुराना ,हवाला में फंसे और सत्ता से बाहर हुए शायद हवाला ईमानदारी का काम था और उन्हें सत्ता में अपने को ईमानदार दिखाने पर अपने राजनीतिक भविषय पर खतरा मंडराता दिखा था इसलिए वे हट गए और उनकी जगह आ गए साहिब सिंह वर्मा फिर दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज ,५ साल का कार्यकाल भी भाजपा वहाँ टिककर नहीं कर पायी और देश को स्थिरता देने की बात करती है और इनकी सुषमा स्वराज ईमानदारी के झंडे गाड़ती फिरती हैं और शीतल पेयों को अपने छोटे से कार्यकाल में भारत के साथ भेदभाव की अनुमति देती हैं अर्थात एक ऐसी अनुमति जिससे भारत में रासायनिक तत्वों की अधिकता का विदेशी कम्पनी का फैसला सही मान लिया जाता है जबकि वही कम्पनी अमेरिका में कम मात्र रखती है और ये वही सुषमा स्वराज हैं जो सोनिया गांधी को जीतने से रोकने के लिए कभी चुनाव लड़ने को तैयार होती हैं उनके सामने तो कभी गंजी होने का फैसला करती हैं क्यूँ अपने हाथ में शक्ति होने पर नहीं देती ये सही मोड़ इन कम्पनी के गलत इरादों को नेस्तनाबूद करके और यदि नहीं कर सकती ऐसा तो क्यूँ भ्रष्टाचार के लिए मात्र कांग्रेस को दोषी ठहराती हैं जबकि इस मामले में ये भाजपा को उसके समकक्ष ही खड़ा कर देती हैं .
आज दिल्ली में चुनाव हैं और जो भी दल इसमें खड़ा है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कमर को कस कर दिखा रहा है जबकि अभी तो इसमें ''आप पार्टी ''ही साफ है क्योंकि उसका कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है और ये साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि यदि उसके हाथ में भी सत्ता आएगी तो वह भी इसमें हाथ डुबोने के सिवाय कुछ नहीं करेगी क्योंकि सभी कहते हैं कि यहाँ आने का मतलब ही समुन्द्र में आना है और समुन्द्र में आकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता अफ़सोस बस इतना है कि जनभावनाओं से खिलवाड़ का जो गन्दा खेल यहाँ खेला जाता है वह बर्दाश्त के बाहर है और भाजपा ने वही किया है सत्ता में रहने का अवसर उसे कम मिला है किन्तु जितना भी मिला है उतने में भी वह अपने को इस दलदल में डूबा हुआ ही दिखा पायी है और यही कहती नज़र आयी है -
''हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे .''.
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
आज दिल्ली में चुनाव हैं और जो भी दल इसमें खड़ा है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कमर को कस कर दिखा रहा है जबकि अभी तो इसमें ''आप पार्टी ''ही साफ है क्योंकि उसका कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है और ये साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि यदि उसके हाथ में भी सत्ता आएगी तो वह भी इसमें हाथ डुबोने के सिवाय कुछ नहीं करेगी क्योंकि सभी कहते हैं कि यहाँ आने का मतलब ही समुन्द्र में आना है और समुन्द्र में आकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता अफ़सोस बस इतना है कि जनभावनाओं से खिलवाड़ का जो गन्दा खेल यहाँ खेला जाता है वह बर्दाश्त के बाहर है और भाजपा ने वही किया है सत्ता में रहने का अवसर उसे कम मिला है किन्तु जितना भी मिला है उतने में भी वह अपने को इस दलदल में डूबा हुआ ही दिखा पायी है और यही कहती नज़र आयी है -
''हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे .''.
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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