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शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को -२०१४

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  अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को , अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को . ............................................................ अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर  आये  , घिर घिर कर अर्नोद छा रहे कंपित करने सबके तन को . ........................................................................... मिलजुल कर जब किया अलाव  गर्मी आई अर्दली बन , अलका बनकर ये शीतलता  छेड़े जाकर कोमल तृण को . .................................................................. आकंपित हुआ है जीवन फिर भी आतुर उत्सव को , यही कामना हों प्रफुल्लित आओ मनाएं हर क्षण को . ............................................................................................ पायें उन्नति हर पग चलकर खुशियाँ मिलें झोली भरकर , शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को . ........................................................... शालिनी कौशिक [कौशल] शब्दार्थ :अमरावती -स्वर्ग ,इन्द्रनगरी ,अरुणिमा -लालिमा ,अरुणोदय-उषाकाल ,अर्दली -चपरासी ,अर्नोद -बादल ,तुहिन -हिम ,बर्फ ,अर

.....और माँ माँ ही होती है -एक लघु कथा

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''ये शोर कैसा है ''नरेंद्र ने अपने नौकर जनार्दन से पूछा ,कुछ नहीं बाबूजी ,वो माता जी को खांसी का धसका लगा और उनसे मेज गिर गयी जिससे उसपर रखी हुई दवाइयां इधर-उधर गिर गयी ,जनर्दन ने बताया ,''पता नहीं कब मारेंगी मेरी इतनी मेहनत की कमाई यूँ ही स्वाहा हुई जा रही है ,वे तो मेरे और इस घर पर बोझ ही बनकर पद गयी हैं .घर से निकाल नहीं सकता लोगों में सारी इज़ज़त गिर जायेगी मेरी ''बड़बड़ाते हुए नरेंद्र बाहर चले गए . नरेंद्र....नरेंद्र...धीमी सी आवाज़ में कौशल्या देवी ने मुश्किल से आवाज़ लगायी तो जनार्दन तेज़ी से भागकर वहाँ पहुंचा ,जी माता जी ,जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ,''जनार्दन! कहाँ है नरेंद्र ?''..जी वे तो बाहर चले गए ..जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ..वो कुछ गुस्सा हो रहा था ,क्यूँ किस पर ?..जी आप पर ,वे कहते हैं कि आप घर पर बोझ हैं .''..जनार्दन के मुंह से ये सुनकर कौशल्या देवी का मन बैठ गया वे दुखी मन से बोली ,''मेरे पर क्यूँ गुस्सा हो रहा था ..मैंने क्या किया ...आज तक उसका और इस घर का करती ही आ रही हूँ ,जरा सा बीमा

क्यूँ खेल रहे हैं 'आप' आम आदमी से ?

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केजरीवाल मेट्रों से जायेंगे शपथ लेने ,समाचार पत्रों की सुर्खियां बने इस समाचार ने आज एक बारगी फिर माथे पर चिंता की रेखाएं ला दी और यह चिंता न केवल अपनी ज़िंदगी को लेकर वरन उन सभी की ज़िंदगी को लेकर थी जिसके अपने होने का दम भरते हैं ''केजरीवाल और उनकी आप ''. जेड सुरक्षा से इंकार ,रामलीला मैदान में शपथग्रहण ,सरकारी बंगले का ठुकराना ये सब क्या हा ? एक बार को तो लगता है कि ऐसा कर वे उस विशिष्ट श्रेणी वी.वी.आई.पी.का सफाया कर रहे हैं जिसके आभामंडल में आम आदमी का कोई स्थान नहीं होता किन्तु यदि हम गहराई में जाते हैं तो जनतंत्र को नौटंकी की जो परिभाषा केजरीवाल ने दी है वे अपने इन कृत्यों से उसी को साकार रूप दे रहे हैं . जेड सुरक्षा या कोई भी सुरक्षा ,सरकारी बंगला ,विशिष्ट स्थान पर शपथ ग्रहण आदि समारोह की व्यवस्था हमारे इन संवैधानिक प्रमुखों को केवल कोई विशिष्ट दरजा देने के लिए ही नहीं दिया जाता बल्कि ये इनके साथ साथ प्रत्येक आम आदमी को भी सुरक्षित ,सुविधाजनक ज़िंदगी देने का भी एक न्यायिक तरीका है क्योंकि पहले ही हमारे इन नेताओं से ,संवैधानिक प्रमुखों से जन भावनाएं इस कदर जुडी

