संदेश

प्रियंका गांधी से क्षमा मांगे यदि सच्चे रामभक्त है भाजपा और उसके अनुयायी

     भाजपा और अंधभक्त आज सत्ता के नशे में चूर नजर आ रहे हैं और इसका जीता जागता प्रमाण वे स्वयं प्रस्तुत कर रहे हैं. विपक्ष के नेताओं को लेकर भाजपा के बड़े बड़े नेताओं से लेकर छुटभैये कार्यकर्ताओं द्वारा भी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. अभी तक भाजपाइयों द्वारा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को लेकर मात्र पप्पू और पिंकी शब्दावली का ही प्रयोग किया जा रहा था, किन्तु अपने बड़े नेताओं द्वारा इनके लिए असभ्य शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाने पर छुटभैये भाजपाइयों की भी ढीठ खुलती हुई नजर आ रही है. राहुल गांधी जी को लेकर तो अपशब्द भाजपा के शीर्ष से पहले ही जारी थे किंतु अब प्रियंका गांधी जी के भी चुनाव प्रचार में उतरने पर देश की सभ्यता संस्कृति की ठेकेदार बनने वाली भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रियंका गांधी जी के लिए जिन अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है उसका लिया जाना भी एक सभ्य भारतीय अपने सपने में भी सोच नहीं सकता.      भारतीय संस्कृति में नारी का जो स्थान है उसे इतना भ्रष्ट स्वरुप कभी भी प्राप्त नहीं हुआ होगा, जितना बीजेपी के मौजूदा कार्यकाल में दिखाई दिया है.

बेटी का जीवन बचाने में सरकार और कानून दोनों असफल

चित्र
आजकल रोज समाचारपत्रों में महिलाओं की मौत के समाचार सुर्खियों में हैं जिनमे से 90 प्रतिशत समाचार दहेज हत्याओं के हैं. जहां एक ओर सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए गाँव और तहसील स्तर पर "मिशन शक्ति" कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करायी जा रही है, सरकारी आदेशों के मुताबिक परिवार न्यायालयों में महिला के पक्ष को ही ज्यादा मह्त्व दिया जाता है वहीं सामाजिक रूप से महिला अभी भी कमजोर ही कही जाएगी क्योंकि बेटी के विवाह में दिए जाने वाली "दहेज की कुरीति" पर नियंत्रण लगाने में सरकार और कानून दोनों ही अक्षम रहे हैं.           एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .                  'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सु

हरियाली तीज -झूला झूलने की परंपरा पुनर्जीवित हो.

चित्र
            श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तीज तिथि 18 अगस्त से आरंभ होकर 19 अगस्त को रहने वाली है ऐसे में हरियाली तीज को लेकर अपना बचपन याद आना स्वाभाविक है. बचपन में विद्यालय का इस दिन अवकाश रहता था और हम सभी सहपाठी छात्राएं नए नए वस्त्र पहनकर और अपनी तरफ से पूरा श्रंगार कर एक टोली बनाकर निकल एक दूसरे के घर जाती थी, झूला झूलती थी, घेवर खाती थी और तीज का त्योहार हँस खेलकर मनाती थी.         हर‌ियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और आनन्द मनाती हैं। हरियाली तीज का उत्

योगी आदित्यनाथ जी कैराना में स्थापित करें जनपद न्यायालय शामली

चित्र
         2011 में 28 सितंबर को शामली जिले का सृजन किया गया. तब उसमें केवल शामली और कैराना तहसील शामिल थी. इससे पहले शामली और कैराना तहसील मुजफ्फरनगर जनपद के अंतर्गत आती थी. कुछ समय बाद शामली जिले में ऊन तहसील बनने के बाद अब शामली जिले के अंतर्गत तीन तहसील कार्यरत हैं. 2018 के अगस्त तक शामली जिले का कानूनी कार्य मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत ही कार्यान्वित रहा किन्तु अगस्त 2018 में शामली जिले की कोर्ट शामली जिले में जगह का चयन न हो पाने के कारण कैराना में आ गई और इसे नाम दिया गया -" जिला एवं सत्र न्यायालय शामली स्थित कैराना. "         2018 से अब तक मतलब अगस्त 2023 तक शामली जिले के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर जिला जज की कोर्ट के लिए जगह का चयन हो जाने के बाद शासन द्वारा 51 एकड़ भूमि जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के लिए आवंटित की गयी थी, जिसमें चाहरदीवारी के निर्माण के लिए 4 करोड़ की धन राशि अवमुक्त की गई थी जिससे अब तक केवल बाउंड्रीवाल का ही निर्माण हो पाया है. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के निर्माण के लिए 295 करोड़ रुपये का ए

