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अप्रैल, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

समीक्षा - "ये तो मोहब्बत नहीं" - समीक्षक शालिनी कौशिक

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समीक्षा -  '' ये तो मोहब्बत नहीं ''-समीक्षक शालिनी कौशिक उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ द्वारा प्रकाशित डॉ.शिखा कौशिक 'नूतन' का काव्य-संग्रह 'ये तो मोहब्बत नहीं ' स्त्री-जीवन के यथार्थ चित्र को प्रस्तुत करने वाला संग्रह है .आज भी हमारा समाज पितृ-सत्ता की ज़ंजीरों में ऐसा जकड़ा हुआ है कि वो स्त्री को पुरुष के समान सम्मान देने में हिचकिचाता है .त्रेता-युग की 'सीता' हो अथवा कलियुग की 'दामिनी' सभी को पुरुष -अहम् के हाथी के पैरों द्वारा कुचला जाता है .              कवयित्री डॉ. शिखा कौशिक काव्य-संग्रह में संग्रहीत अपनी कविता 'विद्रोही सीता की जय'' के माध्यम  इस तथ्य को उद्घाटित करने का प्रयास करती हैं कि सीता का धरती में समां जाना उनका पितृ-सत्ता के विरूद्ध विद्रोह ही था ; जो अग्नि-परीक्षा के पश्चात् भी पुनः शुचिता-प्रमाणम के लिए सीता को विवश कर रही थी - 'जो अग्नि-परीक्षा पहले दी उसका भी मुझको खेद है , ये कुटिल आयोजन बढ़वाते नर-नारी में भेद हैं , नारी-विरूद्ध अन्याय पर विद्रोह की भाषा बोलूंगी , नारी-जाति  सम्मान हित अपवाद स्वयं मै

क्या आदमी सच में आदमी है ?

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''आदमी '' प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति है .आदमी को इंसान भी कहते हैं , मानव भी कहते हैं ,इसी कारण आदमी में इंसानियत , मानवता जैसे भाव प्रचुर मात्र में भरे हैं ,ऐसा कहा जाता है किन्तु आदमी का एक दूसरा पहलु भी है और वह है इसका अन्याय अत्याचार जैसी बुराइयों से गहरा नाता होना .कहते हैं सृष्टि के आरम्भ में आदमी वानर था , वानर अर्थात पशु , सभी ने ये फ़िल्मी गाना सुना ही होगा - '' आदमी है क्या बोलो आदमी है क्या -आदमी है बन्दर -जूते उठाके भागे कपडे चुराके भागे .....'' और धीरे धीरे सभ्यता विकसित हुई और वह पशु से आदमी बनता गया किन्तु जैसे कि एक पंजाबी कहावत है - '' वादडिया सुजादडिया जप शरीरा  नाल .'' अर्थात बचपन की लगी आदतें शरीर के साथ-साथ जाती हैं ,ठीक वैसे ही जो ये सभ्यता का आरम्भकाल मानव जीवन का आरम्भकाल है अर्थात बचपन के समान है ,उसमे पशु होने के कारण वह आज तक भी उस प्रवृति अर्थात पशु प्रवृति से मुक्त नहीं होने पाया है और पशु प्रवृति के लिए ही कहा गया है - ''यही पशु प्रवृति है कि आप आप ही चरे .'' और इसी प्रवृति के अधीन मन

बेटी की...... मां ?

