दूरदर्शन :मजबूरी का सौदा

Doordarshan Logoदूरदर्शन देश का ऐसा चैनल जिसकी पहुँच देश के कोने कोने तक है .जिसकी विश्वसनीयता इतनी है कि आज भी जिन चैनल को लोग पैसे देकर देखते हैं उनके मुकाबले पर भी मुफ्त में मिल रहे दूरदर्शन से प्राप्त समाचार को देखकर ही घटना के होने या न होने की पुष्टि करते हैं ,विश्वास करते हैं और ऐसा लगता है इसी विश्वास पर आज दूरदर्शन इतराने लगा है और अपनी इस उपलब्धि पर ऐसे अति आत्मविश्वास से भर गया है कि हम जो भी करेंगे वही सर्वश्रेष्ठ होगा और वही सराहा जायेगा .
आज अन्य चैनल जहाँ अपनी रेटिंग बढ़ने के लिए ,अपनी गुणवत्ता सुधारने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं वहीँ दूरदर्शन को ऐसी कोई चिंता कोई फ़िक्र नहीं है .एक और जहाँ ''बुद्धा ''और ''चाणक्य ''जैसे कालजयी चरित्रों पर आधारित श्रेष्ठता की हर पायदान को पार करते धारावाहिकों की मात्र उपस्थिति ही दर्ज की जाती है वहीँ ''कहीं देर न हो जाये ''जैसे ''न गवाँरु न संवारूं '' ''न भोजपुरी न हिंदी '' ''न अभिनय न पटकथा ''और अधिक क्या कहूं 'कुल मिलाकर बकवास ' और ''फॅमिली नंबर.1 ''जैसे फूहड़ ,पारिवारिक संस्कृति की भद्द पीटने वाले धारावाहिकों को प्राइम टाइम दिया जाता है जिनके कारण न चाहते हुए भी और इसके साथ समय गुजारने की इच्छा रखते हुए टेलीविज़न को बंद रखना ही ज्यादा श्रेयस्कर प्रतीत होता है .
दुसरे यहाँ विज्ञापन को धारावाहिक की गुणवत्ता से ऊपर स्थान दिया गया है यदि अधिक विज्ञापन हैं तो वह धारावाहिक चलता रहेगा अन्यथा या तो उसका समय बदल दिया जायेगा या उसे बंद कर दिया जायेगा फिर चाहे वह धारावाहिक कसी हुई पटकथा से बंधा हो ,सुन्दर अभिनय से सजा हो कोई मायने नहीं रखता और विज्ञापन की इतनी भरमार कि एक बारगी तो यही लगता है कि हम देख विज्ञापन रहे हैं हाँ बीच बीच में कोई धारावाहिक आ जाता है इससे अच्छा तो ये है कि दूरदर्शन धारावाहिकों को बंद कर के विज्ञापनों को ही चला ले क्योंकि अब तो ये भी काफी रुचिकर बनते हैं और जिसे जिस चीज़ का विज्ञापन देखना होगा वह टेलीविज़न ऑन कर उसे देख लेगा .
क्रिकेट देश का ऐसा खेल कि चाहे कोई जाने या न जाने इसे देखने बैठ जाता है और फिर दूरदर्शन तो है ही फालतू के कार्यक्रमों का भंडार ,दिन भर के और कार्यक्रम तो फालतू में चलते हैं और हम फालतू में ही देखते हैं अर्थात फालतू कार्यक्रम और फालतू दर्शक ,काम का तो बस दूरदर्शन जिसके पास कहने को अपना 'स्पोर्ट्स चैनल 'है किन्तु सारा स्पोर्ट्स चलता यहीं है फिर क्यूँ उस पर समय व् पैसा व्यर्थ किया जाता है .
दूरदर्शन का एक चैनल है ''डी.डी .न्यूज़ '' यूँ तो सारा दिन ही इस पर न्यूज़ चलती रहती हैं किन्तु अन्य चैनल का मुकाबला करने को यह लाया है एक नया कार्यक्रम ''रात साढ़े दस बजे ''जिसे कोई फटाफट न्यूज़ कहता है तो कोई सामान्य ज्ञान का भंडार किन्तु इससे भी फटाफट तो दूरदर्शन के इसी चैनल पर पहले से ही मौजूद हैं दिन के ''१.२५ से १.३० तक ''फिर इस में अन्य कोई विशेषता जैसे बात नहीं कही जा सकती और दिन भर एक सी ही न्यूज़ को यहाँ बैठकर रटा जाता है तो इसके सारे ही समाचारों को सामान्य ज्ञान का भंडार कहा जा सकता है क्योंकि यदि कोई सारे दिन बैठकर इन्हें देख ले तो कम से कम प्रतियोगी परीक्षाओं में जनरल स्टडीज के पेपर में तो पास हो ही जायेगा इसके लिए ''रात साढ़े दस बजे ''तो बैठने की ज़रुरत ही नहीं रहेगी जिसके माध्यम से दूरदर्शन अपने को अन्य चैनल के समकक्ष खड़ा करना चाहता है .
इस सबके कारण आज यही कहा जा सकता है कि आज दूरदर्शन मात्र मजबूरी का सौदा बनकर ही रह गया है और मात्र उन्हीं के द्वारा देखा जा रहा है जो अन्य चैनल के लिए पैसा खर्च नहीं कर सकते ,जिन के क्षेत्रों में अन्य चैनल की पहुँच नहीं है ,जिनके पास ज्यादा कुछ देखने का समय नहीं है इन सबके आलावा आज जहाँ कहीं भी पैसे के फूकने वाले हैं ,समय बिताने के साधन ढूंढते रहते हैं और जिनके क्षेत्रों में अन्य चैनल की पहुँच है वे दूरदर्शन को कब से ''गुड बाई ''कह चुके हैं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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