दूरदर्शन :मजबूरी का सौदा

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दूरदर्शन देश का ऐसा चैनल जिसकी पहुँच देश के कोने कोने तक है .जिसकी विश्वसनीयता इतनी है कि आज भी जिन चैनल को लोग पैसे देकर देखते हैं उनके मुकाबले पर भी मुफ्त में मिल रहे दूरदर्शन से प्राप्त समाचार को देखकर ही घटना के होने या न होने की पुष्टि करते हैं ,विश्वास करते हैं और ऐसा लगता है इसी विश्वास पर आज दूरदर्शन इतराने लगा है और अपनी इस उपलब्धि पर ऐसे अति आत्मविश्वास से भर गया है कि हम जो भी करेंगे वही सर्वश्रेष्ठ होगा और वही सराहा जायेगा . आज अन्य चैनल जहाँ अपनी रेटिंग बढ़ने के लिए ,अपनी गुणवत्ता सुधारने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं वहीँ दूरदर्शन को ऐसी कोई चिंता कोई फ़िक्र नहीं है .एक और जहाँ ''बुद्धा ''और ''चाणक्य ''जैसे कालजयी चरित्रों पर आधारित श्रेष्ठता की हर पायदान को पार करते धारावाहिकों की मात्र उपस्थिति ही दर्ज की जाती है वहीँ ''कहीं देर न हो जाये ''जैसे ''न गवाँरु न संवारूं '' ''न भोजपुरी न हिंदी '' ''न अभिनय न पटकथा ''और अधिक क्या कहूं 'कुल मिलाकर बकवास ' और ''फॅ

साफ़ हो गया अंतर राहुल-अरविन्द का

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आख़िरकार साफ़ हो गया कि दिल्ली में ''आप''पार्टी सरकार बनाएगी और उसके मुखिया होंगे 'अरविन्द केजरीवाल 'और एक यही बात साफ कर गयी 'अंतर राहुल गांधी व् अरविन्द केजरीवाल का ',कहने वाले इस बात पर यही कहेंगें कि राहुल गांधी में योग्यता नहीं नेतृत्व करने की और अरविन्द केजरीवाल में क्षमता है सत्ता सँभालने की ,नहीं दिखेगी उन्हें वह 'लालसा 'जो अरविन्द केजरीवाल को देश की राजनीती में प्रमुखता दिलाने वाले अन्ना से भी उन्हें अलग कर गयी और जिसके कारण इनके मतभेद इतने गहरे हुए कि अन्ना ने उसी लोकपाल को मान्यता देते हुए अपना आंदोलन समाप्त कर दिया जिसे उन्ही के किसी समय साथी रहे अरविन्द केजरीवाल ने ''जोकपाल बिल ''करार दिया . आज जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और 'आप'को दिल्ली की ही नहीं सारे देश की जनता नई उम्मीदों से देख रही है ऐसे में ये कयास लगाये जा रहे थे कि शायद अरविन्द दिल्ली के मुख्यमन्त्री का सेहरा आप के किसी अन्य नेता के सिर सजायेंगे किन्तु ऐसा नहीं हुआ वैसे भी भगवान राम ने भी कहा है कि ''राजमद केवल मेरे भरत को नहीं छू सकता 

बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .

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अबला समझके नारियों पे बला टलवाते हैं, चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं , बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं . …………………………………………………………………… आवारगी पे अपनी न लगाम कस पाते हैं , वहशी पने को अपने न ये काबू कर पाते हैं , दब कर न इनसे रहने का दिखाती हैं जो हौसला बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं . ………………….. बुज़ुर्गी की उम्र में ये युवक बन जाते हैं , बेटी समान नारी को ये जोश दिखलाते हैं , दिल का बहकना दुनिया में बदनामी न फैले कहीं कुबूल कर खता बना भगवान बन जाते हैं . ………………………………………. खुद को नहीं समझके ये सुधार कर पाते हैं , गफलतें नारी की अक्ल में गिनवाते हैं , कानून की मदद को जब लड़कियां बढ़ाएं हाथ उनसे बात करने से जनाब डर जाते हैं . ………………………………………………… नारी पे ज़ुल्म करने से न ये कतराते हैं, बर्बरता के तरीके नए रोज़ अपनाते हैं , अतीत के खिलाफ वो आज खड़ी हो रही साथ देने ”शालिनी ”के कदम बढ़ जाते हैं . …………………………………. शालिनी कौशिक [कौशल ]

अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर .