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बेटी का जन्म पर चाहे आज से सदियों पुरानी बात हो या अभी हाल-फ़िलहाल की ,कोई ही चेहरा होता होगा जो ख़ुशी में सराबोर नज़र आता होगा ,लगभग जितने भी लोग बेटी के जन्म पर उपस्थित होते हैं सभी के चेहरे पर मुर्दनी सी ही छा जाती है.सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि बेटी का जन्म सुनकर उसे जन्म देने वाली माँ भी ख़ुशी के पल से दूर नज़र आती है और मर्दों के इस समाज द्वारा यह ठीकरा माता उर्फ़ नारी के सिर पर ही फोड़ दिया जाता है कि माँ स्वयं नारी होकर भी बेटी अर्थात नारी का जन्म नहीं चाहती इसी से यह साबित होता है कि नारी ही नारी की सबसे बड़ी दुश्मन है अब नारी नारी की दुश्मन कैसे है यह मुद्दा तो बहुत लम्बे विचार-विमर्श का है किन्तु माँ स्वयं नारी होकर बेटी अर्थात नारी का जन्म क्यों नहीं चाहती यह मुद्दा अभी की ही एक घटना प्रत्यक्ष रूप में साबित करने हेतु पर्याप्त है - [शर्मनाक: बेटी पैदा हुई तो पत्नी को निर्वस्त्र कर छत पर घुमाया-अमर उजाला से साभार ] एक तरफ केंद्र सरकार देश में बेटी बचाओ अभियान चला रही है, तो दूसरी तरफ एक मां के लिए बेटी पैदा करना अभिशाप बन गया। इसके लिए वह पिछले चार साल से प

नारी क्यूं बनती है बेचारी

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       दुष्कर्म आज ही नहीं सदियों से नारी जीवन के लिए त्रासदी रहा है .कभी इक्का-दुक्का ही सुनाई पड़ने वाली ये घटनाएँ आज सूचना-संचार क्रांति के कारण एक सुनामी की तरह नज़र आ रही हैं और नारी जीवन पर बरपाये कहर का वास्तविक परिदृश्य दिखा रही हैं . भारतीय दंड सहिंता में दुष्कर्म ये है - भारतीय दंड संहिता १८६० का अध्याय १६ का उप-अध्याय ''यौन अपराध ''से सम्बंधित है जिसमे धारा ३७५ कहती है- [ I.P.C. ] Central Government Act Section 375 in The Indian Penal Code, 1860 375. Rape.-- A man is said to commit" rape" who, except in the case hereinafter excepted, has sexual intercourse with a woman under circumstances falling under any of the six following descriptions:- First.- Against her will. Secondly.- Without her consent. Thirdly.- With her consent, when her consent has been obtained by putting her or any person in whom she is interested in fear of death or of hurt. Fourthly.- With her consent, when the man knows that he is not her husband, and tha

हाय रे औरतों की बीमारी

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कवि शायर कह कह कर मर गए-   ''इस सादगी पे कौन न मर जाये ए-खुदा,'' ''न कजरे की धार,न मोतियों के हार, न कोई किया सिंगार फिर भी कितनी सुन्दर हो,तुम कितनी सुन्दर हो.'' पर क्या करें आज की महिलाओं  के दिमाग का जो बाहरी सुन्दरता  को ही सबसे ज्यादा महत्व देता रहा है और अपने शरीर का नुकसान तो करता ही है साथ ही घर का बजट  भी बिगाड़ता है.लन्दन में किये गए एक सर्वे के मुताबिक ''एक महिला अपने पूरे जीवन में औसतन एक लाख पौंड यानी तकरीबन ७२ लाख रूपए का मेकअप बिल का भुगतान कर देती है  .इसके मुताबिक १६ से ६५ वर्ष तक की उम्र की महिला ४० पौंड यानी लगभग तीन हज़ार रूपए प्रति सप्ताह अपने मेकअप पर खर्च करती हैं .दो हज़ार से अधिक महिलाओं के सर्वे में आधी महिलाओं का कहना था कि'' बिना मेकअप के उनके बॉय  फ्रैंड उन्हें पसंद ही नहीं करते हैं .'' ''दो तिहाई का कहना है कि उनके मेकअप किट की कीमत ४० हज़ार रूपए है .'' ''ब्रिटेन की महिलाओं के सर्वे में ५६ प्रतिशत महिलाओं का कहना था कि १५०० से २००० रूपए का मस्कारा खरीदने में ज्याद

