उम्मीदवारी के कुछ कर्त्तव्य भी होते हैं जनाब .
उम्मीदवारी के कुछ कर्त्तव्य भी होते हैं जनाब .
''गांधी का यह देश नहीं ,बस हत्यारों की मंडी है ,
राजनीति की चौपड़ में ,हर कर्ण यहाँ पाखंडी है .''
उपरोक्त पंक्तियाँ अक्षरशः खरी उतरती हैं इस वक़्त सर्वाधिक प्रचारित ,कथित हिन्दू ह्रदय सम्राट ,देश को माँ-माँ कहकर सबके दिलों पर छाने की कोशिश करने वाले गांधी के ही गुजरात के बेटे और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हैट्रिक लगाने का पुरुस्कार भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्राप्त करने वाले शख्स नरेंद्र मोदी जी पर ,जिन्हें लगता है कि इस उम्मीदवारी से उन्हें मात्र अधिकार मिलें हैं विरोधियों पर कटाक्ष करने के और वह भी अभद्रता की हद पर करने वाले कटाक्ष और मुख़ालिफ़ों के बयानों में से कोई न कोई बात पकड़कर उसकी खाल निकालने का .
हमारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने कहा था कि कर्त्तव्य के संसार में ही अधिकारों की महत्ता है और यह सभी जानते भी हैं कि अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलु हैं तो ऐसे में मोदी जी १३ दिसंबर को अपना कर्त्तव्य कैसे भूल गए जो कि इस उम्मीदवारी से उन्हें मिला है गुजरात के मुख्यमंत्री होने के कारण नहीं .१५ अगस्त को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की बराबरी करने के लिए जो शख्स नकली लाल किले पर चढ़कर भाषण दे सकता है वह १३ दिसंबर को अपना कर्त्तव्य पूर्ण करने हेतु नकली संसद बनाकर शहीदों को श्रद्धांजलि देना कैसे भूल गया ?
संसद पर हमले की १२ वीं बरसी पर जहाँ देश शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दे रहा था वहीँ नरेंद्र मोदी जी राजस्थान में वसुंधरा राजे जी के शपथ ग्रहण समारोह की शोभा बढ़ाते हुए आनंद मग्न हो रहे थे .क्या यही है नरेंद्र मोदी जी का अपने देश की दुःख की घडी में साथ देने का तरीका जो कि एक फ़िल्मी गाने में देवानंद जी का था -
''गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ ,
मैं खुद को उस मक़ाम पे लाता चला गया .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
राजनीति की चौपड़ में ,हर कर्ण यहाँ पाखंडी है .''
उपरोक्त पंक्तियाँ अक्षरशः खरी उतरती हैं इस वक़्त सर्वाधिक प्रचारित ,कथित हिन्दू ह्रदय सम्राट ,देश को माँ-माँ कहकर सबके दिलों पर छाने की कोशिश करने वाले गांधी के ही गुजरात के बेटे और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हैट्रिक लगाने का पुरुस्कार भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्राप्त करने वाले शख्स नरेंद्र मोदी जी पर ,जिन्हें लगता है कि इस उम्मीदवारी से उन्हें मात्र अधिकार मिलें हैं विरोधियों पर कटाक्ष करने के और वह भी अभद्रता की हद पर करने वाले कटाक्ष और मुख़ालिफ़ों के बयानों में से कोई न कोई बात पकड़कर उसकी खाल निकालने का .
हमारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने कहा था कि कर्त्तव्य के संसार में ही अधिकारों की महत्ता है और यह सभी जानते भी हैं कि अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलु हैं तो ऐसे में मोदी जी १३ दिसंबर को अपना कर्त्तव्य कैसे भूल गए जो कि इस उम्मीदवारी से उन्हें मिला है गुजरात के मुख्यमंत्री होने के कारण नहीं .१५ अगस्त को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की बराबरी करने के लिए जो शख्स नकली लाल किले पर चढ़कर भाषण दे सकता है वह १३ दिसंबर को अपना कर्त्तव्य पूर्ण करने हेतु नकली संसद बनाकर शहीदों को श्रद्धांजलि देना कैसे भूल गया ?
संसद पर हमले की १२ वीं बरसी पर जहाँ देश शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दे रहा था वहीँ नरेंद्र मोदी जी राजस्थान में वसुंधरा राजे जी के शपथ ग्रहण समारोह की शोभा बढ़ाते हुए आनंद मग्न हो रहे थे .क्या यही है नरेंद्र मोदी जी का अपने देश की दुःख की घडी में साथ देने का तरीका जो कि एक फ़िल्मी गाने में देवानंद जी का था -
''गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ ,
मैं खुद को उस मक़ाम पे लाता चला गया .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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