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फिरते थे आरज़ू में कभी तेरी दर-बदर , अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर . ............................................................. लगती थी तुम गुलाब हमको यूँ दरअसल , करते ही निकाह तुमसे काँटों से भरा घर . ........................................................ पहले हमारे फाके निभाने के थे वादे , अब मेरी जान खाकर तुम पेट रही भर . ............................................................... कहती थी मेरे अपनों को अपना तुम समझोगी , अब उनको मार ताने घर से किया बेघर . ................................................................. पहले तो सिर को ढककर पैर बड़ों के छूती , अब फिरती हो मुंह खोले न रहा कोई डर . ............................................................... माँ देती है औलाद को तहज़ीब की दौलत , मक्कारी से तुमने ही उनको किया है तर . ................................................................... औरत के बिना सूना घर कहते तो सभी हैं , औरत ने ही बिगाड़े दुनिया में कितने नर . .......................................................... माँ-पिता,बहन-भाई हिल-मिल के साथ रहते

श्रेय-एक लघु कथा

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श्रेय-एक लघु कथा ''राजू .....राजू .....''मद्धिम सी पड़ती आवाज़ में अनुपम बाबू जी ने अपने पोते को पुकारा ,.....हाँ दादा जी .....कहकर तेज़ी से राजू बाहर से भागता हुआ आया ,.....बाबू जी ने उसे आँख खोलकर देखा ,कुछ कहते कहते रुक गए ,....दादा जी ,''आप कुछ कहिये तो जो आप कहेंगें मैं पूरा करूँगा ,अपने प्राण देकर भी पूरा करूँगा ,आप कहिये तो .''...नहीं रे!तेरे प्राण नहीं चाहियें ,तू ऐसा मत कह ,..कहते कहते बाबू जी रोने लगे .....''दादा जी !कहिये तो आप एक बार कहिये तो मैं अपनी पूरी शक्ति लगाकर भी आपकी बात को पूरी करूँगा ,कहिये तो ..'' ''राजू ! ....जी दादा जी .......काम मुश्किल तो है पर मैं चाहता हूँ कि मैं ये कोठी तेरे और अपने धेवतो के नाम कर जाऊं ,तेरे लिए ये काम मुश्किल है क्योंकि इस सबका मालिक वास्तव में तू ही है ,पर मेरे वे धेवते .....उनका क्या होगा राजू .....वे तो बिल्कुल नाकारा हैं ,अगर उन्हें घर भी नहीं मिला तो कहाँ ठोकर खाते फिरेंगे फिर आज तो सब तेरे हाथ में है कल को तेरी शादी हो जायेगी तब तू अगर विवश हो गया तब क्या होगा ?''रा

समाज टूट रहा है -मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण

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समाज टूट रहा है -मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण प्रेमी युगल ने किसके खौफ में की   मौत से ‘दोस्ती’   इंटरमीडिएट के छात्र छात्रा ने हरिद्वार में ख़ुदकुशी की, समाचार पत्र की हेडलाइंस -''बाइक से आये शादी की और जान दे दी ,''अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर स्थान और चिंता मात्र ये कि ''प्रेमी युगल ने किसके खौफ में की   मौत से ‘दोस्ती’''जबकि चिंता क्या होनी चाहिए यही न कि आज हमारा युवा कहाँ जा रहा है वह उम्र जो उसके अपना कैरियर बनाने की है उस उम्र में वह प्यार जैसे वहम में पड़ता जा रहा है जो कि विशेषज्ञों के अनुसार इस उम्र में मात्र आकर्षण होता है जो कि जीवन की कठिन परिस्थितियों को देखकर बहुत जल्दी ही छूमंतर हो जाता है किन्तु इसे न तो आज कोई समझना चाहता है और न ही समझाना और वह जिसकी इस क्षेत्र में सर्वाधिक जिम्मेदारी बनती है वह मात्र अपनी रेटिंग हाई रखने के लिए ,अख़बार की बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसी ख़बरों को ऊपर स्थान दे रहा है और भटका रहा है हमारे युवा को जो इसे बहुत ऊंचाई पर लेकर चलते हैं . और न केवल युवा बल्कि ये हमारा मीडिया आज जहाँ देखो प्रेमी युगल संकल्पना की स्था

दाता ही थैला लेके उसके ठौर आ गया है .

