ये प्रेम जगा है .

 
ज़रुरत पड़ी तो चले आये मिलने
न फ़ुरसत थी पहले
न चाहत थी जानें
हैं किस हाल में मेरे अपने वहां पर
खिसकने लगी जब से पैरों की धरती
उडी सिर के ऊपर से सारी छतें ही
हड़पकर हकों को ये दूजे के बैठे
झपटने लगे इनसे भी अब कोई
किया जो इन्होने वो मिलने लगा है
तो अपनों की खातिर ये प्रेम जगा है .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

Himkar Shyam ने कहा…
बहुत सुंदर. भावमय अभिव्यक्ति...

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