.....और माँ माँ ही होती है -एक लघु कथा

''ये शोर कैसा है ''नरेंद्र ने अपने नौकर जनार्दन से पूछा ,कुछ नहीं बाबूजी ,वो माता जी को खांसी का धसका लगा और उनसे मेज गिर गयी जिससे उसपर रखी हुई दवाइयां इधर-उधर गिर गयी ,जनर्दन ने बताया ,''पता नहीं कब मारेंगी मेरी इतनी मेहनत की कमाई यूँ ही स्वाहा हुई जा रही है ,वे तो मेरे और इस घर पर बोझ ही बनकर पद गयी हैं .घर से निकाल नहीं सकता लोगों में सारी इज़ज़त गिर जायेगी मेरी ''बड़बड़ाते हुए नरेंद्र बाहर चले गए .
नरेंद्र....नरेंद्र...धीमी सी आवाज़ में कौशल्या देवी ने मुश्किल से आवाज़ लगायी तो जनार्दन तेज़ी से भागकर वहाँ पहुंचा ,जी माता जी ,जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ,''जनार्दन! कहाँ है नरेंद्र ?''..जी वे तो बाहर चले गए ..जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ..वो कुछ गुस्सा हो रहा था ,क्यूँ किस पर ?..जी आप पर ,वे कहते हैं कि आप घर पर बोझ हैं .''..जनार्दन के मुंह से ये सुनकर कौशल्या देवी का मन बैठ गया वे दुखी मन से बोली ,''मेरे पर क्यूँ गुस्सा हो रहा था ..मैंने क्या किया ...आज तक उसका और इस घर का करती ही आ रही हूँ ,जरा सा बीमार क्या पड़ गयी उसने तो घर को सर पर ही उठा लिया ,अरे जरा सा बुखार ही तो है दो चार दिन में ठीक हो जायेगा और आज तक मेरे ही तो पैसों पर पल रहा है ,चल रहा है उसका घर और उसका यारों दोस्तों में उठना बैठना ,उसने तो आज तक एक अठन्नी भी लाकर मेरे हाथ पर नहीं धरी ....और ये कहकर वे रोने लगी .
जनार्दन उन्हें थोडा समझकर कमरे से बाहर निकल आया तभी फोन की घंटी बजी ,हेलो ! जनार्दन ने रिसीवर कान से लगाकर कहा ,..देखिये आप नरेंद्र जी के घर से बोल रहे हैं ,..हाँ कहिये ....देखिये मैं युवराज बोल,रहा हूँ जनपद वाला ,नरेंद्र जी मेरे घर के बाहर खड़े होकर मुझे गलियां दे रहे थे और कंकड़ पत्थर मार रहे थे कि अचानक मेरे पडोसी नवीन जी का छज्जा उनपर गिर गया और वे गम्भीर रूप से घायल हो गए है ,उन्हें हम अस्पताल लेकर जा रहे हैं आप वहीँ आ जाइये ..ये कहकर फोन डिस्कनेक्ट हो गया .
माता जी ..माता जी ....नरेंद्र बाबू को बहुत चोट आयी है ,उन्हें कुछ लोग लेकर अस्पताल जा रहे हैं ....मैं भी जा रहा हूँ ....तू रुक ...जनार्दन को रोकते हुए कौशल्या देवी बोली ,मैं भले ही उसे बोझ लगती हूँ पर मेरे लिए मेरा बीटा कभी बोझ नहीं हो सकता ,मैं आज भी उसे ठीक करने की ताकत रखती हूँ भले ही वह मेरी जिम्मेदारी से मुकर जाये ......आँख में आये आंसू पौंछती हुई कौशल्या देवी को जनार्दन ने सहारा दिया और कहा ..चलिए माता जी सच में आप सही कह रही हैं ,आप माँ हैं और माँ माँ ही होती है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सफ़ेद भेड़ - काली भेड़ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (31-12-13) को "वर्ष 2013 की अन्तिम चर्चा" (चर्चा मंच : अंक 1478) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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2013 को विदायी और 2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेनामी ने कहा…
,आप माँ हैं और माँ माँ ही होती है
मर्मस्पर्शी.......
मुझे झूठ बोलना तो आता नहीं हैं
और सच कहु तो मेरी आँखों में पानी आ गया
क्यूंकि जन्म से आज तक मैं अपने पेरेंट्स के बहुत करीब रही हु सो
समझ सकती हू पेरेंट्स के प्यार को :-)

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