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तब्दीली का जहाँ में अब दौर आ गया है , कुदरत के ख़त्म होने का दौर आ गया है . .......................................................... पहले भिखारी फिरते घर घर कटोरा लेकर , दाता ही थैला लेके उसके ठौर आ गया है . ............................................................... प्यासा भटकता था कभी कुएं की खोज में , अब कुआं उसके दर पे ले चौंर आ गया है . ............................................................... तप करते थे वनों में पाने को प्रभु भक्ति , खुद रब को अनासक्तों का गौर आ गया है . .......................................................................... भगवन ये पूछते थे क्या मांगते हो बेटा, बेटे के बिना मांगे मुंह में कौर आ गया है . ........................................................................... दुनिया में तबाही का यूँ आ रहा है मंज़र , पतझड़ के समय पेड़ों पर बौर आ गया है . .................................................................... ऊँगली उठाना आसाँ मुश्किल है काम करना , ''शालिनी ''की समझ में ये तौर आ गया है . ....... शब्दार्थ-ठौर-ठिकाना ,च

''आप'' की मम्मी

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    ''अरुणा ''सतीश ने कॉलिज में अरुणा को पीछे से आवाज़ लगायी ,''हाँ''अरुणा ने कहा ,क्या सोचा ,इतिहास लोगी या राजनीति शास्त्र ,नहीं अभी कुछ नहीं सोचा ,मम्मी से पूछकर बताऊंगी ,कहकर अरुणा क्लास में चली गयी .       ''देखिये आप में से जो भी स्टूडेंट शैक्षिक भ्रमण के लिए चलना चाहते हैं वे अपना नाम मित्तल सर के पास लिखवा दें परसों तक का समय है ४ दिन बाद जाना है .''अनीता मैडम ने क्लास में सभी को बताया .           ''अरुणा चलोगी  टूर पर ?''सतीश ने पुछा ''मम्मी से पूछूंगी ''कहकर अरुणा जब जाने लगी तो सतीश बोला -ठहरो एक मिनट ,तुमने मुझसे किसी जॉब के लिए कहा था मेरे अंकल के ऑफिस में स्टेनो टाइपिस्ट की जगह खाली है ,करोगी क्या?''अच्छा चलो मम्मी से पूछकर बताती हूँ कहकर अरुणा तेज़ी से घर के लिए निकल गयी और सतीश देखता रह गया .       एक महीने बाद ,          ''और अरुणा कैसी चल रही है जॉब ?रेस्टोरेंट में चाय की चुस्की लेते हुए सतीश ने अरुणा से पुछा ,''ठीक है ,पर अभी तनख्वाह काफी कम है ,अ

अकेले कुमार विश्वास ही क्यूँ?

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अकेले कुमार विश्वास ही क्यूँ? दिल्ली विधानसभा चुनावों में जनता के जबरदस्त समर्थन पर २८ सीटें जीतने वाली ''आप'' अब लोकसभा चुनावों की तैयारी में है और काफी उत्साह में है ''आप''के कार्यकर्ता और अब इन्हें दिखाई दे रहे हैं ''राहुल गांधी ''जिनके खिलाफ इनके राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष सिसौदिया कह रहे हैं कि ''कुमार विश्वास को राहुल गांधी के सामने चुनाव लड़ाया जाये .''उन्होंने कहा कि ''राहुल गांधी ही क्या कुमार को वे हिन्दू ह्रदय सम्राट के सामने भी चुनाव लड़ा सकते हैं ''हिन्दू ह्रदय सम्राट से उनका इशारा भाजपा के पी.एम्.पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की तरफ था . AAP hints at Kumar Vishwas-Rahul Gandhi clash in LS polls इतनी बढ़चढ़कर बातें करने वाली ''आप ''की जिम्मेदारी लेने की क्षमता का आकलन करने के लिए तो हम पिछले कुछ दिनों के समाचार पत्र देख सकते हैं - १- दिल्ली में सरकार बनाने को लेकर गतिरोध बरक़रार -कॉंग्रेस आप को बिना शर्त समर्थन देने को तैयार -लेकिन अरविन्द केजरीवाल बोले -हम सरकार बनाने की दौड़ मे

उम्मीदवारी के कुछ कर्त्तव्य भी होते हैं जनाब .

