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कोरियर सर्विस को सदैव मात देती भारतीय डाक सेवा

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        भारतीय डाक सेवा की स्थापना एक अप्रैल 1854 को हुई थी लेकिन सही मायनों में इसकी स्थापना एक अक्तूबर 1854 को मानी जाती है। तब तत्कालीन भारतीय वायसराय लॉर्ड डलहौजी ने इस सेवा का केंद्रीकरण किया था। उस वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत आने वाले 701 डाकघरों को मिलाकर भारतीय डाक विभाग की स्थापना हुई थी। हालांकि इससे पहले लॉर्ड क्लाइव ने अपने स्तर पर 1766 में भारत में डाक व्यवस्था शुरू की थी। इसके बाद बंगाल के गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स ने 1774 में कोलकाता में एक प्रधान डाकघर बनाया था। अंग्रेजों ने इस सेवा की शुरुआत अपने सामरिक और व्यापारिक हितों के लिए की थी। मगर यह देश की आजादी के बाद भारतीयों के लिए सुख-दुख की साथी बन गई। भारत में पोस्ट ऑफिस को प्रथम बार 1 अक्टूबर 1854 को राष्ट्रीय महत्व के पृथक रूप से डायरेक्टर जनरल के संयुक्त नियंत्रण के अर्न्तगत मान्यता मिली। 1 अक्टूबर 2004 तक के सफ़र को 150 वर्ष के रूप में मनाया गया। डाक विभाग की स्थापना इसी समय से मानी जाती है। इंडिया पोस्ट भारत में सरकार द्वारा संचालित डाक प्रणाली है, जो संचार मंत्रालय के तहत डाक विभाग का हिस्सा...

हाई कोर्ट बेंच आंदोलन के समर्पित कार्यकर्त्ता थे बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी

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   In the movement of the Western Uttar Pradesh High Court Bench, President Bar Association Kairana Babu Kaushal Prasad Advocate ji was associated with the Sangharsh Samiti along with the entire organization. In Babuji's time every call of the Sangharsh Samiti was followed, every movement was taken and every instruction was followed literally. In August 1995, in connection with the High Court Bench, the advocates of Meerut Bar Association went to Lucknow to meet the Chief Minister of Uttar Pradesh, Mayawati ji , but returned disappointed, after that they called a meeting of the Sangharsh Committee on 2 September 1995 under the aegis of the Sangharsh Samiti, in which the decision was taken to boycott of courts of western Uttar Pradesh, Meerut bandh was decided on 8 September 1995 on the arrival of Mayawati ji for the establishment of the Bench President Bar Association Kairana Babu Kaushal Prasad Advocate ji also joined the delegation of Bar Association Kairana, expressing his ...

Work for kandhla - gas - 2.4.88

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Babu Kaushal Prasad Advocate ji was not only a great advocate but also a conscious consumer. The work of supplying gas in Kandhla started in the year 1988, before that Mrs. Bina Kaushik, the wife of Babu Kaushal Prasad Advocate, had brought ISI mark stove from her maternal home in Bareilly and the gas cylinder used to come from Meerut. When Super Gas Service started working in Kandhla, he made it a rule that the stove should also be taken from Super Gas Service, then Babuji as Wrote a letter to Mr. Ashok Suri, Deputy Manager, LPG Sales, Hindustan Petroleum Corporation Limited, New Delhi dated 02 April 1988  "Regarding the release of LPG connection by Super Gas Service Kandhala (Muzaffarnagar), in which he said - " *- That the following signatory contacted your agent Ratan Singh Nirwal on 25.03.88, then he said that if you have a stove, it will be inspected. *- This is to draw your attention to your letter dated 07.07.1987, through which you have informed Mr. Niranjan Swaroop ...

श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट : प्रेरणादायी व्यक्तित्व -मौ अजमल एडवोकेट

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स्व. बाबू कौशल प्रसाद शर्मा एडवोकेट जी के समय में में प्रैक्टिस में तो नहीं था, क्योंकि मैं खुद बहुत छोटा था। मैं स्वयं बार एसोशिएशन कैराना जनपद शामली में आने से पूर्व से ही बाबू जी के पड़ोस में मेरा घर होने के कारण बाबूजी को जानता था और कचहरी में भी मैंने देखा कि बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी मेहनती, ईमानदार और संघर्षशीलता की मिसाल थे. बाबू जी के बारे में यह बात कि बाबूजी के समय में किसी भी अधिवक्ता को कभी किसी प्रकार की समस्या बाबूजी ने नहीं होने दी, इसलिए मैं मानता हूँ कि वो समय 'सुनहरा' रहा होगा. जब कभी मैं सुबह में बाबू जी के घर की तरफ से कभी जाता था, तो सुबह में ही बाबू जी स्वयं अपने कचहरी समय से पहले, अपने बगीचे में लगें पेड़-पौधो की नुलाई (पानी देना) करकर जाते थे, उन्हे पेड़-पौधो से बड़ा प्रेम था। मैं स्वयं उनसे बहुत प्रेरित हुआ हूँ। मौ. अजमल एडवोकेट जिला एवं सत्र न्यायालय शामली स्थित कैराना

बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट के संपूर्ण जीवन के समर्पण को कठघरे में खड़े करने की नकारात्मक प्रवृत्ति के गर्भ से हुआ इस पुस्तक का सृजन -डॉ शिखा कौशिक 'नूतन '

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  भूमिका पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।  पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता ।। अर्थात पिता ही थर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तप है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। 'पद्मपुराण' का यह श्लोक एक संतान के जीवन में पिता की महत्ता को प्रतिपादित करने के लिए पर्याप्त है। पिता शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के मूल शब्द 'पितृ' से हुई है। इस शब्द की व्युत्पत्ति 'पा' धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है- रक्षा करना तथा पालन करना। ऋग्वेद की ऋचा में पिता को समस्त कल्याण व करुणा का प्रतीक घोषित किया गया है। पिता हमारे जीवन के दाता ही नहीं वरन मार्गदर्शक भी हैं। पितृ प्रधान समाज में हमारा परिचय हमारे पिता के नाम से ही कराया जाता है। समाज व हमारे बीच की कड़ी पिता ही हैं। हम उनकी ऊंगली पकड़ कर चलना ही नहीं सीखते बल्कि उनके जीवन के अनुभवों से अपने जीवन की दिशा भी निर्धारित करते हैं। कैथरीन पल्सिफेर ने सत्य ही कहा कि "पिता, पिताजी, पापा चाहे आप उन्हें कुछ भी करें, वे हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं और वे वही व्यक्ति हैं ...

आज कौशलप्रसाद जी हमारे मध्य न होकर भी उनकी स्मृतियों की सुगन्ध हर अधिवक्ता के दिल मे है -श्री योगेश कुमार शर्मा एडवोकेट

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  वास्तव में अधिवक्ता समाज जनमानस के साथ-साथ अपने समकक्ष और आने वाली पीढ़ी को दिशा-निर्देश देने की आबद्धता धारण करता है .यद्यपि एक अधिवक्ता की अन्य अधिवक्तागण के प्रति कोई आबद्धता नही होती लेकिन जहाँ सम्भाव्य कारण कुछ अधिवक्तागण तुलनात्मक रूप से अपना स्थान न बना पाते हों सतत अन्य अधिवक्तागण के समतुल्य न होना या न्यायिक गतिविधियों में अपने आप को सही से स्थापित न कर पाना ,यद्यपि यह क्रियात्मक रूप अधिवक्ता समाज में अधिकांशतः सामान्य है और इसके अभिभावी होने का एक मात्र कारण अधिवक्ता समाज की यह परम्परावादी मस्तिष्क की प्रकृति है कि युवा अधिवक्ता मानसिक व् संवेगात्मक रूप से सीनियर अधिवक्ता की अपेक्षा कमजोर होते हैं ,सम्भाव्य कारण अनेक हैं तथा सम्पूर्ण अधिवक्ता समाज में विविध रुप से व्याप्त हैं . अधिकांशतः कुछ अधिवक्तागण इसी उपेक्षा के शिकार होकर रह जाते हैं और इस विभीषिका से त्रस्त होकर सम्पूर्ण विकास को प्राप्त नही हो पाते .ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक अधिवक्ता का यह दायित्व भी होता है कि वह अपने समकक्ष या युवा अधिवक्ता को इस विभीषिका से ग्रसित न होने दे ...

मान्यवर कौशल प्रसाद जी की उदात्त आत्मा के प्रति नमन -सन्तोष खन्ना प्रधान संपादक, 'महिला विधि भारती', पत्रिका विधि भारती परिषद्‌ दिल्ली

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शुभकामना संदेश यह अतीव प्रसन्नता का विषय है कि डा शिखा कौशिक नूतन और शालिनी कौशिक अपने पिताश्री स्वर्गीय श्री कौशल प्रसाद पर एक पुस्तक तैयार कर रहीं है जिसमें वे दोनों अपने पिताश्री के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित करते हुए उनकी स्मृति को चिर स्थाई बनाने का प्रयास कर रही हैं। पुस्तक का 'कंटक पथ नंगे पांव' शीर्षक से प्रणयन कर उसे प्रकाशित किया जा रहा है और यह शीर्षक ही स्वयं में बहुत कुछ संकेत दे देता है। इस महत् कार्य से वे अपने पिताश्री की मधुर स्मृति के प्रति अपने स्नेह सुमन अर्पित करेंगी। इस प्रकार का पुनीत कर्म वहीं करता है जिसे अपने जनक से सुंदर संस्कार मिले हों। यद्यपि मुझे उनके पिताश्री से मिलने का सुअवसर कभी नहीं मिला, किंतु मैं जितना शिखा और शालिनी को जानती हूं उससे यह विश्वासपूर्वक कह सकती हूं कि माननीय कौशल प्रसाद, जो पेशे से एक वकील थे, बहुत ही सहज, सरल और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी थे। अपने व्यवसाय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें अपने साथी अधिवक्ताओं, मुविक्कलों आदि में सहज ही लोकप्रिय बना दिया था और वह न्यायालय में हर मुकदमें में पूरी तैयारी के साथ पेश होते...