नारी शक्ति सिरमौर-कोई माने या न माने

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''कुछ लोग वक़्त के सांचों में ढल जाते हैं , कुछ लोग वक़्त के सांचों को ही बदल जाते हैं , माना कि वक़्त माफ़ नहीं करता किसी को पर क्या कर लोगे उनका जो वक़्त से आगे निकल जाते हैं .''    नारी शक्ति को लेकर ये पंक्तियाँ एकदम सटीक उतरती हैं क्योंकि नारी शक्ति ही इस धरती पर एक ऐसी शक्ति है जिसने वक़्त के सांचों में ढलना तो सीखा ही सीखा उसने उन्हीं सांचों को बदलने का काम भी पूरे मनोयोग से किया और इसीलिए आज नारी शक्ति जो मुकाम दुनिया में हासिल कर चुकी है उसका मुकाबला करना या कहूं उसे किसीसे कमतर आंकना वक़्त के लिए भी सहज नहीं है .            नारी शक्ति को हमारे इस समाज में हमेशा से सामान्य जन कहूं या विद्धवत जन कहूं सभी ने कमजोर आँका है ,कम बुद्धि आँका है ,यही नहीं ''औरतों की अक्ल घुटनो में होती है '' ऐसे ऐसे उपमान भी नारी के माथे धरे जाते हैं और ये नारी ही है जो सब कुछ सुन-सुनकर भी ''तू हर तरह से ज़ालिम मेरा सब्र आज़माले , तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''     शेर की तर्ज़ पर अपनी धुन में लगी रहती है और कुछ न कुछ उपलब्धि हासिल करती रहत

जिन्हें न शर्म लेश

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बहुत बार देखी  हैं        हथेली की रेखाएं किताबों में लिखा      जिन्हें सर्वश्रेष्ठ , उमर आधे से ज्यादा     है बीत गयी खोया ही खोया     पाया बस क्लेश , नहीं कोई चाहत       है अब पाल रखी नहीं लेना दुनिया से      है कुछ विशेष , सुकूँ से बिता लें       सम्मान से रह लें जो चार दिन इस     जहाँ में अवशेष , मगर लगता लड़ना व्       भिड़ना पड़ेगा सबक दे दें उनको      जिन्हें न शर्म लेश . शालिनी कौशिक   (कौशल)

स्वच्छता अभियान :नेपाल गुरु

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   उत्तर प्रदेश में इस वक़्त ब्लॉक स्तर पर केंद्र सरकार के '' स्वच्छ  भारत मिशन ग्रामीण'' के अन्तर्गत '' खुले में शौच मुक्त ''अभियान को लेकर कार्य जोरों पर है .उत्तर प्रदेश पंचायत राज विभाग के सचिव अमित कुमार गुप्ता के अनुसार '' प्रदेश के तीस जिले  दिसंबर तक खुले में शौच मुक्त हो जायेंगे .'' . साथ ही मंडल के पंचायत राज उपनिदेशक अनिल कुमार सिंह ने बताया -'' कि प्रदेश में पहला शामली जिला है जो खुले में शौच मुक्त हो चुका है .जिले में ३२ हज़ार २०८ शौचालय बनाये गए हैं .''      अब अगर हम शामली जिले द्वारा इस मिशन के लिए की गयी मेहनत को दृष्टिगोचर करें तो हमें यहाँ के जिलाधिकारी श्री सुजीत कुमार ,सी.डी.ओ. यशु रस्तोगी और यहाँ के अन्य कर्मचारियों की मेहनत को भी ध्यान में रखना होगा जिसके बारे में हमें कैराना के प्रभारी ए.डी.ओ.पंचायत श्री धर्म सिंह जी ने विस्तार से बताया .उनके अनुसार -'' जिलाधिकारी के आदेशों के तहत सभी कर्मचारीगण सुबह को चार बजे खेतों में पहुँच जाते थे और लोगों को खुले में शौच के कारण आने वाली समस्याओं के सम्