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उम्मीदवारी के कुछ कर्त्तव्य भी होते हैं जनाब . ''गांधी का यह देश नहीं ,बस हत्यारों की मंडी है , राजनीति की चौपड़ में ,हर कर्ण यहाँ पाखंडी है .'' उपरोक्त पंक्तियाँ अक्षरशः खरी उतरती हैं इस वक़्त सर्वाधिक प्रचारित ,कथित हिन्दू ह्रदय सम्राट ,देश को माँ-माँ कहकर सबके दिलों पर छाने की कोशिश करने वाले गांधी के ही गुजरात के बेटे और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हैट्रिक लगाने का पुरुस्कार भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्राप्त करने वाले शख्स नरेंद्र मोदी जी पर ,जिन्हें लगता है कि इस उम्मीदवारी से उन्हें मात्र अधिकार मिलें हैं विरोधियों पर कटाक्ष करने के और वह भी अभद्रता की हद पर करने वाले कटाक्ष और मुख़ालिफ़ों के बयानों में से कोई न कोई बात पकड़कर उसकी खाल निकालने का . हमारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने कहा था कि कर्त्तव्य के संसार में ही अधिकारों की महत्ता है और यह सभी जानते भी हैं कि अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलु हैं तो ऐसे में मोदी जी १३ दिसंबर को अपना कर्त्तव्य कैसे भूल गए जो कि इस उम्मीदवारी से उन्हें मिला है गुजरात

केजरीवाल आगे बढ़ो :हम तुम्हारे साथ हैं .

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केजरीवाल आगे बढ़ो :हम तुम्हारे साथ हैं .   ;;आप'' को दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिली भारी सफलता ,आप ने किसी भी पार्टी को समर्थन देने या किसी भी पार्टी से समर्थन लेने से इंकार किया ,आप ने अपनी सफलता का जश्न मनाया ,आदि रोज ऐसी ख़बरों से दूरदर्शन ,समाचार पत्र ,विभिन्न वेबसाइट भरे पड़े हैं किन्तु यदि खाली है तो वह है जनता की महत्वकांक्षाओं का आकाश और उसके भरे जाने की कोई सम्भावना नज़र भी नहीं आ रही क्योंकि आप पार्टी अपनी इस सफलता से अपना दिमाग ख़राब करे बैठी है और ये सोचे बैठी है कि यदि हमने इस बार के आधे अधूरे समर्थन के लिए अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए सरकार नहीं बनायीं तो जनता हमारे त्याग बलिदान से प्रभावित होकर हमें अगले चुनाव में पूर्ण बहुमत प्रदान करेगी ,शायद ये कहावत वे भूल गए हैं या जानते ही नहीं कि - '' आधी को छोड़ पूरी को ध्यावे , आधी मिले न पूरी पावे '' और फिर जनता ने उन्हें काम करने के लिए वोट दिया है और वे वही करने से हिचक रहे हैं या न करने के बहाने बना रहे हैं .जब कॉंग्रेस उन्हें बिना शर्त समर्थन दे रही है और वे स्वयं भी दुसरे दलों के अच्छे नेताओं को अपन