बंदर और उत्तर प्रदेश

चित्र
    आज उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा चर्चाओं में अगर कोई शब्द है तो वह है " विकास", जो कि सत्ता पक्ष की नजरों में बहुत ज्यादा हो रहा है और विपक्ष की नजरों में गायब हो गया है किन्तु जो सच्चाई आम जनता के सामने है, जिस भयावह सच को उत्तर प्रदेश की जनता भुगत रही है, वह यह है कि घर के अंदर, घर के बाहर, मन्दिर, मस्जिद, कार्यस्थल, न्यायालय - कचहरी परिसर, सडकें, बिजली के खंबे, पानी की टंकियां, खुले घास के मैदान, वाहनों के पार्किंग स्थल आदि आदि क्या क्या कहा जाए, सभी बन्दरों के परिवार - खानदान से आतंकित हैं और इनके खौफ में कोई अपनी जिंदगी से हाथ धो रहा है तो कोई अपने हाथ पैर से तो कोई अपने बच्चों या बूढे माँ बाप से, किन्तु आश्चर्य इस बात का है कि जनता के हृदय पर विराजमान सरकार के दिल पर तो क्या असर करेगी, उसके कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही है.          जबसे इस धरती पर जन्म लिया, बंदरों की बहुत बड़ी संख्या का सामना किया है. घर के ऊंचे ऊंचे जीनों से बन्दरों से बचने के लिए छलांग तक लगाई है. मम्मी को दो दो बार, एक बार रात में छत पर सोते समय और एक बार रसोई से बाहर आते समय बन्दरों ने काटा है,

नारी शक्ति है क्या

चित्र
        मणिपुर वीभत्स घटना आज पूरे देश के सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर छाई हुई है. महिलाओं के लिए मौजूदा समय कितना दुखदायी है निरन्तर आंखों के सामने खुलता जा रहा है. यूँ तो, आरंभ से नारी की जिंदगी माँ के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु तक शोचनीय ही रहती है. वह चाहे बेटी हो, पत्नी हो या माँ, सभी की नजर में बेचारी ही रहती है. आज एक ओर सरकारी योजनाओं में मिशन शक्ति, विधिक सेवा प्राधिकरण आदि माध्यम से सरकार नारी को सशक्त किए जाने का अथक प्रयास कर रही है किन्तु यह प्रयास भी भारतीय पुरातन सोच को परिवर्तित करने में विफल ही नजर आते हैं. नारी को अबला और भोग्या ही समझने वाला पुरुष सत्ता धारी समाज नारी की सामाजिक स्थिति को उन्नत होते हुए नहीं देख सकता है और वह जब भी, जैसे भी नारी को शोषित करने का कोई भी दुष्कर्म कर सकता है, करता है. बृज भूषण सिंह हो, कुलदीप सेंगर हो या मणिपुरी आदिवासी समाज - महिला को अपमानित करने से कहीं भी पीछे नहीं हटते हैं और ऐसे में इन पुरुष सामंतवाद के समर्थकों पर फर्क नहीं पड़ता है नारी के कमजोर या सबल होने से और सबसे दुःखद स्थिति यह है कि आज सत्ता के शीर्ष पर बैठी नारी शक्ति की म

कांधला-कैराना की सड़क जल्द ठीक हो

कांधला से कैराना कहा जाए या कैराना से कांधला - एक ही बात है. पूरे यू पी या कहें तो बीजेपी की केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार ने सड़कों का जाल सा बिछा दिया है सारे में, सड़कों को लेकर बहुत कार्य किया गया है भाजपा सरकार में, किन्तु यह कांधला - कैराना के रास्ते में पड़ते नीलकण्ठ महादेव मन्दिर (वैष्णो देवी मन्दिर) के ठीक सामने पड़ती सड़क पर कांधला में और कांधला से कैराना की ओर निकलते हुए ग्राम असदपुर जिढाना से पहले और ग्राम में काफी लम्बे क्षेत्र की सड़क का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि इस पर माननीय मोदी जी या माननीय योगी जी की नजरें नहीं पड़ी और यह ज़बर्दस्त गड्ढे और टूट फूट भरी सड़क होते हुए और बड़े हादसों की वज़ह होते हुए भी बस लीपापोती से ही ठीक दिखाई जाती रही. आज स्थिति यह है कि चार पहिया वाहन तो इस पर किसी तरह लुढ़क लुढ़क कर घसीटते हुए चला लिए जा रहे हैं किन्तु मोटर साइकिल, स्कूटी, साईकिल, ई-रिक्शा चालक मजबूरी में और कोई रास्ता न होने के कारण इस पर निकल रहे हैं और हादसों के शिकार हो रहे हैं और ऐसे में निरन्तर बारिश ने कंगाली में आटा गीला वाला कार्य किया है. जिसे देखते हुए कांधला से ऊंचा गाँव त