त्रिशंकु विधानसभा नहीं दिल्ली की जनता

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त्रिशंकु विधानसभा नहीं दिल्ली की जनता दिल्ली विधानसभा चुनाव २०१३ के जो परिणाम आये हैं वे न केवल कॉंग्रेस के लिए बल्कि स्वयं वहाँ की जनता के लिए भी निराशाजनक हैं .कॉंग्रेस के लिए तो मात्र इतनी ही निराशा है कि वह वहाँ की सत्ता से बेदखल हो रही है किन्तु जनता के लिए बहुत ज्यादा क्योंकि जिन दलों को उसने कॉंग्रेस के मुकाबले वरीयता दी है उनमे यह हिम्मत ही नही कि वे सरकार बनायें ,ये हिम्मत भी कॉंग्रेस में ही है .कॉंग्रेस के ही पी.वी.नरसिंह राव ने ५ वर्ष तक १९९१ से १९९६ तक अल्पमत सरकार चलाकर दिखाई थी और विपक्ष देखता रह गया था और इस बार की भी यु.पी.ए.सरकार के लिए भाजपा के ही मुख़्तार अब्बास नकवी कहते हैं कि ''ये सरकार तो आरम्भ से ही अस्थिर रही है .''और कितनी बड़ी असफलता कही जायेगी विपक्ष की जिसकी भाजपा सिरमौर बनी फिरती है कि वह इसे गिरा नहीं पायी केवल अपने अनर्गल प्रलाप से ही अपने और बहुत से विपक्षियों के मन को खुश करती रही जबकि वह विपक्ष की भूमिका भी सफलतापूर्वक नहीं निभा पायी जिसका मुख्य कर्त्तव्य था कि वह देश को उसकी नापसंदगी की सरकार से अतिशीघ्र मुक्ति दिलाये . और अब भ

क़ुबूल कीजिये

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शिकस्त-ए-सियासत क़ुबूल कीजिये , मेहनत नहीं आराम अब क़ुबूल कीजिये . अवाम से इंसाफ की करते रहे तौहीन गुरुर छोड़ सादगी क़ुबूल कीजिये . ........................................................ इज़हार-ए-ख्यालात हैं ज़म्हूरियत में ये , नाराज़गी जमहूर की क़ुबूल कीजिये . परेशां होने से होगा न कुछ हासिल चुनौती मान दिल से क़ुबूल कीजिये . .......................................................... फतह नसीब है वही सेवक हो वफादार , फरेब किया आपने क़ुबूल कीजिये . एहसान फरामोशी ही कर रहे थे आप फ़र्दे-ज़ुर्म मर्द बन क़ुबूल कीजिये . ..........................................................   कामयाब आप हैं न भूलकर इन्हें , रख सामने सबक ये क़ुबूल कीजिये . फरेफ़ता अवाम है ईमानदार की फ़र्ज़ अब फराख दिल क़ुबूल कीजिये . ........................................................ मुखालफत में बैठकर है बोलना आसान , मल्लाही सल्तनत की क़ुबूल कीजिये . उठाते रहे उँगलियाँ जिन पर तुनक-तुनक उनकी जड़ों को काटना क़ुबूल कीजिये . ...................................................... सत्ता की खिलाफत सदा होती है हर तर

क्यूँ न अब लॉटरी सिस्टम लागू किया जाये ?

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सत्ता का सेमीफाइनल भाजपा के पक्ष में गया किन्तु इस सेमीफाइनल के परिणाम ने भाजपा की मुश्किलों में इज़ाफ़ा कर दिया है जहाँ इसमें जीतकर शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह ने मोदी की तरह अपने राज्य में सत्ता में रहने की हैट्रिक लगा ली है वहीँ भाजपा को प्रधानमंत्री पद के लिए किये गए निर्णय पर एक बार फिर विवश कर दिया है आखिर अब भाजपा को इस पर विचार क्यूँ नहीं करना चाहिए क्योंकि इसी एक काबिलियत के आधार पर तो मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था अब दो और उस सूची में शामिल हो गए हैं क्यूँ न अब लॉटरी सिस्टम लागू किया जाये ? शालिनी कौशिक [कौशल]

भौतिकवादी भारतीय परम्परावादी नाटक के पात्र .

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भारतीय परम्पराओं के मानने वाले हैं ,ये सदियों से चली आ रही रूढ़ियों में विश्वास करते हैं और अपने को लाख परेशानी होने के बावजूद उन्हें निभाते हैं ये सब पुराने बातें हैं क्योंकि अब भारतीय तरक्की कर रहे हैं और उस तरक्की का जो असर हमारी परम्पराओं के सुन्दर स्वरुप पर पड़ रहा है वह और कहीं नहीं क्योंकि एक सच्चाई ये भी है कि अवसरवाद और स्वार्थ भी हम सबमे कूट कूटकर भरा हुआ है और हम अपने को फायदा कहाँ है बहुत जल्दी जान लेते हैं और वही करते हैं जिसमे फायदा हो . भारत में विशेषकर हिंदुओं में हर व्यक्ति के जीवन में १६ संस्कारों को स्थान दिया गया है इसमें से और कोई संस्कार किसी का हो या न हो और लड़कियों का तो होता ही केवल एक संस्कार है वह है विवाह जो लगभग सभी का होता है तो इसमें ही मुख्य रूप से परिवर्तन हम ध्यान पूर्वक कह सकते हैं कि निरंतर अपनी सुविधा को देखते हुए लाये जा रहे हैं और ये वे परिवर्तन हैं जिन्होंने इस संस्कार का स्वरुप मूल रूप से बदलकर डाल दिया है और ये भी साफ़ है कि इस सबके पीछे हम हिंदुओं की अपनी सुविधा और स्वार्थ है .परिवर्तन अब देखिये क्या क्या हो गए हैं - * पहले विवाह में

औरत :आदमी की गुलाम मात्र

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अभी अभी एक नए जोड़े को देखा पति चैन से जा रहा था और पत्नी घूंघट में ,भले ही दिखाई दे या न दे किन्तु उसे अब ऐसे ही चलने का अभ्यास करना होगा आखिर करे भी क्यूँ न अब वह विवाहित जो है जो कि एक सामान्य धारणा के अनुसार यह है कि अब वह धरती पर बोझ नहीं है ऐसा हमारे एक परिचित हैं उनका कहना है कि ''जब तक लड़की का ब्याह न हो जाये वह धरती पर बोझ है .'' मैंने अपने ही एक पूर्व आलेख '' विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं   '' में विवाह को दासता जैसी कुरीति से अलग बताया था किन्तु यह वह स्थिति है जिसमे विवाह संस्कार को वास्तविक रूप में होना चाहिए किन्तु ऐसा होता कहाँ है ?वास्तविक रूप में यहाँ कोई इस संस्था को रहने ही कहाँ देता है कहीं लड़के के माँ-बाप इस संस्कार का उद्देश्य मात्र लड़की वालों को लूटना -खसोटना और यदि देहाती भाषा में कहूँ तो'' मूंडना '' मान लेते हैं तो कहीं स्वयं लड़की वाले कानून के दम पर लड़के वालों को कानूनी दबाव में लेकर इसके बल पर ''कि दहेज़ में फंसाकर जेल कटवाएंगे ''उन्हें अपने जाल में फंसाते हैं और धन ऐंठकर ही छ

एक दिल्ली तो संभलती नहीं कहते देश संभालेंगे भाजपाई

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एक दिल्ली तो संभलती नहीं कहते देश संभालेंगे भाजपाई Delhi state assembly election, 2013 2008  ← 4 December 2013   ALL 70 SEATS IN THE  LEGISLATIVE ASSEMBLY OF DELHI 36 SEATS NEEDED FOR A MAJORITY Opinion polls     LEADER Sheila Dikshit Harsh Vardhan Arvind Kejriwal PARTY Congress BJP AAP LEADER'S SEAT New Delhi Krishna Nagar New Delhi LAST ELECTION 43 seats, 40.31% 23 seats, 36.34% Not formed CURRENT SEATS 43 23 - SEATS NEEDED -7 13 36 Incumbent Chief Minister Sheila Dikshit Congress ये है इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव की राजनीतिक स्थिति और जहाँ तक दिल्ली विधानसभा की बात है तो आज दूरदर्शन पर देखा और सुना कि भाजपा वहाँ कितनी मजबूत स्थिति में है वही भाजपा जो १९९३ में दिल्ली में विधानसभा बनने पर पहली बार में ही सत्ता संभालती है और मदन लाल खुराना के हाथों में मुख्यमंत्री की बागडोर सौंपती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी ओर से बिगुल बजाने वाली ये पार्टी अपना अतीत कितनी जल्दी भूल जाती है ये कोई आश्चर्य की बात नहीं ऐसा वह एक बार नहीं बार बार करती ह